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हमारी नर्मदा परिक्रमा की कथा …..नर्मदा घाटी के लोग अपनी नर्मदा मैया को बचाने आगे आएंगे यात्रा तभी सफल होगी

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गोपाल राठी, पीपरिया

हमारे गांव और पिपरिया के बीच नर्मदा बहती है l बचपन में दोनो तरफ पैदल परिक्रमा वासियों का आना – जाना लगा रहता था l क्योंकि उन दिनों नर्मदा परिक्रमा पैदल ही होती थी l जो नियमानुसार तीन साल तीन महीने तेरह दिनों में पूर्ण होती थी l इस अवधि में परिकमा वासी चौमासे के चार माह एक जगह रुके रहते थे l उन दिनों परिक्रमा वासी अपना अपना भोजन स्वयं बनाते थे और भोजन के लिए खाद्य सामग्री गांव से जुटाते थे l हर घर से उन्हें आटा दाल चांवल आदि दिए जाते थे l इसे हमारे यहां सीधा बोला जाता था l हमारे घर आने वाले परिक्रमा वासियों को एक बड़ी कटोरी भर आटा दिया जाता था l अगर मैं घर मे रहता था तो यह आटा देने का काम मैं ही करता था l आटा देते देते मैं अपनी बाल सुलभ जिज्ञासावश उनसे नर्मदा परिकमा के बारे कई सवाल पूछता रहता था l जैसे कितने दिन लगेंगे ? कितनी दूर है ? रास्ते मे जंगल आता है ? रस्ते में शेर भालू हाथी सांप बिच्छू मिलते हैं तो आप कैसे बचते हैं ? उनसे परिक्रमा जिसे हम लोग परकम्मा बोलते है के बारे में बहुत सी जानकारी मिलती थी l उसी समय किसी परकम्मा वासी ने बताया था कि रस्ते में आदिवासी तीर कमान लेकर आते है और यात्रियों को लूट लेते हैं l बचपन मे परिक्रमा वासियों के मुंह से परिक्रमा के रोचक किस्से सुन सुन कर उस समय धार्मिक या इस तरह की कोई भावना तो नहीं पनपी l लेकिन परिक्रमा करने का रोमांच अवश्य जागा l जो बचपन से लेकर 62 वर्ष की उम्र तक किसी कोने में सुप्त अवस्था में दुबका रहा l
बरसों पहले बेगड़ जी की किताबें पढक़र नर्मदा परिक्रमा की इच्छा जागी थी l फिर श्री अशोक जमनानी ,सुरेश पटवा ,अरुण दनायक जी के नर्मदा यात्रा वृतांत पढ़ – पढ़ कर मन ही मन में यह तय हो गया कि जीवन मे एक बार नर्मदा की परिक्रमा ज़रूर करनी है l 
अपनी सेवा के अंतिम 5 वर्षों  में मंडला में काम करते हुए सहकर्मी साथी गजानंद यादव के सामने मैं अपनी इस इच्छा को अक्सर ज़ाहिर करता रहता था l इस बीच मेरी शारीरिक फिटनेस अपेक्षाकृत रूप से कमजोर हुई ,डायबिटीज ब्लैड प्रेसर की चपेट में आ गए l रही सही कसर यूरिक एसिड ने पूरी कर दी l घुटना और से लेकर पंजे तक असहनीय दर्द से हलाकान हो गए l वर्टिगो का प्रॉब्लम भी हो गया l एक किडनी तो बहुत पहले निकल गई थी l शारीरिक प्रतिकूलता के चलते पैदल नर्मदा परिक्रमा का संकल्प कमजोर पड़ता जा रहा था l विचार ये भी आया क्यों ना यह परिक्रमा जीप कार या बस से कर ली जाए l इस बीच गजानंद ने फोन करके कहा कि उसने नई मोटर साईकिल खरीदी है l अगर मन हो तो अपन दोनो नई मोटर साइकिल से नर्मदा यात्रा कर सकते हैं l मुझे मेरे सपने को पूरा होने की कुछ आस जगी l पैदल यात्रा का  अपना महत्व है उसका स्थान कोई वाहन नहीं ले सकता l कार जीप बस आदि 4 व्हील वाहनों से की जा रही नर्मदा परिक्रमा की तुलना में मुझे मोटर साइकिल से नर्मदा परिक्रमा करने का आइडिया ज़्यादा अच्छा लगा l क्योंकि अधिकांश पैदल मार्ग पर मोटर साइकिल भी चल सकती है l परिक्रमा में बिना ज़्यादा विचलन के हम नर्मदा और नर्मदा तट के साथ साथ चल सकते हैं l 
धार्मिक विधि विधान से की जाने वाली नर्मदा परकम्मा के पीछे व्यक्तिगत पुण्य और व्यक्तिगत मनोकामनाएं और मान्यता होती है l लेकिन हम दोनों साथियों की ऐसी कोई व्यक्तिगत कामना नहीं थी l ना हमें कोई पुण्य अर्जित करना था और ना अपने पापों का प्रायश्चित करना था lअंततः तय हुआ कि क्यों ना नर्मदा जी की वर्तमान स्थिति को केंद्र बनाकर चुटका के प्रस्तावित परमाणु बिजली घर के खतरों से नर्मदा घाटी के लोगों को सचेत किया जाय l मध्यप्रदेश की जीवन रेखा नर्मदा में जगह जगह बांध बनने से ,रेत के अंधाधुंध खनन ने और बहुत प्रतिकूल स्थिति खड़ी कर दी है l जगह जगह नर्मदा का प्रवाह अवरुद्ध हुआ है l हमारी अंधी आस्था ने भी नर्मदा को बहुत नुकसान पहुंचाया है l नर्मदा को केंद्र बिंदु बनाकर की गई हमारी नर्मदा परिकमा को हमने नर्मदा चेतना यात्रा दिया और चुटका से निकल पड़े l
चुटका और बरगी बांध विस्थापित संघ के साथी राजकुमार सिन्हा ,मुन्नालाल वर्मन  ,चुटका परमाणु विरोधी संघर्ष समिति के अध्यक्ष दादूलाल कुढ़ापे सहित चुटका के निवासियों ने जिस गर्मजोशी से हमे 7 मार्च को नर्मदा चेतना यात्रा पर रवाना किया था उसी आत्मीयता से उन्होंने 6 अप्रैल को हमारी वापिसी पर स्वागत किया l 
हमने लगभग 3000 किलोमीटर की यात्रा मोटरसाइकिल से और शेष 650 किलोमीटर की दूरी फोर व्हील से तय की l मित्रों से 6740.00 रुपये सहयोग राशि प्राप्त हुई l जिसका उपयोग वाहन के ईंधन (पेट्रोल ) के रूप में हुआ l
नर्मदा चेतना यात्रा (नर्मदा परिक्रमा ) पूर्ण होने पर बहुत से मित्र शुभचिंतक बधाई और शुभकामनाएं दे रहे है l यात्रा बिना बाधा, सकुशल पूरी होने की शुभकामनाओं के लिए आप सबका बारंबार आभार l लेकिनअसली यात्रा तो अब शुरू हुई है जिस दिन नर्मदा घाटी के भाई बहिन एकजुट होकर अपनी नर्मदा मैया को बचाने आगे आएंगे यात्रा तभी सफल मानी जाएगी l

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