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कहानी : लॉकडाउन

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   ~ पुष्पा गुप्ता 
मारुति सुजुकी कार जो कि कोटा से निकलकर भोपाल आ रही थी, उस कार में बैठा एक 21 साल का छात्र मयंक खिड़की से बाहर झांककर रास्ते में गुजरते पेड़-पौधों को देखे जा रहा था। मानो जैसे उसे भयंकर तूफान के बाद नई जिंदगी मिली हो। तभी उसका छोटा भाई उसका हाथ हिलाकर पूछता है “भैया कोटा में क्या हुआ था” उसने नज़रें मिलायीं। “आप बीमार क्यों पड़ गए थे? “अपने छोटे भाई के सवालों का जबाब देने से पहले उसने फिर कार की खिड़की से सड़क के उस पार देखा…..उसकी आँखों में वो घटना बार-बार घूम रही थी। वो उस संघर्ष को याद करता है जो उसने इतने दिन तक किया…वो अपने साथ बीती घटना को याद करने लगा…..फ्लैश बैक24 मार्च को जब मयंक कोचिंग जाता है तो देखता है कि आज कोचिंग में बहुत कम ही स्टूडेंट्स आए हैं। सर ने भी आज स्टूडेंट्स की अटेंडेंस लेकर कोरोना संक्रमण के चलते कोचिंग की 1 हफ्ते तक छुट्टी की घोषणा कर दी। मयंक लौटकर अपने रूम की तरह जाता है तो देखता है कि रास्ते सुनसान पड़े हैं। रोज की तरह आज कोटा जैसे शहर में चहलकदमी ना के बराबर  है। बाजार में भी इक्के दुक्के लोग ही दिखाई दे रहे हैं।मयंक रास्ते में चलते-चलते खुद में खोया सोचने लगा “इस महीने कोर्स खत्म हो जाता तो फिर आराम से मैं रिवीजन करता। जेईई की परीक्षा भी दो महीने बाद होने वाली है। तब तक पूरा सिलेबस कई बार दोहरा लेता लेकिन इस कोरोना ने सब बिगाड़ दिया। पूरे हफ्ते भर की छुट्टी हो गई है, अब क्या करूँ? 
“घर चला जाऊं” “नहीं-नहीं” अगले ही पल उसे याद आता है कि यदि मैं घर गया तो पढ़ाई नहीं हो पाएगी। घर में छोटे भाई के कारण पढ़ नहीं पाऊँगा। मैं यहीं रुक कर इन दिनों अच्छे से रिवीजन कर लेता हूँ” यह सोचकर मयंक मुस्कुराते हुए चलता जाता है।होस्टल की बिल्डिंग में अंदर जाते ही बिना किसी से कुछ कहे अपने रूम में जाने लगता है तभी पीछे से आवाज आती है। “मयंक कहाँ जा रहा है तू” ये विशेष की आवाज थी।”अपने रूम पर जा रहा हूँ पढ़ना है मुझे” मयंक अपना चश्मा ठीक करते हुए बोला।
“अरे यार…एक हफ्ते की छुट्टी है फिर भी पढ़ना है तुम्हें” विशेष ने अपना मुँह बनाया।”हाँ…बहुत सिलेबस बाकी हैं भाई” मयंक फिर भी नहीं माना।
“भाई एक दिन नहीं पढोगे तो सिलेबस पीछे नहीं छूट जायेगा” विशेष ने फिर उसे मनाने की नाकाम कोशिश की।
“नहीं….मुझे पढ़ना है” मयंक ने विशेष की एक ना सुनी।”ठीक है भाई…..हम मजे करते हैं तुम सिलेबस रटो” ये कहकर विशेष वहाँ से चला गया।मयंक रूम के अंदर पहुंचा जो होस्टल का सबसे अंदर और एकमात्र सिंगल रूम था जिसे मयंक के पापा ने बॉर्डन के हाथ पैर जोड़कर मयंक को दिलाया था। ना तो बाहर से हवा आती थी ना ही रोशनी, और सबसे बड़ी बात रूम का दरवाजा बंद होने के बाद बाहर क्या चल रहा है इसकी आवाज भी नहीं आती थी। “पापा ने ये कैसा रूम दिलाया है” यह बड़बड़ाते हुए मयंक रूम में गया और दरवाजा बंद करके स्टडी टेबल पर बैठ गया।मयंक के दिमाग में सिर्फ सिलेबस की बातें चल रही थीं। “चलो अब जल्दी से क्वांटम फिजिक्स के न्यूमेरिकल्स की प्रैक्टिस कर लेता हूँ” “अरे कल सर ने एक वीडियो ट्यूटोरियल के बारे में बताया था, पहले उसे सुन लेता हूँ” उसने हैडफोन उठाये और अपने मोबाइल से कनेक्ट कर लेक्चर सुनने लगा। इस बीच उसके मोबाइल पर लो बैटरी का नोटिफिकेशन आता है पर वो पहले ट्यूटोरियल कंप्लीट करने लगा और लो बैटरी को नजरअंदाज कर दिया।इसी बीच प्रधानमंत्री का डीडी नेशनल पर देश के नाम संबोधन होता है जिसके अंत में वह पूरे देश में 21 दिन के लॉकडाउन की घोषणा कर देते हैं। घोषणा होने के बाद कोटा में फंसे छात्रों को निकालने के लिए प्रशासन तैयार हो जाता है। कुछ ही देर बाद होस्टल का चौकीदार तेज़ी से होस्टल की सभी बिल्डिंग्स में घूमते हुए छात्रों को अपना सामान पैक करने के लिए कहता है। चौकीदार जोर-जोर से चिल्लाकर कह रहा था कि आधे घंटे में नुक्कड़ पर खड़ी बसों में सब बैठने जाएं। और अपने- अपने दोस्तों को भी खबर कर दें।
मयंक को कोटा आए लगभग 1 साल ही हुआ था लेकिन उसका कोई भी खास दोस्त नहीं था। वो यहाँ सिर्फ और सिर्फ पढ़ने आया था और पढ़ता था इसलिए वो टॉप 10 स्टूडेंट में भी आता था। मगर जरूरी नहीं जो क्लासेस में टॉप करता है वो जिंदगी में भी टॉप कर पाए। विशेष दौड़ा- दौड़ा मयंक के रूम का गेट जोर जोर से नोक करने लगा। “मयंक गेट खोल सब बच्चे अपने घर जा रहे हैं” विशेष उसे बुलाने के लिए चिल्ला रहा था।
दस से पंद्रह बार उसने गेट बजाया मगर कोई फायदा नहीं हुआ और थक हार के विशेष आगे बढ़ गया। उसने अपना सामान पैक किया और बिल्डिंग के सभी साथियों के साथ जाकर बस में बैठ गया। धीरे-धीरे पूरी होस्टल खाली हो गई। यहाँ मयंक के कानों में हेडफोन लगी थी और मोबाइल पर क्लास चल रही मगर वो उसी स्टडी टेबल पर ही सो गया था। मोबाइल पर उसकी क्लास भी चल रही थी जिसका वॉल्यूम इतना था कि बाहर क्या हो रहा है कुछ सुनाई नहीं देगा।सारे बच्चों के होस्टल खाली करने के बाद उसी चौकीदार ने अपनी लाठी से होस्टल के हर कमरे का दरवाजा खटखटाया ताकि कोई छात्र छूट गया हो तो उसे भेज सकें। जब किसी बच्चे की कोई खबर नहीं मिली तो वो होस्टल की बिल्डिंग का ताला बंद कर चला जाता है। कहते भी हैं ये अचानक होने वाली चीजें बहुत भयाभय होती हैं।यहां मयंक की नींद लगी थी वो बेखबर था कोटा शहर से जो आज यहाँ हुआ, वो यहां पहले कभी नहीं हुआ था। चौकीदार बाहर से बिजली का पावर स्विच बंद करके चला जाता है क्योंकि उसे भी अपने गाँव वापिस जाना था। करीब एक घण्टे बाद जब उसकी नींद टूटी तो उसने देखा रूम में अंधेरा पड़ा था। उसने हेडफोन हटाये और  मोबाइल को देखा तो मोबाइल की बैटरी डिस होने की कगार पर थी और लाइट थी नहीं। उसने स्विचबोर्ड के सारे स्विचस को बार-बार चालू बन्द किया मगर लाइट नहीं जली।वो रूम के गेट खोलता है तो बाहर सन्नाटा पसरा था। अंधेरे के कारण दूर-दूर तक उसे कुछ दिखाई नहीं दे रहा था। उसने आवाज लगाई “विशेष…..विशेष ….आकाश…रोहित” उसने विशेष के दरवाजे खटखटाये मगर बाहर से ताला लगा था।
“कोई है….रोहित…विकास” वो कैसे भी करके होस्टल के गेट तक गया। मगर होस्टल का चैनल लग चुका था मगर उस पर ताला डला था। उसने गुस्से में उस चैनल को हिलाया और चिल्लाने लगा मगर उसकी मेहनत बेकार थी। “गार्ड अंकल मुझे यहाँ से निकालो मैं फस गया हूँ” “कोई है बाहर मुझे निकालो यहां से मैं अंदर फस गया हूँ” उसकी आंखें कहीं न कहीं नम हो जाती हैं।जब बहुत चिल्लाने पर किसी का कोई जबाब नहीं आया तो वो मोबाइल की टार्च जला अपने रूम की तरफ भागा और अचानक ही उसका मोबाइल स्विच ऑफ हो जाता है। लाइट थी नहीं तो वो मोबाइल कैसे चार्ज करें। उसे घर जाना था उसे अपने पापा से बात करनी थी। मयंक की घबराहट से सांसें फूल रही थी। रूम के बाहर पूरी बिल्डिंग सुनसान, हर तरफ अंधेरा, उसे डर लगने लगा कि आखिर हुआ क्या है। वो रूम के एक कोने में जाकर बैठ गया। “कोई है जो मुझे बचा ले….कोई बचाओ मुझे” “पापा मम्मी मुझे यहां से बाहर निकालो” “मैं होस्टल में अकेला रह गया हूं” मयंक की आंखों में आँसू थे। वो फूट-फूट कर रो रहा था।  सहमी आवाज वो चिल्लाता रहा मगर उसे सुनने वाला वहाँ अब कोई नहीं था।वो बार-बार अपने मोबाइल का स्विच ऑन करने की कोशिश कर रहा था कि पापा को कॉल करूँ मगर उसकी कोशिश बेकार थी फ़ोन पूरी तरह से डेड हो चुका था। मयंक रूम के कोने में पड़ा फर्श पर ही उसकी झपकी लग जाती है। शाम को करीब 6:00 बजे घबराकर वो उठा और दबे पांव अपने रूम से बाहर निकला। धीरे-धीरे  वो होस्टल के बड़े दरवाजे की ओर गया और फिर जोर से आवाज लगाई। “अरे कोई है?” मुझे बाहर निकालो मैं अंदर फस गया हूँ” उसकी आंखें भरी थी वो रो रहा था। उसे अभी भी पता  नहीं था कि “मेरे साथ वाले सब कहां चले गए” लेकिन जब कोई आवाज नहीं आई तो अपने आंसू पोंछते हुए चुपचाप अपने रूम में चला गया और फिर रूम में जोर-जोर से चीखकर रोने लगा मगर दीवारों के अलावा उसे कोई सुनने वाला वहां नहीं था।
मयंक को अब भूख लगने लगी थी। उसे याद आया कि टिफिन वाले अंकल आएंगे, तभी उनके साथ बाहर निकल जाऊंगा। मगर देखते- देखते शाम के 8 बजे गए थे मगर अभी तक टिफिन नहीं आया। उसकी भूख लगातार बढ़ रही थी इसलिए वह मटके से बार-बार पानी निकाल कर पी रहा था। लेकिन मटके में केवल अब कुछ गिलास पानी ही बचा था। पानी पीकर जैसे-तैसे करके रात तो गुजर गई लेकिन जब वो सवेरे उठा तो ना मटके में पीने के किये एक बूंद थी ना ही देखने के लिए लाइट और ना ही बात करने -सुनने के लिए कोई व्यक्ति….. सुबह से ही भूख के मारे मयंक का हाल बेहाल होने लगा था। धीरे-धीरे उसकी प्यास बढ़ने लगी। वह होस्टल के मैन गेट पर  बैठा इस उम्मीद में चिल्लाए जा रहा था कि “कोई तो मेरी बात सुनले मुझे यहाँ से बाहर निकालो” वो रो रहा था।
सुबह से दोपहर हो जाती है मगर कोई उसे सुनने वाला नहीं था। भूख-प्यास से उसका हाल बेहाल हो गया था। अब उसमें चलने की भी हिम्मत नहीं थी। मयंक की हालत बद से बदतर होने लगी थी। प्यास के मारे उससे चला भी नहीं जा रहा था। उसे भूख प्यास से खुद को बचाने की फिकर सताने लगी थी। दरवाजे के पास पड़े हुए पूरा दिन गुजर गया और धीरे-धीरे पूरी रात गुजर गई। चिल्लाने के लिए अब उसके गले से आवाज भी नहीं निकलती वो एक अधमरे व्यक्ति की तरह दरवाजे के पास ही पड़ा था। आज भी कराहते-कराहते शाम होने को है लेकिन इन तीन दिनों में अभी तक एक परिंदा भी उसकी खबर लेने नहीं पहुंचा। शाम होते-होते मयंक की हालत बहुत ज्यादा बिगड़ने लगी और वह भूख प्यास के मारे बेसुध सा हो गया। वो सिर्फ मम्मी…..पापा बोले जा रहा था।
पूरे मोहल्ले को खाली देख कोटा के मशहूर चोर ने चोरी की योजना बनाई। यह चोर अपने कुछ साथियों को लेकर मोहल्ले की अलग अलग बिल्डिंग में देर रात घुसे। होस्टल के बगल वाली बिल्डिंग में चोर आया तो सिक्युरिटी गार्ड ने चोर को देख लिया। चोर पकड़े जाने के डर से बगल में बने होस्टल की छत का दरवाजा तोड़कर बिल्डिंग में आ जाता है। नीचे उतरकर हाथ में छोटी सी टॉर्च लिए वह इधर-उधर सामान खोजने लगता है। चोर की नज़र मयंक के कमरे पर पड़ती है जो खुला था। कमरे से उसका मोबाइल, घड़ी, पर्स आदि जल्दी-जल्दी झपटने लगता है। चोर रूम से इस आस में बाहर निकलता है कि आगे बहुत माल मिलेगा। वो होस्टल में मैन गेट की तरफ बढ़ने लगता है तभी उसकी छोटी सी टार्च का उजेला वहां अधमरे पड़े बच्चे पर पड़ा। चोर घबरा गया वो धीरे-धीई मयंक के नजदीक आने लगा। मयंक की आंखों ने रोशनी देखी। मयंक बार-बार कराह रहा था। चोर ने एक बार सोचा कि मुझे क्या करना इससे मैं अपना काम करके चला जाऊं और वो लौटने लगता है मगर पीछे से आवाज आती है “मम्मी….पापा मुझे अपने साथ ले चलो” “मैं यहाँ फस गया हूँ”उसकी बार-बार ये बातें सुनकर चोर रुक गया। उसने पीछे मुड़कर देखा तो मयंक की नज़रे उस पर थी। मगर मयंक लाचार वहीं पड़ा था। चोर दौड़कर उसके पास आया और उसका सिर अपनी गोद में रख लिया। मयंक की हालत बहुत खराब हो चुकी थी। बुखार से शरीर तप रहा था। लग रहा था जैसे अगले ही पल मरने वाला हो।”भाई क्या हुआ तुझे” चोर ने हमदर्दी दिखाई।”मैं यहाँ फस गया हूँ सब चले गए” उसी हालत में मयंक ने कहा।
“तुम्हारे दोस्तों ने तुम्हें नहीं बताया कि पूरे देश मे अगले इक्कीस दिन का लॉक डाउन हुआ है” चोर ने समझदारी से कहा”नहीं” वो कुछ बोल नहीं पा रहा था।”चलो मेरे साथ” चोर ने उसे उठाया और ले जाने लगा। मयंक कुछ नहीं बोला बस वो उस चोर को देख रहा था। “ये है कौन” मयंक ने एक पल सोचा। एक पल में मयंक की जान बचाना एक अनजान चोर की जिम्मेदारी बन गया। चोर छत की ओर जल्दी-जल्दी सीढ़ियां चढ़ते हुए मयंक को छत पर ले जाता है। छत पर पहुंचकर वो सोचता है कि जैसे-तैसे मयंक को बिल्डिंग से बाहर निकाल तो लेगा मगर इसे लेकर हॉस्पिटल कैसे ले जाऊँगा। पुलिस स्टेशन जाऊंगा तो फस जाऊंगा लेकिन यदि इसे यहीं छोड़ दिया तो ये मर जाएगा। चोर ने मयंक की आंखों में देखा। मयंक की आँखे उससे मानो ये कह रही थी कि “मुझे बचालो…. मुझे घर जाना है अपने मां-पापा के पास””यदि ये मर गया तो मैं अपने आप को कभी माफ नहीं कर पाऊंगा” चोर ने सोचा। चोर मयंक के अधमरे शरीर को छत के कोने से टिकाकर बगल वाली तथाकथित अमीर बिल्डिंग में पहुँच गया। उस बिल्डिंग के छत से उसने आवाज लगाई और मकान मालिक को जगाया। जब ऊपर सिक्योरिटी गार्ड आ गया जिसके हाथ में बंदूक थी और साथ ही बिल्डिंग के मालिक आ गए। चोर ने अपने हाथ जोड़ लिए और बोला “सेठ जी आप जो कहे मैं करने के लिए तैयार हूँ आप पुलिस भी बुला लीजिए मगर मेरी एक बात सुन लीजिए”
“सुनीता पुलिस को फोन करो” सेठ जी ने उसकी बात अनसुनी कर दी।”सेठ जी रहम….एक बच्चा इस बिल्डिंग में फंसा हुआ है उसकी हालत खराब हो चुकी है लगता है मरने वाला है आप उसकी जान बचा लीजिए फिर आप जो कहे मैं वो करूँगा” चोर सेठ से दया की भीख माँग रहा था।”भान सिंह देखना ऊपर कौनसा बच्चा रहा गया है” सेठ ने गार्ड को इशारा करके कहा।”मालिक ये सही कह रहा है यहाँ एक अधमरा बच्चा डला है” गार्ड ने छत पर पहुँचकर कहता है। सेठ ने तुरंत अपने फ़ोन से पुलिस को फ़ोन किया।
15 मिनिट बाद सब कुछ बदल गया। सेठ के घर के बाहर हलचल मची थी। आस पड़ोस के लोग वहां जमा थे। एक तरफ पुलिस की गाड़ी थी तो एक तरफ ऐंबोलेन्स। पुलिस की गाढ़ी में वो चोर बैठा था जिसके हाथों में हथकड़ी लगी थी और एम्बोलेन्स में मयंक जिसे ग्लूकोज की बॉटल लगी थी। मयंक और चोर दोनो की जब नज़र मिली तो कई प्रश्न बिखरे पड़े थे जो आंखो ही आंखों में चल रहे थे।”तुम्हें हथकड़ी क्यों लगी हैं” मयंक ने कहा।”एक चोर के हाथों में हथकड़ी ही लगती हैं दोस्त” उसकी आँखों में आँसू थे। “तुमने तो मुझे बचाया है न” मयंक ने फिर कहा। “मैंने तुम्हें बचाया ये सिर्फ तुम जानते हो मगर पुलिस को लगता है को तुम्हारी इस हालत का जिम्मेदार मैं हूँ” चोर अभी भी मुस्कुरा रहा था।”क्यों” मयंक ने प्रश्न किया।पुलिस की गाढ़ी स्टार्ट होती है। चोर के होठों पे एक मुस्कुराहट थी जैसे उसके आजतक के सारे पापों को पुण्य में बदल दिया हो। मयंक की आँखे अभी भी अच्छी तरह से खुल नहीं रही थी। अगले दिन सुबह जैसे ही मयंक को होश आया। उसने पुलिस को सारी जानकारी दे दी कि किस तरह वह गलती से होस्टल अंदर रह गया था तब किसी भी आदमी ने आकर उसकी मदद नहीं की। पुलिस मयंक से उसके घर वालों की जानकारी लेकर  संपर्क करती है और उन्हें कोटा आकर अपने बेटे को साथ ले जाने के लिए कहती है। मगर मयंक कहीं खोया था “उस चोर का क्या हुआ” वो पुलिस वाले से इतना पूछने ही वाला था मगर वो पुलिस वाला वहाँ से जा चुका था।
शाम तक मयंक के पापा उसके छोटे भाई के साथ कोटा पहुंचते हैं और हॉस्पिटल जाकर मयंक को डिस्चार्ज कराते हैं। पास में खड़े पुलिस अधिकारी से मयंक कहता है कि “जिस आदमी ने मुझे बचाया, मैं एक बार उससे मिलना चाहता हूँ” मयंक के बार-बार कहने पर चोर को मयंक के पास बुलाया गया। जैसे ही मयंक इस चोर को देखता है उसकी आंखे नम हो जाती हैं,  आवाज़ लड़खड़ाने लगती है। मन ही मन कर वो कह रहा होता है कि आप न आये होते तो आज मैं जिंदा नहीं होता। दोनो के बीच सन्नाटा था मगर दोनों की आँखें बहुत कुछ कह रही थीं। मयंक सोचने लगा कि “चोर कौन है” उसकी आँखों से सिर्फ आँसू आ रहे थे। उसने पुलिस से उसे छोड़ने की गुजारिश की। पुलिस अधिकारी चोर की इंसानियत की तारीफ करते हैं और बिना किसी कार्यवाही के उसे छोड़ने का वादा करता है । मयंक भी राजी खुशी अपने पिता के साथ अपने घर को लौट आता है। प्रेजेंट डे
“कौन था वो आदमी” “एक चोर था या फरिश्ता” “मैं किसे अपना दोस्त कहूँ किसे नहीं” “वो दोस्त जो मुझे छोड़कर चले गए या उसे जिसने मेरी जान बचाने के लिए अपने परिवार का गुजारा छोड़ दिया।वो पढा लिखा नहीं था मगर उसने मुझे बिना जाने मेरी हेल्प की। एक तरफ तथाकथित शिक्षित लोग थे जो मुझे छोड़कर चले गए और एक था वो जो सिर्फ चोरी करने आया था मगर मेरी जान बचा के चला गया। “मैं किसे अपना कहूँ वो जो एक साल से साथ थे या वो जो एक दिन के लिए आया था” तमाम सवाल अपने अपने जबाब के इंतज़ार में खड़े थे मगर इनका पुख्ता जबाब असम्भव था। मयंक अभी भी खिड़की के उस पार पीछे छूटते पेड़ पौधों को देख रहा था।     ~ पुष्पा गुप्ता 

मारुति सुजुकी कार जो कि कोटा से निकलकर भोपाल आ रही थी, उस कार में बैठा एक 21 साल का छात्र मयंक खिड़की से बाहर झांककर रास्ते में गुजरते पेड़-पौधों को देखे जा रहा था। मानो जैसे उसे भयंकर तूफान के बाद नई जिंदगी मिली हो। तभी उसका छोटा भाई उसका हाथ हिलाकर पूछता है “भैया कोटा में क्या हुआ था” उसने नज़रें मिलायीं। “आप बीमार क्यों पड़ गए थे? “

अपने छोटे भाई के सवालों का जबाब देने से पहले उसने फिर कार की खिड़की से सड़क के उस पार देखा…..उसकी आँखों में वो घटना बार-बार घूम रही थी। वो उस संघर्ष को याद करता है जो उसने इतने दिन तक किया…वो अपने साथ बीती घटना को याद करने लगा…..

फ्लैश बैक

24 मार्च को जब मयंक कोचिंग जाता है तो देखता है कि आज कोचिंग में बहुत कम ही स्टूडेंट्स आए हैं। सर ने भी आज स्टूडेंट्स की अटेंडेंस लेकर कोरोना संक्रमण के चलते कोचिंग की 1 हफ्ते तक छुट्टी की घोषणा कर दी। मयंक लौटकर अपने रूम की तरह जाता है तो देखता है कि रास्ते सुनसान पड़े हैं। रोज की तरह आज कोटा जैसे शहर में चहलकदमी ना के बराबर  है। बाजार में भी इक्के दुक्के लोग ही दिखाई दे रहे हैं।

मयंक रास्ते में चलते-चलते खुद में खोया सोचने लगा “इस महीने कोर्स खत्म हो जाता तो फिर आराम से मैं रिवीजन करता। जेईई की परीक्षा भी दो महीने बाद होने वाली है। तब तक पूरा सिलेबस कई बार दोहरा लेता लेकिन इस कोरोना ने सब बिगाड़ दिया। पूरे हफ्ते भर की छुट्टी हो गई है, अब क्या करूँ? 

“घर चला जाऊं” “नहीं-नहीं” अगले ही पल उसे याद आता है कि यदि मैं घर गया तो पढ़ाई नहीं हो पाएगी। घर में छोटे भाई के कारण पढ़ नहीं पाऊँगा। मैं यहीं रुक कर इन दिनों अच्छे से रिवीजन कर लेता हूँ” यह सोचकर मयंक मुस्कुराते हुए चलता जाता है।

होस्टल की बिल्डिंग में अंदर जाते ही बिना किसी से कुछ कहे अपने रूम में जाने लगता है तभी पीछे से आवाज आती है। “मयंक कहाँ जा रहा है तू” ये विशेष की आवाज थी।

“अपने रूम पर जा रहा हूँ पढ़ना है मुझे” मयंक अपना चश्मा ठीक करते हुए बोला।

“अरे यार…एक हफ्ते की छुट्टी है फिर भी पढ़ना है तुम्हें” विशेष ने अपना मुँह बनाया।

“हाँ…बहुत सिलेबस बाकी हैं भाई” मयंक फिर भी नहीं माना।

“भाई एक दिन नहीं पढोगे तो सिलेबस पीछे नहीं छूट जायेगा” विशेष ने फिर उसे मनाने की नाकाम कोशिश की।

“नहीं….मुझे पढ़ना है” मयंक ने विशेष की एक ना सुनी।

“ठीक है भाई…..हम मजे करते हैं तुम सिलेबस रटो” ये कहकर विशेष वहाँ से चला गया।

मयंक रूम के अंदर पहुंचा जो होस्टल का सबसे अंदर और एकमात्र सिंगल रूम था जिसे मयंक के पापा ने बॉर्डन के हाथ पैर जोड़कर मयंक को दिलाया था। ना तो बाहर से हवा आती थी ना ही रोशनी, और सबसे बड़ी बात रूम का दरवाजा बंद होने के बाद बाहर क्या चल रहा है इसकी आवाज भी नहीं आती थी। “पापा ने ये कैसा रूम दिलाया है” यह बड़बड़ाते हुए मयंक रूम में गया और दरवाजा बंद करके स्टडी टेबल पर बैठ गया।

मयंक के दिमाग में सिर्फ सिलेबस की बातें चल रही थीं। “चलो अब जल्दी से क्वांटम फिजिक्स के न्यूमेरिकल्स की प्रैक्टिस कर लेता हूँ” “अरे कल सर ने एक वीडियो ट्यूटोरियल के बारे में बताया था, पहले उसे सुन लेता हूँ” उसने हैडफोन उठाये और अपने मोबाइल से कनेक्ट कर लेक्चर सुनने लगा। इस बीच उसके मोबाइल पर लो बैटरी का नोटिफिकेशन आता है पर वो पहले ट्यूटोरियल कंप्लीट करने लगा और लो बैटरी को नजरअंदाज कर दिया।

इसी बीच प्रधानमंत्री का डीडी नेशनल पर देश के नाम संबोधन होता है जिसके अंत में वह पूरे देश में 21 दिन के लॉकडाउन की घोषणा कर देते हैं। घोषणा होने के बाद कोटा में फंसे छात्रों को निकालने के लिए प्रशासन तैयार हो जाता है। कुछ ही देर बाद होस्टल का चौकीदार तेज़ी से होस्टल की सभी बिल्डिंग्स में घूमते हुए छात्रों को अपना सामान पैक करने के लिए कहता है। चौकीदार जोर-जोर से चिल्लाकर कह रहा था कि आधे घंटे में नुक्कड़ पर खड़ी बसों में सब बैठने जाएं। और अपने- अपने दोस्तों को भी खबर कर दें।

मयंक को कोटा आए लगभग 1 साल ही हुआ था लेकिन उसका कोई भी खास दोस्त नहीं था। वो यहाँ सिर्फ और सिर्फ पढ़ने आया था और पढ़ता था इसलिए वो टॉप 10 स्टूडेंट में भी आता था। मगर जरूरी नहीं जो क्लासेस में टॉप करता है वो जिंदगी में भी टॉप कर पाए। विशेष दौड़ा- दौड़ा मयंक के रूम का गेट जोर जोर से नोक करने लगा। “मयंक गेट खोल सब बच्चे अपने घर जा रहे हैं” विशेष उसे बुलाने के लिए चिल्ला रहा था।

दस से पंद्रह बार उसने गेट बजाया मगर कोई फायदा नहीं हुआ और थक हार के विशेष आगे बढ़ गया। उसने अपना सामान पैक किया और बिल्डिंग के सभी साथियों के साथ जाकर बस में बैठ गया। धीरे-धीरे पूरी होस्टल खाली हो गई। यहाँ मयंक के कानों में हेडफोन लगी थी और मोबाइल पर क्लास चल रही मगर वो उसी स्टडी टेबल पर ही सो गया था। मोबाइल पर उसकी क्लास भी चल रही थी जिसका वॉल्यूम इतना था कि बाहर क्या हो रहा है कुछ सुनाई नहीं देगा।

सारे बच्चों के होस्टल खाली करने के बाद उसी चौकीदार ने अपनी लाठी से होस्टल के हर कमरे का दरवाजा खटखटाया ताकि कोई छात्र छूट गया हो तो उसे भेज सकें। जब किसी बच्चे की कोई खबर नहीं मिली तो वो होस्टल की बिल्डिंग का ताला बंद कर चला जाता है। कहते भी हैं ये अचानक होने वाली चीजें बहुत भयाभय होती हैं।

यहां मयंक की नींद लगी थी वो बेखबर था कोटा शहर से जो आज यहाँ हुआ, वो यहां पहले कभी नहीं हुआ था। चौकीदार बाहर से बिजली का पावर स्विच बंद करके चला जाता है क्योंकि उसे भी अपने गाँव वापिस जाना था। करीब एक घण्टे बाद जब उसकी नींद टूटी तो उसने देखा रूम में अंधेरा पड़ा था। उसने हेडफोन हटाये और  मोबाइल को देखा तो मोबाइल की बैटरी डिस होने की कगार पर थी और लाइट थी नहीं। उसने स्विचबोर्ड के सारे स्विचस को बार-बार चालू बन्द किया मगर लाइट नहीं जली।

वो रूम के गेट खोलता है तो बाहर सन्नाटा पसरा था। अंधेरे के कारण दूर-दूर तक उसे कुछ दिखाई नहीं दे रहा था। उसने आवाज लगाई “विशेष…..विशेष ….आकाश…रोहित” उसने विशेष के दरवाजे खटखटाये मगर बाहर से ताला लगा था।

“कोई है….रोहित…विकास” वो कैसे भी करके होस्टल के गेट तक गया। मगर होस्टल का चैनल लग चुका था मगर उस पर ताला डला था। उसने गुस्से में उस चैनल को हिलाया और चिल्लाने लगा मगर उसकी मेहनत बेकार थी। “गार्ड अंकल मुझे यहाँ से निकालो मैं फस गया हूँ” “कोई है बाहर मुझे निकालो यहां से मैं अंदर फस गया हूँ” उसकी आंखें कहीं न कहीं नम हो जाती हैं।

जब बहुत चिल्लाने पर किसी का कोई जबाब नहीं आया तो वो मोबाइल की टार्च जला अपने रूम की तरफ भागा और अचानक ही उसका मोबाइल स्विच ऑफ हो जाता है। लाइट थी नहीं तो वो मोबाइल कैसे चार्ज करें। उसे घर जाना था उसे अपने पापा से बात करनी थी। मयंक की घबराहट से सांसें फूल रही थी। रूम के बाहर पूरी बिल्डिंग सुनसान, हर तरफ अंधेरा, उसे डर लगने लगा कि आखिर हुआ क्या है। वो रूम के एक कोने में जाकर बैठ गया। “कोई है जो मुझे बचा ले….कोई बचाओ मुझे” “पापा मम्मी मुझे यहां से बाहर निकालो” “मैं होस्टल में अकेला रह गया हूं” मयंक की आंखों में आँसू थे। वो फूट-फूट कर रो रहा था।  सहमी आवाज वो चिल्लाता रहा मगर उसे सुनने वाला वहाँ अब कोई नहीं था।

वो बार-बार अपने मोबाइल का स्विच ऑन करने की कोशिश कर रहा था कि पापा को कॉल करूँ मगर उसकी कोशिश बेकार थी फ़ोन पूरी तरह से डेड हो चुका था। मयंक रूम के कोने में पड़ा फर्श पर ही उसकी झपकी लग जाती है। शाम को करीब 6:00 बजे घबराकर वो उठा और दबे पांव अपने रूम से बाहर निकला। धीरे-धीरे  वो होस्टल के बड़े दरवाजे की ओर गया और फिर जोर से आवाज लगाई। “अरे कोई है?” मुझे बाहर निकालो मैं अंदर फस गया हूँ” उसकी आंखें भरी थी वो रो रहा था। उसे अभी भी पता  नहीं था कि “मेरे साथ वाले सब कहां चले गए” लेकिन जब कोई आवाज नहीं आई तो अपने आंसू पोंछते हुए चुपचाप अपने रूम में चला गया और फिर रूम में जोर-जोर से चीखकर रोने लगा मगर दीवारों के अलावा उसे कोई सुनने वाला वहां नहीं था।

मयंक को अब भूख लगने लगी थी। उसे याद आया कि टिफिन वाले अंकल आएंगे, तभी उनके साथ बाहर निकल जाऊंगा। मगर देखते- देखते शाम के 8 बजे गए थे मगर अभी तक टिफिन नहीं आया। उसकी भूख लगातार बढ़ रही थी इसलिए वह मटके से बार-बार पानी निकाल कर पी रहा था। लेकिन मटके में केवल अब कुछ गिलास पानी ही बचा था। पानी पीकर जैसे-तैसे करके रात तो गुजर गई लेकिन जब वो सवेरे उठा तो ना मटके में पीने के किये एक बूंद थी ना ही देखने के लिए लाइट और ना ही बात करने -सुनने के लिए कोई व्यक्ति….. सुबह से ही भूख के मारे मयंक का हाल बेहाल होने लगा था। धीरे-धीरे उसकी प्यास बढ़ने लगी। वह होस्टल के मैन गेट पर  बैठा इस उम्मीद में चिल्लाए जा रहा था कि “कोई तो मेरी बात सुनले मुझे यहाँ से बाहर निकालो” वो रो रहा था।

सुबह से दोपहर हो जाती है मगर कोई उसे सुनने वाला नहीं था। भूख-प्यास से उसका हाल बेहाल हो गया था। अब उसमें चलने की भी हिम्मत नहीं थी। मयंक की हालत बद से बदतर होने लगी थी। प्यास के मारे उससे चला भी नहीं जा रहा था। उसे भूख प्यास से खुद को बचाने की फिकर सताने लगी थी। दरवाजे के पास पड़े हुए पूरा दिन गुजर गया और धीरे-धीरे पूरी रात गुजर गई। चिल्लाने के लिए अब उसके गले से आवाज भी नहीं निकलती वो एक अधमरे व्यक्ति की तरह दरवाजे के पास ही पड़ा था। आज भी कराहते-कराहते शाम होने को है लेकिन इन तीन दिनों में अभी तक एक परिंदा भी उसकी खबर लेने नहीं पहुंचा। शाम होते-होते मयंक की हालत बहुत ज्यादा बिगड़ने लगी और वह भूख प्यास के मारे बेसुध सा हो गया। वो सिर्फ मम्मी…..पापा बोले जा रहा था।

पूरे मोहल्ले को खाली देख कोटा के मशहूर चोर ने चोरी की योजना बनाई। यह चोर अपने कुछ साथियों को लेकर मोहल्ले की अलग अलग बिल्डिंग में देर रात घुसे। होस्टल के बगल वाली बिल्डिंग में चोर आया तो सिक्युरिटी गार्ड ने चोर को देख लिया। चोर पकड़े जाने के डर से बगल में बने होस्टल की छत का दरवाजा तोड़कर बिल्डिंग में आ जाता है। नीचे उतरकर हाथ में छोटी सी टॉर्च लिए वह इधर-उधर सामान खोजने लगता है। चोर की नज़र मयंक के कमरे पर पड़ती है जो खुला था। कमरे से उसका मोबाइल, घड़ी, पर्स आदि जल्दी-जल्दी झपटने लगता है। चोर रूम से इस आस में बाहर निकलता है कि आगे बहुत माल मिलेगा। वो होस्टल में मैन गेट की तरफ बढ़ने लगता है तभी उसकी छोटी सी टार्च का उजेला वहां अधमरे पड़े बच्चे पर पड़ा। चोर घबरा गया वो धीरे-धीई मयंक के नजदीक आने लगा। मयंक की आंखों ने रोशनी देखी। मयंक बार-बार कराह रहा था। चोर ने एक बार सोचा कि मुझे क्या करना इससे मैं अपना काम करके चला जाऊं और वो लौटने लगता है मगर पीछे से आवाज आती है “मम्मी….पापा मुझे अपने साथ ले चलो” “मैं यहाँ फस गया हूँ”

उसकी बार-बार ये बातें सुनकर चोर रुक गया। उसने पीछे मुड़कर देखा तो मयंक की नज़रे उस पर थी। मगर मयंक लाचार वहीं पड़ा था। चोर दौड़कर उसके पास आया और उसका सिर अपनी गोद में रख लिया। मयंक की हालत बहुत खराब हो चुकी थी। बुखार से शरीर तप रहा था। लग रहा था जैसे अगले ही पल मरने वाला हो।

“भाई क्या हुआ तुझे” चोर ने हमदर्दी दिखाई।

“मैं यहाँ फस गया हूँ सब चले गए” उसी हालत में मयंक ने कहा।

“तुम्हारे दोस्तों ने तुम्हें नहीं बताया कि पूरे देश मे अगले इक्कीस दिन का लॉक डाउन हुआ है” चोर ने समझदारी से कहा

“नहीं” वो कुछ बोल नहीं पा रहा था।

“चलो मेरे साथ” चोर ने उसे उठाया और ले जाने लगा। मयंक कुछ नहीं बोला बस वो उस चोर को देख रहा था। “ये है कौन” मयंक ने एक पल सोचा। एक पल में मयंक की जान बचाना एक अनजान चोर की जिम्मेदारी बन गया। चोर छत की ओर जल्दी-जल्दी सीढ़ियां चढ़ते हुए मयंक को छत पर ले जाता है। छत पर पहुंचकर वो सोचता है कि जैसे-तैसे मयंक को बिल्डिंग से बाहर निकाल तो लेगा मगर इसे लेकर हॉस्पिटल कैसे ले जाऊँगा। पुलिस स्टेशन जाऊंगा तो फस जाऊंगा लेकिन यदि इसे यहीं छोड़ दिया तो ये मर जाएगा। चोर ने मयंक की आंखों में देखा। मयंक की आँखे उससे मानो ये कह रही थी कि “मुझे बचालो…. मुझे घर जाना है अपने मां-पापा के पास”

“यदि ये मर गया तो मैं अपने आप को कभी माफ नहीं कर पाऊंगा” चोर ने सोचा। चोर मयंक के अधमरे शरीर को छत के कोने से टिकाकर बगल वाली तथाकथित अमीर बिल्डिंग में पहुँच गया। उस बिल्डिंग के छत से उसने आवाज लगाई और मकान मालिक को जगाया। जब ऊपर सिक्योरिटी गार्ड आ गया जिसके हाथ में बंदूक थी और साथ ही बिल्डिंग के मालिक आ गए। चोर ने अपने हाथ जोड़ लिए और बोला “सेठ जी आप जो कहे मैं करने के लिए तैयार हूँ आप पुलिस भी बुला लीजिए मगर मेरी एक बात सुन लीजिए”

“सुनीता पुलिस को फोन करो” सेठ जी ने उसकी बात अनसुनी कर दी।

“सेठ जी रहम….एक बच्चा इस बिल्डिंग में फंसा हुआ है उसकी हालत खराब हो चुकी है लगता है मरने वाला है आप उसकी जान बचा लीजिए फिर आप जो कहे मैं वो करूँगा” चोर सेठ से दया की भीख माँग रहा था।

“भान सिंह देखना ऊपर कौनसा बच्चा रहा गया है” सेठ ने गार्ड को इशारा करके कहा।

“मालिक ये सही कह रहा है यहाँ एक अधमरा बच्चा डला है” गार्ड ने छत पर पहुँचकर कहता है। सेठ ने तुरंत अपने फ़ोन से पुलिस को फ़ोन किया।

15 मिनिट बाद सब कुछ बदल गया। सेठ के घर के बाहर हलचल मची थी। आस पड़ोस के लोग वहां जमा थे। एक तरफ पुलिस की गाड़ी थी तो एक तरफ ऐंबोलेन्स। पुलिस की गाढ़ी में वो चोर बैठा था जिसके हाथों में हथकड़ी लगी थी और एम्बोलेन्स में मयंक जिसे ग्लूकोज की बॉटल लगी थी। मयंक और चोर दोनो की जब नज़र मिली तो कई प्रश्न बिखरे पड़े थे जो आंखो ही आंखों में चल रहे थे।

“तुम्हें हथकड़ी क्यों लगी हैं” मयंक ने कहा।

“एक चोर के हाथों में हथकड़ी ही लगती हैं दोस्त” उसकी आँखों में आँसू थे।

 “तुमने तो मुझे बचाया है न” मयंक ने फिर कहा।

 “मैंने तुम्हें बचाया ये सिर्फ तुम जानते हो मगर पुलिस को लगता है को तुम्हारी इस हालत का जिम्मेदार मैं हूँ” चोर अभी भी मुस्कुरा रहा था।

“क्यों” मयंक ने प्रश्न किया।

पुलिस की गाढ़ी स्टार्ट होती है। चोर के होठों पे एक मुस्कुराहट थी जैसे उसके आजतक के सारे पापों को पुण्य में बदल दिया हो। मयंक की आँखे अभी भी अच्छी तरह से खुल नहीं रही थी। अगले दिन सुबह जैसे ही मयंक को होश आया। उसने पुलिस को सारी जानकारी दे दी कि किस तरह वह गलती से होस्टल अंदर रह गया था तब किसी भी आदमी ने आकर उसकी मदद नहीं की। पुलिस मयंक से उसके घर वालों की जानकारी लेकर  संपर्क करती है और उन्हें कोटा आकर अपने बेटे को साथ ले जाने के लिए कहती है। मगर मयंक कहीं खोया था “उस चोर का क्या हुआ” वो पुलिस वाले से इतना पूछने ही वाला था मगर वो पुलिस वाला वहाँ से जा चुका था।

शाम तक मयंक के पापा उसके छोटे भाई के साथ कोटा पहुंचते हैं और हॉस्पिटल जाकर मयंक को डिस्चार्ज कराते हैं। पास में खड़े पुलिस अधिकारी से मयंक कहता है कि “जिस आदमी ने मुझे बचाया, मैं एक बार उससे मिलना चाहता हूँ” मयंक के बार-बार कहने पर चोर को मयंक के पास बुलाया गया। जैसे ही मयंक इस चोर को देखता है उसकी आंखे नम हो जाती हैं,  आवाज़ लड़खड़ाने लगती है। मन ही मन कर वो कह रहा होता है कि आप न आये होते तो आज मैं जिंदा नहीं होता। दोनो के बीच सन्नाटा था मगर दोनों की आँखें बहुत कुछ कह रही थीं। मयंक सोचने लगा कि “चोर कौन है” उसकी आँखों से सिर्फ आँसू आ रहे थे। उसने पुलिस से उसे छोड़ने की गुजारिश की। पुलिस अधिकारी चोर की इंसानियत की तारीफ करते हैं और बिना किसी कार्यवाही के उसे छोड़ने का वादा करता है । मयंक भी राजी खुशी अपने पिता के साथ अपने घर को लौट आता है।

 प्रेजेंट डे

“कौन था वो आदमी” “एक चोर था या फरिश्ता” “मैं किसे अपना दोस्त कहूँ किसे नहीं” “वो दोस्त जो मुझे छोड़कर चले गए या उसे जिसने मेरी जान बचाने के लिए अपने परिवार का गुजारा छोड़ दिया।वो पढा लिखा नहीं था मगर उसने मुझे बिना जाने मेरी हेल्प की। एक तरफ तथाकथित शिक्षित लोग थे जो मुझे छोड़कर चले गए और एक था वो जो सिर्फ चोरी करने आया था मगर मेरी जान बचा के चला गया। “मैं किसे अपना कहूँ वो जो एक साल से साथ थे या वो जो एक दिन के लिए आया था” तमाम सवाल अपने अपने जबाब के इंतज़ार में खड़े थे मगर इनका पुख्ता जबाब असम्भव था। मयंक अभी भी खिड़की के उस पार पीछे छूटते पेड़ पौधों को देख रहा था।

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