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कहानी :  नये जमाने की औरतें

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        प्रखर अरोड़ा

      यह कथा तब की है, जब इंसान अपना घर परिवार बसा चुका था. स्त्री और पुरुष के कार्यों का सीमांकन हो गया था.

     औरतें घर का और मर्द बाहर का काम देखा करते थे। औरत और मर्द अच्छी तरह से जी रहे थे। बच्चों और बूढों का जीवन खुशहाल था। 

      हिरिया और जिरिया नामक दो सगी बहनों का विवाह मंगरू और झगरू नामक दो सगे भाइयों से हुआ था। हिरिया को दो और जिरिया को एक बच्चा था। मंगरू और झगरू के मां बाप बूढ़े हो गये थे।

     दोनों बहने आपसी सहयोग से अनाज कूटने ,पीसने, खाना बनाने खिलाने के काम किया करती थीं। दोनों हमेशा  एक गाय और दो तीन बकरियाँ पाला करती थीं।

     गाय से खेती के लिए बैल घर भर के पीने के लिए दूध मिल जाता था। बकरी के बच्चे बेचकर उसके पैसे दोनों अपने पास रखा करती थीं। उस पैसे से दोनों बहने अपने लिए छोटे मोटे चांदी सोने के गहने खरीदा करती थी। 

     उनके इस मिलीजुली मेहनत के परिणामस्वरूप परिवार के नन्हें मुन्ने बच्चों के साथ उनके सास ससुर भी स्वस्थ खुशहाल जीवन जी रहे थे। वैसे परिवार की इस खुशहाली में मंगरू और झगरू दोनों भाइयों का भी बड़ा हाथ था।

     मगर उन दोनों भाइयों को यह लगता था कि यह खुशहाली केवल उनके द्वारा खेतों में पसीना बहाने से आ रही है। घर की औरतें तो मौज कर रही हैं। मंगरू तो नहीं मगर झगरू जिरिया से हमेशा कुछ न कुछ बोल जाते थे। जिरिया नाराज होती थी मगर हिरिया अपनी बहन कों समझा लिया करती थी। 

        एक दिन झगरू जिरिया से झगड़ा कर बहुत कुछ बोल गये। जिरिया को हिरिया ने समझाया मगर जिरिया को हार्दिक कष्ट हुआ था। झगरू ने उसे निकम्मी बेकार कह दिया था। दोनों बहुत देर तक बात करती रहीं, और अपने पतियों को ठीक करने की योजना बना लिया। 

      अगले दिन दोनों बहनों ने बिस्तर नहीं छोड़ा। मंगरू ने हिरिया के पास जाकर इसका कारण पूछा। हिरिया बोली मैं अब एकदिन भी इस किचकिच में नहीं रहूंगी, दोनों भाई अलग हो जाओ।

      इस बात पर हंगामा खड़ा हो गया मगर हिरिया अडिग हो गयी। खेत घर का बंटवारा हो गया। गाय हिरिया के तो बकरियाँ जिरिया के हिस्से मे आई। अब बंटवारा सास ससुर का होना था क्योंकि दोनों ही सास ससुर को इकट्ठा अपने साथ रहने को राजी नहीं थीं। जिसे आजतक भगवान अलग नहीं किये उन्हें बेटों के बंटवारे ने अलग कर दिया। 

       हिरिया की गाय और जिरिया की बकरियाँ अगले दिन बिक गई। क्योंकि बच्चों के देखभाल के बाद इनके लिए समय नहीं बच पाता था। एक दिन जब झगरू हल जोतने जा रहे थे तभी जिरिया ने उनको रोक लिया।

     उसने कहा घर में आटा, चावल नहीं है। तो मैं क्या करूँ? यह तुम्हारी जिम्मेदारी है। मुझ अकेले से न तो चक्की चलेगी न ही ओखली मूसल। या तो चलो मेरे साथ आटा पिसवाओ,धान कुटाई कराओ नहीं तो सिर पर लादकर शहर से कुटवा पिसवाकर लाओ।

     मरता क्या नहीं करता पूरा दिन शहर ले जाकर गेहूं पिसाने और धान कुरान में लग गया। इसीके अगले दिन मंगरू के साथ भी यही हुआ। 

     अब आटा ,चावल के काम से दोनों बहनों का छुटकारा हो गया। यहाँ तक कि मसाले भी पिसे हुए आने लगे। एक दिन बरसात में जिरिया बोली कि आज खाना नहीं बन सकेगा। लकड़ी गीली हो गयी है, गाय रहती थी तो ऐसे समय उसके कंडे बहुत काम आते थे।

    यह बीमारी लाइलाज थी अगले दिन गैस कनेक्शन लेना पड़ा।यह छूत की बीमारी थी हिरिया को लगनी ही थी। बरसात के बाद भी गैस पर ही खाना बनने लगा, दोनों के आंखों को लकड़ी का धुंवा बरदास्त नहीं होता। अब हर महीने दोनों भाई घर से रूपये लेकर गैस हराने जाने लगे।

         गृहस्थी का खर्च बढ गया आमदनी रही नहीं। दोनों भाइयों के घर खरीद कर दूध आने लगा। खर्च से मजबूर होकर मंगरू को विदेश नौकरी करने जाना पड़ा।

     बेचारे झगरू बीमार पड़ गये, नौकरी नहीं कर सकते। इसलिए बेचारी जिरिया को आंगनबाड़ी की नौकरी करनी पड़ी। मंगरू के भेजे पैसे से हिरिया ने स्कूटी लिया है। हर हफ्ते उसी से बाजार करने शहर जाती है। उसके पीछे उसकी बहन जिरिया उसके कमर को कसकर पकड़कर बैठती है।

    कोई कुछ कहता है तो बोलती हैं “हम नये जमाने की औरतें हैं”। तभी से मंगरू, झगरू, उनके माता पिता और बच्चे मुरझाये से रहते हैं, न जाने उन्हें क्या हो गया है।

    खुश तो हिरिया जिरिया भी नहीं है, मगर वह अपनी यह नाखुशी पाउडर, क्रीम, लिपिस्टिक और काले कृत्रिम बालों के पीछे बहुत खूबसूरती से छिपा लेती है जिसे आज का पुरुष समाज देख नहीं पाता।

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