कुमार चैतन्य
मैं कोई छिछोरा या टीनएजर नहीं, बल्कि एक ख़ूबसूरत और सली़केमंद आदमी हूं. कपड़े-जूतों और पऱफ़्यूम के साथ-साथ ज़िंदगी की हर शै के चुनाव में मैं औरों से अलग हूं. लड़कियां मेरी ओर खिंची चली आती हैं, लेकिन मैं किसी के आकर्षण में नहीं आता, क्योंकि मुझे अपने बीवी-बच्चों से बेहद प्यार है या यूं कह लीजिए कि मेरे बीवी-बच्चे ही मेरी जन्नत हैं.
मेरी पत्नी प्रज्ञा बेहद ख़ूबसूरत और काफ़ी समझदार है. वह आम बीवियों से अलग है. वह न तो मुझ पर शक करती है और न ही मेरी टोह में लगी रहती है. उसने आज तक न तो मुझसे कोई गिला-शिकवा किया और न ही हम दोनों के बीच किसी चीज़ को लेकर मनमुटाव हुआ. मुझे याद है कि हमारे वैवाहिक जीवन में कभी भी ऐसा व़क़्त नहीं आया, जब हमने एक-दूसरे से ऊंची आवाज़ में बात की हो.
लेकिन आज मैं हाल ही में हुई अपनी कुछ हरकतों को लेकर बेहद शर्मिंदा हूं. दरअसल कुछ अरसे पहले तक हमारे जीवन की गाड़ी बड़े मज़े से चल रही थी कि अचानक मेरे जीवन में जीनिया आ गई. जीनिया 18 साल की गोरी-चिट्टी, आकर्षक नैन-ऩक़्श वाली एक ख़ूबसूरत लड़की थी. वह हमारी नौकरानी ब्रेंडा की बहू थी. कुछ दिनों पहले जब ब्रेंडा एक लंबी बीमारी का शिकार होकर काम करने लायक नहीं रही थी, तब उसने जीनिया को हमारे यहां काम करने के लिए भेजना शुरू कर दिया था. जीनिया की हाल ही में ब्रेंडा के इकलौते लड़के जोसेफ से शादी हुई थी. जोसेफ 30-35 साल का दुबला-पतला, काला-कलूटा और कामचोर आदमी था. वह ऑटो मैकेनिक था, लेकिन आजकल बेकार था. अपनी कामचोरी की वजह से वह कहीं भी टिककर काम नहीं कर पाता था. मेरे सुनने में आया था कि जीनिया ने जोसेफ से शादी अपनी इच्छाओं का गला घोंटकर की थी. उसकी मम्मी रोज़ी फर्नांडिस गोवानी थी और नारियल पानी बेचकर अपना व जीनिया का गुज़ारा करती थी. जब जीनिया 5 साल की थी, तब उसके पिता एक हादसे का शिकार होकर भगवान को प्यारे हो गए थे. ब्रेंडा रोज़ी के बचपन की सहेली थी. इसी वजह से उसने जीनिया की शादी उसके बेटे जोसेफ से कर दी थी. जीनिया जैसी ख़ूबसूरत और सली़केमंद लड़की की शादी उसकी मर्ज़ी के ख़िलाफ़ एक कामचोर और निठल्ले आदमी से कर दी गई थी, इसी वजह से मुझे उससे हमदर्दी हो गई थी.
जीनिया जब हमारे घर काम करने आई थी तब मैं उसकी तरफ़ देखता तक नहीं था. लेकिन बाद में मैंने महसूस किया था कि जब मैं अपने कमरे में होता था, तो वह सफ़ाई के बहाने बहुत देर तक कमरे में रहती थी. जब मैं प्रज्ञा के साथ हंस-बोल रहा होता था, तो उसकी ख़ूबसूरत आंखों में हसरत और उदासी होती थी.
प्रज्ञा उसकी आज्ञाकारिता और मेहनत की वजह से उस पर बहुत मेहरबान थी, इसलिए उसने जीनिया को अपने बहुत से कपड़े यहां तक कि अपनी आर्टिफ़िशियल ज्वेलरी भी दे डाली थी. जीनिया मेरे सारे काम भाग-भागकर करती थी. बच्चे भी ख़ुश थे. प्रज्ञा के बहुत से काम उसने अपने ज़िम्मे ले लिए थे. प्रज्ञा उसके काम से संतुष्ट थी. जीनिया के आने की वजह से उसे ़फुर्सत मिल गई थी, इसलिए उसकी व्यस्तताएं और बढ़ गई थीं. उसे अब सहेलियों और रिश्तेदारों से मिलने-मिलाने और मॉल में शॉपिंग के अलावा बहुत से रुके हुए काम याद आने लगे थे.
व़क़्त कैसे गुज़रता गया, पता ही नहीं चला और जीनिया को हमारे यहां काम करते हुए एक साल हो गया. वो अब हमारे घर की सदस्य बन चुकी थी और मेरे बहुत क़रीब आ गई थी, बल्कि वो मेरी ज़िंदगी का अहम् हिस्सा बन चुकी थी. अगर किसी दिन वो मुझे नहीं दिखाई देती थी तो मैं बेचैन हो जाया करता था. प्रज्ञा मेरी बेचैनी को महसूस करके फौरन बता देती थी कि आज जीनिया किस वजह से काम पर नहीं आई है. तब मुझे लगता, जैसे कि मैं चोरी करते हुए रंगे हाथों पकड़ा गया हूं. ऐसे में मैं इधर-उधर की बातें करके और यह कहकर कि एक मामूली नौकरानी के आने-जाने से मुझे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता, बात का रुख़ बदल देता था. अब प्रज्ञा मेरे इस जवाब से संतुष्ट हो जाया करती थी या नहीं, इस बात का पता मुझे बाद में चला.
जीनिया कभी-कभार ही छुट्टी लिया करती थी, वरना वो हर रोज़ आती थी. “साब, हमने आपके कमरे की सफ़ाई कर दिया है… आपकी बुक्स के रैक को अच्छी तरह से साफ़ कर दिया है… आपका कपड़ा प्रेस कर दिया है… आपके टीवी और डीवीडी प्लेयर को चमका दिया है…” मुझे हर रोज़ उसकी यही आवाज़ें सुनाई दिया करती थीं. मुझे जब भी किसी चीज़ की ज़रूरत होती थी, वो बोतल के जिन्न की तरह पलक झपकते ही हाज़िर हो जाया करती थी.
एक दिन शाम को मैं टीवी लाउंज में एक रियालिटी शो देख रहा था. बच्चे ड्रॉइंगरूम में ट्यूटर से पढ़ रहे थे और प्रज्ञा किसी ़फंक्शन में गई हुई थी कि तभी जीनिया चाय का कप लेकर आ गई.
“लीजिए साब!” उसने चाय का प्याला मेरी तरफ़ बढ़ा दिया. मैंने उसकी तरफ़ देखा, तो देखता ही रह गया. प्रज्ञा के गुलाबी सूट और मॉडल जैसे फिगर में वो बेहद ख़ूबसूरत लग रही थी. आज उसने पहली बार लिपस्टिक भी लगाई थी, जिसकी वजह से वह किसी फ़िल्म एक्ट्रेस को भी मात दे रही थी.
“साब, आप हमको ऐसे काएको देखता?” वो इठलाकर बोली, तो मैं एक सांस छोड़ते हुए बोला, “जीनिया, यू आर वेरी ब्यूटीफुल.” न जाने कैसे मेरे मुंह से निकल गया. अपनी आवाज़ और शब्दों पर मैं ख़ुद हैरान रह गया था.
“कहां साब, हम कहां ब्यूटीफुल होता. ब्यूटीफुल तो वो होता, जिसके साथ आप रहता.” उसका इशारा प्रज्ञा की तरफ़ था. फिर वो आंखों में आंसू और लहज़े में हसरत भरकर बोली, “साब, बाई गॉड! आप हमको भौत अच्छा लगता. पर आप हमको देखता भी नहीं.” उसकी बात सुनकर मैं हैरान रह गया. उसकी हरकतों से मुझे ये तो पता चल गया था कि वो ख़ुद भी मुझ पर कम फ़िदा नहीं है, लेकिन मुंह से इज़हार उसने पहली बार किया था. मैं सन्न होकर रह गया और फिर मुझे पता ही नहीं चला कि वो किस तरह मेरे दिलोदिमाग़ पर छाती चली गई.
कभी-कभार मैं अख़बार पढ़ रहा होता तो वो तस्वीरें देखने के बहाने मुझ पर तक़रीबन गिर ही पड़ती और मैं उसे छूने को बेक़रार हो जाता. लेकिन प्रज्ञा व बच्चों के एहसास ने मेरे दिलोदिमाग़ पर अपनी गिऱफ़्त क़ायम रखी थी, इसलिए मैं अपनी ये ख़्वाहिश चाहकर भी पूरी नहीं कर पा रहा था.
प्रज्ञा की सच्ची मुहब्बत को देखकर कभी-कभी मुझे अपराधबोध होता था. ग्लानि भी होती थी कि एक मामूली-सी नौकरानी के चक्कर में मैं अपनी प्यारी और समर्पित पत्नी को धोखा दे रहा था. लेकिन जैसे ही मैं जीनिया के ताज़े गुलाब जैसे चेहरे और आकर्षक फिगर को देखता, तो सब कुछ भूल जाता और मन ही मन सोचता कि किसी भी तरह जीनिया मेरे जीवन में आ जाए.
अब मौक़ा देखकर मैं उसे ग़िफ़्ट भी देने लगा था. ग़िफ़्ट पाते ही उसके चेहरे पर जो ख़ुशी के भाव आते, उसे देखकर मैं निहाल हो जाता. अब तो वो तरह-तरह के ग़िफ़्ट्स की फ़रमाइश भी करने लगी थी.
एक दिन जब प्रज्ञा बच्चों को लेकर मायके गई हुई थी, तब जीनिया मेरे पास सोफे पर बैठ गई, तक़रीबन मुझसे जुड़ गई और रोने लगी. उसके रोने से मैं बौखला गया. मेरे पूछने पर उसने बताया कि जोसेफ को गोवा में कोई काम मिल गया है, जिसकी वजह से उसे काम छोड़कर उसके साथ जाना पड़ रहा है, लेकिन वो जाना नहीं चाहती. वो यहीं रहना चाहती है.
यह सुनकर मैं परेशान हो गया और उसका हाथ थामकर बोला, “नहीं जीनिया, काम मत छोड़ना. बच्चे तुमसे काफ़ी घुल-मिल गए हैं.”
तब उसने अपना हाथ एक झटके से छुड़ाते हुए कहा, “साब, आप अपनी बात करो. हम आपको कैसा लगता?”
“जीनिया, सच कहूं तो मैं भी तुमसे प्यार करने लगा हूं. सच्चा प्यार…” मैं ज़ज़्बात की रौ में बह उठा.
“अच्छा!” वो हंसी, “मगर तुम तो ऑलरेडी मैरिड मैन है.” मैं चुप्पी साध गया. तब वो अजीब से लहज़े में बोली, “साब, अगर जोसेफ का काम यहीं सेट हो जाता, तो हमको उसके साथ गोवा नहीं जाना पड़ता. साब, जोसेफ अपना काम यहीं सेट कर लेंगा. लेकिन इसके लिए उसे ट्वेंटी थाउज़ेंड मनी की ज़रूरत है. अगर कहीं से इस मनी का अरेंजमेंट हो जाता, तो हम आपको छोड़कर कहीं नहीं जाता.”
“ठीक है, मैं रुपयों का इंतज़ाम कर दूंगा, लेकिन वादा करो कि तुम न तो कहीं जाओगी और न ही इस बारे में किसी को बताओगी.”
एकाएक जीनिया की आंखें चमकने लगीं, “हम प्रॉमिस करता है साब, इस बारे में हम किसी को नहीं बताएंगा, यहां तक कि जोसेफ को भी नहीं.”
बीस हज़ार रुपए मेरे लिए नाख़ून की मैल के बराबर थे. मैंने आव देखा न ताव और आलमारी से बीस हज़ार रुपए निकालकर उसके हाथ पर रख दिए. उस व़क़्त जीनिया के चेहरे पर ख़ुशी के जो भाव थे, उन्हें देखकर मुझे यक़ीन होने लगा कि अब मेरे मन की सारी मुरादें पूरी हो जाएंगी. मैं उसे छू सकूंगा और बांहों में भरकर प्यार कर सकूंगा.
“साब, ये मनी हम जोसेफ को देना मांगता. हम थोड़ी देर के लिए जा सकता है?”
मैंने उसे जाने की इजाज़त दी, तो वह फौरन वहां से चली गई. तभी मेरे मोबाइल पर फ़ोन आ गया. फ़ोन मेरे दोस्त का था. उससे बात करने के बाद मैं फ्री हुआ ही था कि मुझे बाहर जोसेफ और जीनिया की आवाज़ें सुनाई दीं.
मैं बरामदे में आया. जीनिया जोसेफ की खटारा मोटरसाइकिल की पिछली सीट पर बैठी थी और ख़ुशी व उत्साह के साथ जोसेफ से कह रही थी, “जोसेफ, तुमको नहीं मालूम, हमने कितना ड्रामा करके ट्वेंटी थाउज़ेंड मनी का इंतज़ाम किया है. इस मनी से तुम अपना काम-धंधा बड़ी आसानी से जमा सकेंगा.”
मैं ग़ुस्से से पागल होकर दहाड़ उठा, “तो तुमने मुझे बेवकूफ़ बनाया. मैं अभी पुलिस को फ़ोन करके तुम्हारी धोखाधड़ी के बारे में बताकर तुम्हें जेल की हवा खिलाता हूं.”
मैंने सोचा था कि पुलिस की धमकी से वो डर जाएगी और मेरा पैसा वापस कर देगी. लेकिन वो निडर होकर बोली, “साब, आप पुलिस को बुलाओ. हम भी देखता है वो हमको कैसे अरेस्ट करता है. हम पुलिस को बोलेगा कि तुमने हमारा रेप किया. पुलिस पहले आपको अरेस्ट करके हवालात में डालेगा और बाद में इंवेस्टीगेशन करेगा. साब, आप हवालात चला गया, तो आप अपने बीवी-बच्चों को क्या कहेगा? यही कि आपने मेरे साथ रेप किया था.”
मैं हवा निकले गुब्बारे की तरह पिचक गया. मेरे तमाम कसे बल ढीले हो गए. तभी बहादुर, हमारा रसोइया आ गया. मैंने नफ़रत भरी निगाहों से जीनिया को देखा और उसे दफ़ा होने को कह दिया.
जीनिया बड़ी शान से जोसेफ की खटारा मोटरसाइकिल पर बैठी और वहां से चली गई. अंगारों पर लोटता मैं भीतर आया, तो बहादुर ने मेरे ग़ुस्से का कारण पूछा. मैंने उसे बताया कि जीनिया ने मेरे पर्स में से पांच सौ रुपए चुराए थे, इसलिए मैंने उसे नौकरी से निकाल दिया. साथ ही मैंने उससे यह भी कहा कि इस बारे में प्रज्ञा को कुछ न बताए. जो बताना होगा, मैं बता दूंगा. सहमति में सिर हिलाता हुआ बहादुर वहां से चला गया.
रात को प्रज्ञा मायके से लौटी तो मैं ख़ुद पर क़ाबू न रख सका और मैंने प्रज्ञा को सब कुछ बता दिया. मुझे बेहद हैरानी हुई कि बुरा मानने की बजाय प्रज्ञा मुस्कुराती हुई बोली, “तुम बिल्कुल ग़लत नहीं हो. सारा क़सूर तुम्हारी उम्र का है. ये उम्र ही ऐसी होती है कि आदमी का पांव फिसल ही जाता है. तभी तो किसी ने कहा है कि फॉर्टी इज़ नॉटी.”
“क्या मतलब?” मैं उलझकर रह गया.
प्रज्ञा राज़ खोलनेवाले अंदाज़ में बोली, “पुनीत, मुझे सब पता है. तुम क्या समझते हो कि मैं बेख़बर हूं? पर ऐसा नहीं है. मैंने ख़ुद तुम्हें जीनिया के क़रीब जाने की ढील दी थी, क्योंकि मैं जानती थी कि तुम थोड़ी बेवफ़ाई तो कर सकते हो, लेकिन मेरे विश्वास का शीशा चकनाचूर नहीं कर सकते.” वो लगातार बोले जा रही थी और मैं फटी-फटी आंखों से उसे देखे जा रहा था.
कुछ रुकते हुए फिर प्यार से प्रज्ञा बोली, “पुनीत, जब पति ट्रैक से उतरता है तो सबसे पहले उसकी पत्नी को ही पता चलता है, क्योंकि उसके दिमाग़ में ख़तरे की घंटी बज उठती है और ख़तरे की यह घंटी मेरे दिमाग़ में तब बज गई थी, जब जीनिया के छुट्टी करने पर तुम बड़ी बेचैनी से घर में इधर-उधर चक्कर लगाने लगे थे. मैं उसी दिन भांप गई थी कि तुम जीनिया को अपना दिल दे बैठे हो.”
आश्चर्य के समंदर में गोता लगाता मैं अचरज भरी नज़रों से प्रज्ञा को देखता रह गया. सहसा मेरे मुख से निकला, “अगर ऐसी बात थी, तो तुमने मुझे रोका क्यों नहीं? तुमने मुझे आगे क्यों बढ़ने दिया?”
“मैंने तुम्हें इसलिए नहीं रोका, क्योंकि मैं ख़ुद चाहती थी कि तुम बेवफ़ाई का यह खेल खेल सको. इस दिलचस्प अ़फेयर का ड्रॉप सीन जल्दी हो गया और अब मेरा बुद्धू घर को लौट आया है.” प्रज्ञा ने प्यार से मेरे गाल को सहलाते हुए कहा, “पुनीत मैं जानती थी कि जीनिया तुम्हारे लिए एक नया और अजीब खिलौना है. वो तुम्हारी मुहब्बत नहीं थी. उसकी खुली दावत तुम्हारे लिए बिगड़ने का सबब बन गई. लेकिन अगर ऐसी ही कोई दावत तुम्हें घर से बाहर मिल जाती, तो मैं बेख़बर ही रह जाती. मैं उसका तोड़ कैसे करती, इसलिए अक्सर मैं तुम्हें जान-बूझकर अकेला छोड़ देती थी, लेकिन एक हद तक, क्योंकि मैं जानती थी कि ऐसे व़क़्त में तुमसे उलझना मेरे लिए मुनासिब नहीं होगा. मेरी मुहब्बत एक दिन तुम्हें फिर से मेरे पास ले आएगी.” बोलते-बोलते प्रज्ञा की आवाज़ भर्राने लगी और मारे शर्म के मैंने अपना सिर झुका लिया.
मैं अपराध भाव से बोला, “प्रज्ञा, मैं तुम्हारा गुनाहगार हूं. तुम मुझे जो चाहे सज़ा दे सकती हो. लेकिन मुझे इतना बता दो कि अगर मैं भटक जाता तो…?”
“आप बिल्कुल नहीं भटक सकते थे, क्योंकि बहादुर को मैंने अपना जासूस बनाया हुआ था. वो आप पर और जीनिया पर पूरी नज़र रखता था और सारी रिपोर्ट मुझे देता रहता था. आज के ट्रेजडी भरे ड्रॉप सीन का आई विटनेस भी वो है.” और तब मुझ पर घड़ों पानी पड़ गया.
प्रज्ञा खिलखिलाकर हंस पड़ी. उस व़क़्त उसकी आंखों में चाहत के रंग थे. मैं कितना बड़ा अहमक था कि चाहत के असली रंग छोड़कर अंधेरों के पीछे चल पड़ा था.
मैंने शुरू में ही कहा था कि मेरी बीवी आम बीवियों से अलग है, तो मैंने झूठ नहीं कहा था. उसने मेरी बेवफ़ाई पर पर्दा डालकर बड़े धैर्य और समझदारी से मुझ पर दोबारा नकेल डाल दी थी.
“प्रज्ञा, आई एम सॉरी. मुझे माफ़ कर दो.”
“सुबह का भूला शाम को घर आ जाए तो उसे भूला नहीं कहते. ये तुम्हारी पहली भूल थी, इसलिए मैंने तुम्हें गुनाहगार होते हुए भी माफ़ कर दिया.” प्रज्ञा के चेहरे पर चाहत भरी मुस्कुराहट थी और आंखों में मेरे लिए ढेर सारी मुहब्बत.
मैंने उसे बांहों में भर लिया और उसके माथे पर प्यार भरा चुंबन अंकित कर दिया.