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*कहानी : तुम अब बूढ़ी हो गई हो*

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       ~ दिव्यांशी मिश्रा, भोपाल

तमन्ना आइने के सामने खड़ी होकर खुद को निहार रही थी। कितने दिनों बाद उसने अपने आप को गौर से आइने में देखा था। वह भी तब, जब पति संदीप ने उसे टोक दिया।

” अब तुम बूढ़ी हो गई हो। तुम में अब वो पहले वाली बात नहीं”

आइने के सामने खड़ी होकर बस वो संदीप की बातों की समीक्षा कर रही थी। और आइने में खुद को देखकर धीरे-धीरे बुदबुदा रही थी, ” क्या वो सचमुच बूढ़ी हो गई है?”

काफी हद तक आइना जवाब दे चुका था। उसके बालों में हल्की सफेदी नजर आने लगी थी। चेहरे पर हल्की झुर्रियां। चेहरा भी पहले से काफी ढ़ला हुआ नजर आ रहा था। शरीर देखकर ऐसा लग रहा था जैसे आराम मांग रहा हो। ना पहले जैसा नूर था, ना ही चेहरे पर मुस्कुराहट। वह पहले जैसी वाकई नहीं थी। सचमुच बदल चुकी थी।

अब आइना बीता हुआ कल तो बता नहीं सकता। जो भी दिखाएगा, आज ही दिखाएगा। और आज जो जैसा है, वैसा ही दिखाएगा। कम से कम उसे झूठ बोलने की आदत नहीं।

उस सच का सामना तमन्ना नहीं कर पा रही थी। इस कारण आईने के सामने से हट गई और पलंग पर बैठी अकेली सोचती रही। संदीप ने कुछ गलत नहीं कहा। उम्र क्या है उसकी अभी? सिर्फ पैंतीस साल। और इस पैंतीस साल की उम्र में वो पचास साल की औरत जैसी हो गई है।

पचास साल की उम्र तो दूर की बात है, सत्तर साल की उम्र में भी लोग जिंदगी जीते हैं, पर वो तो पैंतीस साल की उम्र में ही जिंदगी से हार गई। पर इसमें गलती किसकी है? शायद खुद उसकी।

कैसे?

सोचते सोचते वो खुद अतीत के गलियारों में चली गई। जब वो शादी होकर इस घर में आई थी। घर में सास ससुर, पति संदीप, देवर निखिल और ननद प्राची थी। सब लोग बहुत अच्छे थे लेकिन तमन्ना की आदत थी कि वह किसी को कोई काम ना करने देती। जब कोई मदद भी करता तो आदर्श बहू बनने के चक्कर में कहती,

” अरे बहू के होते घर के लोग काम करेंगे, अच्छा लगता है क्या?”

सबको लगता की तमन्ना को शायद काम में मदद कराना पसंद नहीं, इसलिए धीरे-धीरे सब ने मदद करना छोड़ ही दिया। जब कोई कहता कि देखो तमन्ना ने पूरे घर को अकेले संभाल रखा है तो वो फूल कर कुप्पा हो जाती।

जब तमन्ना का बेटा प्रतीक हुआ, तब भी सासू मां कुछ करने की कोशिश करती तो तमन्ना उन्हें मना कर देती। सासू मां को भी यही लगता है कि शायद तमन्ना को उनका काम पसंद नहीं आता, इसलिए धीरे-धीरे उन्होंने प्रतीक के कामों से भी खुद को दूर कर लिया।

संदीप कई बार कहता, 

” तमन्ना अब तुम दिन भर घर में और बच्चे में लगी रहती हो। कभी मेरे लिए भी वक्त निकालो। मेरे साथ भी कुछ पल बिताओ”

तो तमन्ना संदीप को भी झिड़क देती, 

” तुम्हें सिर्फ अपनी ही पड़ी रहती है। देखते नहीं मैं कितना थक जाती हूं”

“अरे तो सबकी मदद लिया करो ना, किसने मना किया है। कामवाली हम अफोर्ड नहीं कर सकते, लेकिन कम से कम साथ मिलकर तो काम करवा ही सकते हैं ना”

” हां रहने दो, मुझे नहीं अच्छा लगता कि मेरे रहते कोई घर में काम करें। मैं खुद कर लूंगी”

” तमन्ना समझती क्यों नहीं? तुम इंसान हो कोई मशीन नहीं”

“हद है अपने घर का काम करने में कोई मशीन बन जाता है क्या?”

संदीप कहीं भी घूमने जाने के लिए कहता तो काम का बहाना बनाकर मना कर देती, 

” इतना काम तो पड़ा है कैसे जाऊं? फिर ऊपर से प्रतीक भी तो है”

“अरे तो मम्मी पापा संभाल लेंगे। थोड़ी देर की ही तो बात है”

” ना बाबा ना, मैं अपनी जिम्मेदारी से मुंह नहीं मोड़ सकती”

संदीप कुछ कह ना पाता।

धीरे-धीरे संदीप ने भी कहना छोड़ दिया। अब वो अपने दोस्तों के साथ ही कहीं घूमने जाता अन्यथा घर पर ही रहता। वक्त ऐसे ही गुजर रहा था। पहले ननद और फिर देवर की भी शादी हो गई। देवर की जॉब दूसरे शहर में थी तो जाहिर सी बात है देवरानी भी उसके साथ दूसरे शहर चली गई।

लेकिन तमन्ना, उसके अभी भी वही के वही हाल, लेकिन अब और बदतर हो गए। पहले किसी की मदद लेती नहीं थी, अब कोई मदद करता नहीं था। इस कारण अब खुद चिड़चिड़ी होने लगी थी।

” मेरी तो कोई मदद ही नहीं करता। दिन भर घर में लगी रहती हूं। देवरानी खुद तो देवर के साथ दूसरे शहर चली गई और मैं यहां अकेली सास ससुर की सेवा करती रहती हूं। मैं अकेली बहु हूं क्या, जिसके माथे ही सब कुछ है”

मन ही मन बड़-बड़ाती जाती और काम करती जाती। आज सुबह यही तो हुआ, जब पड़ोस वाली आंटी मम्मी जी से मिलने के लिए आई। बातों बातों में उन्होंने कहा,

” एक बात तो है भाभी जी, आपकी सेवा तो तमन्ना ही करती है। छोटी बहू तो अपने पति के साथ दूसरे शहर चली गई”

सुनकर तमन्ना को बड़ा अच्छा लगा कि उसकी तारीफ हो रही है लेकिन जैसे ही सासू मां ने जवाब दिया तमन्ना का मुंह उतर गया,

” देखिए बहन जी हमारे लिए तो हमारी दोनों बहू एक जैसी है। दोनों के लिए हमारे दिल में एक समान ही प्यार है”

” सारी सेवा तो मैं करूं और वो मैडम वहां बैठे-बैठे तारीफ के हकदार बन जाती है”

तमन्ना मन ही मन बड़बड़ाती हुई कमरे में गई जहां संदीप पहले से ही था। तमन्ना कुछ कहती उससे पहले ही संदीप ने तमन्ना से कहा,

” तमन्ना मेरा सामान पैक कर देना। मेरी दोस्तों के साथ गोवा की ट्रिप है। पूरे चार दिन बाद आऊंगा। इसलिए सामान उस हिसाब से पैक कर देना”

” आप गोवा जा रहे हो। आपने तो मुझे बताया ही नहीं”

” अब इसमें बताना क्या है? अचानक से प्लान बन गया तो जा रहा हूं”

“अरे ऐसे कैसे प्रोग्राम बन गया। अभी थोड़ी देर बाद ही मम्मी पापा और बच्चे भी निखिल भैया के घर जा रहे हैं और फिर तुम भी चले जाओगे तो मैं यहां अकेली रह जाऊंगी”

“अरे! तुम्हें तो अकेले रहने की आदत है। इसमें क्या नया है?”

संदीप ने बेरुखी से कहा, जो तमन्ना को बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगा। तमन्ना ने चिढ़ते हुए कहना शुरू किया,

“मैं अकेली दिन भर घर में खटती रहती हूं और तुम्हें गोवा घूमने की लगी है। एक पल भी नहीं सोचा तुमने अपनी बीवी के बारे में। इंसान हूं कोई मशीन नहीं”

” अच्छा! तमन्ना मुझे लग रहा है कि अब तुम बूढ़ी हो गई हो। अब तुम में वो बात नहीं रही”

” आप ऐसा कैसे कह सकते हो”

” मैंने तुम्हारा साथ नहीं छोड़ा था बल्कि तुम मेरा साथ छोड़कर बस एक आदर्श बहू बनने के सफर पर निकल गई थी। तुम आदर्श बहू बन गई, आदर्श मां बन गई, लेकिन पत्नी वो तो तुम कभी बन नहीं पाई”

संदीप ने व्यंग करते हुए कहा। जिसने तमन्ना को झकझोर कर रख दिया। संदीप तो कह कर चला गया लेकिन तमन्ना अपने आपको आईने में निहारती ही रह गई। क्या सचमुच वो बूढ़ी हो चुकी हैं। बस यही सवाल बार बार अपने आप से करती।

गलती संदीप की नहीं थी, गलती तो उसी की थी। फिर उसे बुरा क्यों लग रहा है? अपने आपको आदर्श बहू कहलाने के चक्कर में अपने पति को कहाँ पीछे छोड़ दिया, यह अंदाजा भी नहीं रहा उसे।

एक बार फिर तमन्ना उठकर के आइने के सामने खड़ी हो गई। अब चाहे कुछ भी हो जाए मुझे अपने आप को हासिल करना ही है। जिसका दामन थाम कर वो इस घर में आई थी, उसे वापस हासिल करना है।

बस यही सोचकर तमन्ना अग्रसर हो गई थी अपने नए सफर पर, एक नई कोशिश के साथ अपने पति को हासिल करने।

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