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जागते रहों जागते रहों

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शशिकांत गुप्ते

आज सीतारामजी बहुत अलहदा मूड में हैं। जब मैं उनसे मिलने गया तो वे फिल्मी गीतों पर पैरोडी बनाकर गा रहे थे।
सब कुछ लुटा हमने,नाम है अदानी
विपक्ष ने कितना शोर मचाया,सत्ता ने हमे ही अपनाया

इंग्लिश मैं करने “D” Alphabet मतलब वर्णाक्षर टाइप करने पर हिंदी के ड और द दोनों के लिए उपयोग होता है। अडानी की जगह अदानी टाइप हो जाता है।
तय है हम करेंगे देश को फ़कीर
फिर भी यारों हम हैं सत्ता के करीब
लूटे चंदा देने के लिए वो हम अमीर हैं
भागेंगे विदेश में ऐसे हम शातिर हैं
रिश्ता है हमारा सत्ता से मित्रता का
सत्ता को यकीन हैं,हम पे ऐतबार का

देश की आर्थिक व्यवस्था को मार कर मुस्कुराएंगे
जीतेजी बैंक और बीमा को रुलाएंगे
कहेगा एक दूसरे से हर समाझदार बार बार
सत्ता से सांठगांठ होना इसिका नाम है

यह हकीकत है।
ऐसी स्थिति में आमजन की हालत को बयान करता ये शेर मौजू है।
सुनेगा कौन मेरी चाक-दामनी का अफ़्साना
यहाँ सब अपने अपने पैरहन की बात करते हैं

शायर हैं कलीम आजिज़
(चाक दामनी = तार तार लिबास)
शासन और प्रशासन का आमजन के साथ रवैया है। उसपर शायर अकबर इलाहाबादी का ये शेर सटीक है।
क़ौम के ग़म में डिनर खाते हैं हुक्काम के साथ
रंज लीडर को बहुत है मगर आराम के साथ

आमजन में वैचारिक सोच के अभाव के कारण ही उपर्युक्त स्थिति निर्मित हुई है।
इसीलिए सभी को सिर्फ
पढ़ालिखा मतलब सिर्फ Literate नहीं, यकीनन शिक्षित मतलब Educated भी होना चाहिए।
उक्त मुद्दे को स्पष्ट समझने के लिए, शायर अकबर इलाहाबादी का निम्न शेर प्रासंगिक है।
हम ऐसी कुल किताबें क़ाबिल-ए-ज़ब्ती समझते हैं
कि जिन को पढ़ के लड़के बाप को ख़ब्ती समझते हैं

समझने वाले समझ जाएंगे,जो ना समझे अनाड़ी है।

शशिकांत गुप्ते इंदौर

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