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कहानी : नामर्द

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       ~ कुमार चैतन्य 

मेरा शौहर नामर्द है और मुझे तलाक़ चाहिए.

वह मियां बीवी के झगड़े का आम सा केस था.

      अच्छी पढ़ी लिखी फैमिली थी दो प्यारे से बच्चे थे लेकिन खातून बज़िद थी कि उसको हर हाल में तलाक़ चाहिए, जबकि मेरा मुवक्किल (शौहर) सदमे की कैफ़ियत में था, जज साहब अच्छे आदमी थे उन्होंने कहा कि आप मियां बीवी को चेम्बर में ले जाकर कोशिश कर लें शायद बात बन जाए.

        शौहर का वकील होने के नाते मैंने फौरी हामी भर ली,जबकि बीवी के वकील ने इस पर अच्छा खासा हंगामा भी किया लेकिन खातून बातचीत के लिए राज़ी हो गई.

   चेम्बर में दोनों मियां बीवी मेरे सामने बैठे थे.

हां खातून आपको अपने शौहर से क्या मसला है.?

“वकील साहब यह शख्स मर्दाना तौर पर कमजोर है.”

     मैं उसकी बेबाकी पर हैरान रह गया वैसे तो कचहरी में ज़्यादातर बेबाक ख्वातीन से ही वास्ता पड़ता है लेकिन इस खातून की कुछ बात ही अलग थी, उसके शौहर ने एक नज़र ए शिकायत उस पर डाली और मेरी तरफ मदद की तलब नज़रों से घूरने लगा, मैं थोड़ा सा झल्ला गया कि कैसी औरत है जरा सा शर्म हया नहीं है.

     बहरहाल मैंने भी शर्म हया का तक़ाज़ा एक तरफ़ रखा और तेज़ तेज़ सवाल करना शुरू कर दिए..

    जब उससे पूछा :

क्या आपको अपने मर्द से गुज़ारा नहीं होता.?

तो कहती है कि माशाअल्लाह दो बच्चे हैं हमारे यह जिस्मानी तौर पर तो बिल्कुल ठीक हैं.

मैंने पूछा :

तो खातून फिर मर्दाना तौर पर कमजोर कैसे हुए.?

       वकील साहब मेरे बाबा देहात में रहते हैं और खेती किसानी करते हैं हम दो बहने हैं मेरे वालिद ने कभी “बिटिया रानी” से कम बुलाया ही नहीं जबकि मेरे शौहर मुझे “कुत्ती” कह कर बुलाते हैं!! यह कौन सी मर्दाना सिफत है वकील साहब.?

      मुझ से कोई छोटी मोटी गलती हो जाए तो यह मेरे पूरे मायके को गालियां देते हैं. आप ही बताएं कि इसमें मेरे मायके का क्या क़ुसूर है.? यह मर्दाना सिफत तो नहीं न कि दूसरों की घर वालियों को गाली दी जाए. वकील साहब मेरे बाबा मुझे शहजादी कहते हैं और यह गुस्से में मुझे “कंजरी” (रं…) कहते हैं.

    वकील साहब! मर्द तो वह होता है न जो कंजरी को भी इतनी इज्ज़त दे कि वह कंजरी न रहे और यह अपनी बीवी को ही कंजरी कह कर पुकारते हैं. यह कोई मर्दाना बात तो नहीं हुई न, वकील साहब अब आप ही बताएं क्या यह मर्दाना तौर पर कमजोर नहीं हैं.?

      मेरा तो सर शर्म से झुक गया. उसका शौहर उसकी तरफ देख कर बोला अगर यही मसला था तो तुम मुझे बता सकती थी न मुझ पर इस क़द्र ज़हनी टार्चर करने की क्या ज़रुरत थी.?

   आप को क्या लगता है आप जब मेरी माँ बहन के साथ किसी नाजायज़ 

रिश्ते को जोड़ते हैं तो मैं खुश होती हूँ.?

  इतने सालों से आपका किया गया ज़हनी टार्चर बर्दाश्त कर रही हूं इसका कौन हिसाब देगा.?

बीवी का पारा किसी तौर कम नहीं हो रहा था.

खैर जैसे तैसे मिन्नत समाजत करके समझा बुझा करके उनकी सुलह करवायी.

  मेरे मुवक्किल ने वादा किया कि आइंदा वह कभी अपनी बीवी को गाली नहीं देगा और फिर वह दोनों चले गए.

     मैं काफी देर तक वहीं चेम्बर में सोचता रहा कि गालियां तो मैंने भी उस खातून को उसके पहले जवाब पर दिल ही दिल में बहुत दी थीं तो शायद मैं भी नामर्द हूँ और शायद हमारा मुआशरा नामर्दों से भरा पड़ा हैl

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