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कहानी : पुत्री का फैसला 

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        पुष्पा गुप्ता 

“चारू…

“जी पापा”… “यह फोटो देख लो मेरा दोस्त है ना मनोज.. उसका भतीजा है रोहन, अपना बिजनेस है, लड़के ने मास्टर्स किया है, एक बहन है और एक बड़ा भाई है जो यूके में रहता है। अपनी कोठी है बसंत कुंज में,  तीन तीन कारें हैं कोई कमी नहीं है तो मनोज ने तुम्हारे लिए सुझाया है। 

       मैं रोहन से मिल चुका हूं मुझे अच्छा लगा सब कुछ जंचा और जो मैं तुम्हारे लिए सोचता था वह सब मुझे इस घर में मिला,  तो तुम भी देख लो और तसल्ली कर लो” रंजीत जी ने अपनी बेटी चारू से कहा। 

     चारू ने फोटो को देखा भी नहीं हाथ में लेकर टेबल पर रख दिया फिर पापा की तरफ देख कर बोली “पापा आप और मम्मी मेरे बगैर रह लोगे क्या ?  मैं तो नहीं रह सकती आप दोनों के बिना।”  रंजीत जी की आंखें एकदम भर गईं। निशा, चारू की मम्मी ने भी अपना मुंह नीचे कर लिया कुछ कहा नहीं। 

“बताओ ना पापा”  चारू ने फिर से पूछा “बेटा तू तो  हमारी जिंदगी है तेरे बगैर जीने की कल्पना भी नहीं कर सकते। पर इस बात की बहुत खुशी है की तू हमसे ज्यादा दूर नहीं जाएगी ।आधे घंटे का ही तो फासला है जब जी चाहे हम मिल सकते हैं ना” रंजीत जी ने खुश होते हुए कहा । ” पर पापा अगर कल को रोहन ने आपसे मिलने से या घर आने से मना कर दिया तो….?  “ऐसे कैसे कर सकता है वह ?”

    रंजीत जी ने बेटी कि बात को बीच से ही काटते हुए कहा “वो कौन होता है बेटी को मां बाप से मिलने से रोकने वाला । शादी होगी तो क्या मां-बाप का हक खत्म हो गया या बेटी का। क्या बेटी का दिल नहीं करेगा मायके आने का या हमारा मन नहीं करेगा तुमसे मिलने का ?”  रंजीत जी की आवाज में रोष था । “तो फिर पापा आपने मम्मा को क्यों रोका हुआ है नाना नानी से मिलने या उनके मायके  जाने पर ? आपने कभी सोचा है कि मम्मा के दिल पर क्या बीतती होगी ? 

     मम्मा ने पिछले 25 सालों से मामा को राखी नहीं बांधी, भाई दूज का टीका नहीं लगाया, मामा की शादी पर उन्हें जाने नहीं दिया,  मामा के बच्चे हुए उन्हें देखने नहीं भेजा, नानी हॉस्पिटल में एक महीना लगा कर आई सीरियस थी फिर भी आपने उनको देखने के लिए नहीं भेजा।” रंजीत जी ने गुस्से से अपनी पत्नी निशा की तरफ देखा कुछ कहने ही लगे थे कि चारू की आवाज आई ” मम्मा को कुछ कहने की जरूरत नहीं है पापा उन्होंने मुझे कुछ भी नहीं कहा पर सालों से मैंने उन्हें घुटते हुए देखा है,  राखी भाई दूज पर छुप छुप कर रोते हुए देखा है आपने मम्मी का मायका तो खत्म कर दिया क्या आपने दादा-दादी, तायाजी, चाचा और  बुआ से रिश्ता तोड़ा ?   नहीं ना। 

      हर त्योहार में हर राखी में हमारे घर में हंसी ठट्ठा होता था पर आपने कभी सोचा कि मम्मा के मन पर क्या बीतती होगी”। “तुम्हें पता है यह सब क्यों हुआ..? कुछ कारण रहा होगा”।  रंजीत जी ने थोड़ा गुस्से में कहा “पापा कारण जो भी हो क्या वो इतना बड़ा था कि एक झटके में ही एक बेटी का मायका ही खत्म कर दिया उस बेटी का जिसने अपना पूरा बचपन  उस देहरी में बिताया था। 

     मां बाप भाई बहनों के लाड उठाए थे आपने मम्मा को रिश्ता तोड़ने पर मजबूर किया। आपने तो बस कह दिया कि अगर मां-बाप से रिश्ता रखा तो इस घर में दोबारा पांव नहीं रखोगी और मेरा मरा हुआ मुंह देखोगी तो पापा अगर यही बात रोहन मुझे कह दे तो क्या मैं भी अपने उस मायके को भूल जाऊं जहां मैंने जिंदगी के इतने वर्ष बिताए हैं।अगर ऐसा है तो पापा सॉरी मैं मम्मा जैसी नहीं हूं जो पति की खुशी के लिए जिंदगी भर की सजा भोगूं। मुझे शादी ही नहीं करनी है”। 

       कहते हुए चारू मां के पास गई और मां के गले लग गई। रंजीत जी चुपचाप बैठे आत्ममंथन में ही उलझ गए की कहां क्या ग़लत हो गया। समय उन्हें ऐसा आइना दिखाएगा ये उन्हें ना पता था। 

    निशा के आंसू तो रोके ना रुक रहे थे सोच रही थी कि अगर बेटियां ऐसी होती है तो भगवान उन्हें हर जन्म में बेटी की ही मां बनाए।

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