Site icon अग्नि आलोक

जेएनयू की बर्बादी की कहानी ….संपत्तियों को बेचने की तैयारी

Share

नई दिल्ली। सत्ता संरक्षित ताकतों द्वारा पिछले 10 सालों से जेएनयू को बदनाम करने के लिए चलाए गए अभियान का मकसद अब खुल कर सामने आने लगा है। एक प्रीमियर विश्वविद्यालय जिसमें देश और समाज के वंचित छात्र-छात्राओं को पढ़ने का मौका मिल जाता था, को किस तरह से ध्वस्त किया जा रहा है। जेएनयू उसकी जीती जागती मिसाल है।

इसके लिए केंद्र की मोदी सरकार ने कैंपस में ऐसे वीसी बैठा रही है जो उसकी बर्बादी की इस कहानी को उसके अंजाम तक पहुंचा सकें। जगदेश कुमार से जो शुरुआत हुई तो वह मौजूदा वीसी तक जारी है। यूजीसी के चेयरमैन पद पर नियुक्त होने से पहले जेएनयू के वीसी के तौर पर जगदेश कुमार ने उसे बर्बाद करने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी। 

अब उन्होंने बैटन जेएनयू की मौजूदा वीसी सांतिश्री धुलिपुदी पंडित को दे दिया है। वह जगदेश कुमार से भी तेज गति से उस सिलसिले को आगे बढ़ा रही हैं। इसी कड़ी में उन्होंने जेएनयू की भौतिक बुनियाद पर ही चोट कर दी है। उन्होंने विश्वविद्यालय की दो संपत्तियों को पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप के तहत विकसित करने का फैसला किया है जिससे संस्था के लिए जरूरी फंड मुहैया कराया जा सके। छात्रों, अध्यापकों और नेताओं के एक हिस्से ने इसका कड़ा विरोध किया है।

पंडित ने दि टेलीग्राफ को बताया कि साल दर साल शिक्षा मंत्रालय से जेएनयू की ग्रांट बढ़ने के बावजूद विश्वविद्यालय को फंड के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है। उन्होंने बताया कि वह तानसेन मार्ग और फिक्की आडीटोरियम के पीछे स्थित गोमती गेस्ट हाउस और फिरोज शाह कोटला मार्ग पर स्थित जेएनयू सेंटर जहां से आजकल इंडियन कौंसिल ऑफ हिस्टोरिकल रिसर्च का कामकाज चलता है, दोनों को विकसित करने की योजना है। उन्होंने बताया कि यूजीसी की भी वहां आफिस है। इनमें से कोई भी जेएनयू को कोई किराया नहीं देता है।

हालांकि पंडित ने संपत्ति को बेचने की संभावना से इंकार किया है। लेकिन वह जो भी कहें यह प्रक्रिया उसी दिशा में उठाया गया कदम है। उन्होंने कहा कि फिरोजशाह रोड की संपत्ति को पीपीपी मोड में मल्टीस्टोरी बिल्डिंग के तौर पर विकसित किया जा सकता है। और फिर उसे दफ्तरों के लिए किराए पर दिया जा सकता है। जबकि गोमती गेस्ट हाउस को किसी निजी संस्था को मैनेज करने के लिए दिया जा सकता है जो बदले में जेएनयू को कुछ पैसा दे।

शिक्षा मंत्रालय को भेजे जाने से पहले दोनों प्रस्तावों को विश्वविद्यालय की एक्जीक्यूटिव कौंसिल और एकैडमिक कौंसिल के पास भेजे जाने की संभावना है। पंडित की यह योजना उस समय आयी जब जेएनयू छात्रसंघ के पदाधिकारी अनिश्चित कालीन अनशन पर बैठे हैं। और उनकी प्रमुख मांगों में एक मेरिट-कम-मीन्स (एमसीएम) स्कॉलरशिप को 2000 से बढ़ाकर 5000 रुपये करने की मांग शामिल है।

11 अगस्त से अनशन पर बैठे सात पदाधिकारियों में से एक धनंजय ने कहा कि छात्रसंघ संपत्ति के निजीकरण के खिलाफ है। उन्होंने कहा कि ऐसे समय में जबकि नरेंद्र मोदी सरकार कारपोरेट घरानों को लाखों करोड़ रुपये सब्सिडी दे रही है तो उच्च शिक्षा का फंड कम कने का कोई तुक नहीं बनता है।

उन्होंने कहा कि मेस बिल तकरीबन 4000 रुपये तक बढ़ गया है। पहले इस बात पर सहमति बनी थी कि एमसीएम मेस बिल को कवर कर लेगा। लेकिन प्रशासन मांगों को सुनने के लिए तैयार ही नहीं है।

एक बयान में छात्रसंघ ने कहा कि गोमती गेस्ट हाउस वह जगह है जहां से जेएनयू की शुरुआत हुई थी और इंडियन स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज (आईएसआईएस) के पाठ्यक्रम को वहां शुरू में पढ़ाया जाता था। विजिटिंग प्रोफेसर और डेलीगेट्स को अक्सर यहां ठहराया जाता है।

बयान में कहा गया है कि यह वर्षों पुरानी निजीकरण योजना के खेल का हिस्सा है जहां सरकारें संपत्तियों को बेचती हैं। एक साथ पूरा नहीं बल्कि उन्हें टुकड़ों-टुकड़ों में करके। अगली बार प्रशासन जेएनयू के दूसरे हिस्सों को व्यवसायिक उद्देश्य से किराये पर देना शुरू कर देगा।

छात्रसंघ ने छात्रों से आह्वान करते हुए कहा कि हम छात्र समुदाय से गोमती गेस्ट हाउस के निजीकरण के विरोध में खड़े होने और फंड की कमी के नकली बहाने को खारिज की अपील करते हैं। अगर सरकार सुपर अमीर लोगों को लाखों-लाख करोड़ रुपये सब्सिडी के तौर पर देने का फैसला करती है तो उसको उच्च शिक्षा के बजट को कम करने का कोई अधिकार नहीं है।

जेएनयू में शिक्षकों के संगठन की अध्यक्ष मौसमी बसु ने विश्वविद्यालयों की रैंकिंग में जेएनयू के लगातार देश में बेहतरीन स्थान पर रहने के बावजूद सरकार द्वारा संस्था के फंड में कटौती के फैसले पर सवाल उठाया।

सीपीआई के राज्यसभा सदस्य संदोष कुमार पी ने रविवार को शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान को पत्र लिखकर उनसे जेएनयू को जरूरी फंड मुहैया कराने का निवेदन किया।

उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय की संपत्ति से पैसा उगाहने की दिशा कुछ और नहीं बल्कि प्राइम लोकेशन की जमीनों को औने-पौने दामों पर निजी हाथों में सौंपने की तैयारी है।

उन्होंने लिखा कि हम आप से तत्काल जेएनयू समेत दूसरे केंद्रीय विश्वविद्यालयों के फंड की कमी की जरूरत को पूरा करने की मांग करते हैं। मैं आप से यह भी मांग करता हूं कि जेएनयू को इंस्टीट्यूट ऑफ एमिनेंस घोषित किया जाए। और उससे जुड़े इंफ्रास्ट्रक्चर, प्रोमोशन और स्कॉलरशिप जैसे सभी सवालों को तत्काल हल किया जाए।

इतिहासकार सोहेल हाशमी ने टेलीग्राफ से बातचीत में कहा कि जेएनयू के पास आईएसआईएस से गोमती गेस्ट हाउस और 35 फिरोज शाह रोड प्रापर्टी दोनों का मालिकाना था  और 1970 में उसने विश्वविद्यालय के साथ उसे शामिल कर लिया।

आईएसआईएस सप्रू हाउसल (बाराखंबा रोड पर स्थित विदेश मंत्रालय के थिंक टैंक का दफ्तर, इंडियन कौंसिल ऑफ वर्ल्ड एफेयर्स) से काम करता था। वो इंटरनेशनल रिलेसंश में पीएचडी का कोर्स कराते थे। और उसके छात्र गोमती गेस्ट हाउस में रुका करते थे।

हाशमी जिन्होंने 1972 से 1981 के बीच जेएनयू में पढ़ाई की, ने बताया कि सीपीएम के पूर्व महासचिव प्रकाश करात, जेएनयू स्टूडेंट यूनियन के पहले अध्यक्ष ओपी शुक्ला और पूर्व जेएनयू प्रोफेसर पुष्पेश पंत गोमती गेस्ट हाउस के रहवासी थे।

हाशमी ने बताया कि 35 फिरोजशाह रोड के पास एक आडिटोरियम हुआ करता था जिसे बहुत पहले ध्वस्त कर दिया गया।

उन्होंने बताया कि आईएसआईएस के कुछ शिक्षक भी वहां रूका करते थे….स्क़ॉलर गोमती गेस्ट हाउस में रुकना पसंद करते थे जिससे वो सप्रू हाउस लाइब्रेरी का इस्तेमाल कर सकें जिसमें न्यूजपेपर क्लिंपिंग का अद्भुत भंडार था। उस समय जेएनयू सिटी सेंटर के नाम से जाने जाने वाले फिरोज शाह रोड परिसर को न्यू परिसर (दक्षिण दिल्ली) से जोड़ने वाली एक बस हुआ करती थी।

यह कहने की जगह की हम देश की टॉप तीन विश्वविद्यालयों में आते हैं और मुझे फंड दीजिए जेएनयू प्रशासन शहर के हृदय स्थल पर स्थित संपत्ति को बेच देना चाहता है। एक विश्वविद्यालय से ऐसी आशा नहीं की जा सकती है।

टेलीग्राफ के सवालों का ह्वाट्सएप के जरिए दिए गए जवाब में वीसी पंडित ने कहा कि शिक्षा मंत्रालय जेएनयू को पूरी सब्सिडी देता है लेकिन जेएनयू के पास कम या फिर अपनी कोई आय नहीं है। समय के साथ परिसर में छात्रों, अध्यापकों और स्टाफ की संख्या में वृद्धि हो गयी है।

उन्होंने कहा कि जेएनयू के छात्र आज तक 10 रुपये से लेकर 20 रुपये तक की फीस देते हैं। शिक्षा मंत्रालय ने फंड बढ़ाया है। लेकिन अभी भी हम इंफ्रास्ट्रक्चर, किताबों, आनलाइन सोर्सेज, साफ्टवेयर आदि मदों में आने वाले खर्चों को मीट कर पाने में नाकाम हैं।

उन्होंने कहा कि जेएनयू को अपने खुद के फंड को पैदा करना होगा। इसलिए इस तरह के कुछ विचार सबसे बेहतर लगे। जिसमें जेएनयू की संपत्तियों को फिर से इस्तेमाल किया जा सकता है।और यह विश्वविद्यालय के लिए नियमित आय का स्रोत हो सकता है।

Exit mobile version