महात्मा गांधी देश के आइकॉन हैं। बिजनेस और पॉलिटिकल लीडर्स उनकी उपलब्धियों से अचंभित रहते हैं। बेहतर लीडरशिप और मैनेजमेंट स्किल्स की कबिलियत रखने वालों में सबसे बड़ा उदाहरण भी हैं ‘बापू’। उनकी काम करने की शैली से हम सेल्फ मैनेजमेंट, लीडरशिप, इमोशनल इंटेलिजेंस, नेगोसिएशन स्ट्रैटेजी, इकोनॉमिक्स, कम्युनिकेशन, रूरल एंपावरमेंट, कानून, एथिक्स और कॉर्पोरेट गवर्नेंस सीख सकते हैं।
बापू से सीखिए सेल्फ मैनेजमेंट, इमोशनल इंटेलिजेंस, सोशल इन्क्लूशन और लीडरशिप…
1. सेल्फ मैनेजमेंट – ‘व्यक्ति के विचार ही उसका चरित्र गढ़ते हैं। हम जैसा सोचते हैं, वैसे बन जाते हैं।’
मैनेजमेंट की शुरुआत हमेशा खुद से होती है। महात्मा गांधी का स्वभाव था कि वो खुद को सुधारने की कोशिश करते रहते थे। विचारों में सुधार, कार्यों में सुधार। बचपन में एक दोस्त की बातों में आकर माता-पिता को बिना बताए गांधी जी ने मांस का सेवन शुरू कर दिया। उन्होंने ऐसा लगभग 6-7 बार किया लेकिन उनके दिल में एक टीस बैठ गई थी। उन्हें जल्द ही अपराध बोध का एहसास होने लगा और उन्होंने कसम खाई कि जीवन में फिर कभी मांस नहीं खाएंगे। शाकाहार को ही अपनाएंगे। बचपन से ही गांधी जी अपने आप से बात किया करते थे। वो अक्सर अपनी अंतरात्मा के साथ विचारों की लड़ाई लड़ते थे, ‘सेल्फ एनालिसिस’ करते थे।
सबक- गांधीजी खुद से सवाल करते थे और अपने आचरण की पूरी जिम्मेदारी लेते थे। सेल्फ मैनेजमेंट का मतलब यह नहीं होता है कि आप परफेक्ट बनें और आपसे कभी गलती न हो। सेल्फ मैनेजमेंट का मतलब है खुद को समझना और कमियों को स्वीकार कर आगे बढ़ना।
2. इमोशनल इंटेलिजेंस- ‘मेरी मर्जी के बिना कोई मुझे दुख नहीं पहुंचा सकता।’
लंदन के ब्लूम्सबरी पब्लिशिंग हाउस की एक किताब है ‘वर्किंग विद इमोशनल इंटेलिजेंस’। इसमें लेखक डैनियल गोलमैन लिखते हैं कि अपनी और दूसरों की भावनाओं को समझने की काबिलियत होना और अपनी भावनाओं को सही ढंग से मैनेज करना बहुत जरूरी होता है। गांधीजी ने अत्यंत चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों में बेहद कठिन निर्णय लिए थे। जब अफ्रीका में भारतीयों को ‘कुली’ का नाम दे दिया गया था, भारतीयों पर अलग-अलग प्रतिबंध लगाए जा रहे थे, उन्हें व्यक्तिगत और प्रोफेशनली बेइज्जत किया जा रहा था तब गांधी जी के साथ भी यही हुआ। एक बार एक गोरे नाई ने गांधी जी के बाल काटने से केवल इसलिए इंकार कर दिया कि वो एक भारतीय थे। बस, तभी से उन्होंने तय किया कि वो आत्मनिर्भर बनेंगे और अपने बाल खुद काटेंगे। हालांकि इसका नतीजा बेहद खराब था। उनके बाल बिगड़ गए थे। लेकिन इस घटना को उन्होंने छिपाया नहीं बल्कि सबको बताया कि उनकी इस खराब हेयर स्टाइल की वजह क्या थी।
सबक- हाय इमोशनल इंटेलिजेंस में व्यक्ति अपने मूल्यों से कभी समझौता नहीं करता है। खुद को बेहतर समझना और इस समझ को दूसरों तक पहुंचाना ही असल इमोशनल इंटेलिजेंस होती है। अपने निर्णय पर टिके रहने की काबिलियत और जिम्मेदारी भी इसी में शामिल है।
3. सोशल इन्क्लूशन- ‘खुद को पाने का सबसे अच्छा तरीका है दूसरों की सेवा में खो जाना।’
आज ‘सोशल इन्क्लूशन’ शब्द का इस्तेमाल दुनियाभर की सरकारें कर रही हैं। लोग अब यह समझ रहे हैं कि मेजोरिटी की कीमत पर माइनॉरिटी की ग्रोथ हानिकारक सिद्ध होती है। टॉलस्टॉय फार्म पर गांधी जी सोशल इन्क्लूशन किया करते थे। यहां हर धर्म के त्योहार मनाए जाते थे। सभी जाति-धर्म के लोग यहां आते थे और साथ मिलकर त्योहार मनाते थे। लोग यहां अनाज भी उगाते थे, गार्डनिंग करते थे और बच्चों को पढ़ाते भी थे। कोई भी काम यहां छोटा नहीं माना जाता था। सत्याग्रह आश्रम में भी लगभग ऐसा ही माहौल था। वहां हर जाति समुदाय के लोग आते-जाते रहते थे। डूडा भाई ‘अछूत’ का परिवार सहित वहां आना भी समाज के रीति रिवाजों के विरुद्ध एक साहसिक कदम था।
सबक- ‘सोशल इन्क्लूशन’ गांधी जी के जीवन का केवल उदाहरण भर नहीं था, यह तो उनके जीवन का सिद्धांत बन गया था। नतीजा यह हुआ कि उनकी एक आवाज पर हजारों लोग जमा हो जाते थे।
4. लीडरशिप- ‘ पहले लीडरशिप का मतलब था ताकत, लेकिन अब इसका मतलब है लोगों से मेल जोल बढ़ाना।’
चौरी-चौरा आंदोलन के दौरान किसी भी प्रकार की हिंसा करने पर पूरी तरह रोक थी। लोगों को ट्रेन किया गया था कि चाहे जो हो जाए, हिंसा करके जवाबी कार्यवाही नहीं करना है। लेकिन फिर भी जब एक दिन गुस्साई भीड़ ने पुलीस स्टेशन में आग लगा दी तब गांधी जी को अहसास हुआ कि अभी भारतीय लोग अहिंसा के लिए तैयार नहीं हैं। उन्होंने तुरंत ही आंदोलन रोक दिया। गांधी जी का संदेश बेहद स्पष्ट था कि आजादी अहिंसा का रास्ता अख्तियार करके ही हासिल करनी है।
सबक- गांधी जी अपनी टीम के साथ हमेशा खड़े रहते थे। ऐसा करने से उन्हें बड़ी चुनौतियों का सामना करने में भी आसानी होती थी। लीडर को हमेशा टीम प्लेयर होना चाहिए और डेमोक्रेटिक लीडरशिप को अपनाना चाहिए।