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चुनाव आयोग की सख़्ती और आचार संहिता

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सुसंस्कृति परिहार

चुनाव आयोग की सख़्ती बेवजह नहीं है इस समय वह अप्रत्यक्ष तौर पर सुप्रीम कोर्ट के दबाव में है जरा सी चूक उसके कैरियर को ताप सकती है क्योंकि इलेक्टोरल बांड के पूरे खेल की जानकारी आयोग को थी उसने सरकार का साथ निभाया है।वह भूल गया कि वह एक स्वायत्त संस्था है तथा उसे देश में निष्पक्ष चुनाव करने की संविधान ने महती भूमिका प्रदान की। आयोग तीन सदस्यीय होता है ताकि मनमानी संभव ना हो।इनका चयन भी त्रिसदस्यीय समिति करती थी जिसमें एक सरकार का प्रतिनिधि,एक प्रतिपक्ष से तथा एक सर्वोच्च न्यायालय से होता था। पिछले माहों में जब सुको ने सरकार से कहा कि इस बार वे स्वयं इस समिति में होंगे तो भारत सरकार ने झट-पट संसद से एक कानून पास कर लिया जिसमें दो सरकार को और एक विपक्ष का सदस्य रहेगा सीधे-सीधे यह चयन समिति असंवैधानिक है। लेकिन कानून बनाकर सीजेआई को जो चुनौती दी गई है उसी का परिणाम है वह आयोग के प्रति सख़्त रवैया अपनाए हुए है। इसलिए हमें इस बार चुनाव आयोग की सख़्ती नज़र आ रही है।इधर दो आयोग के सदस्यों की हाल ही में नए कानून के तहत् नियुक्ति हुई हैं उन पर फैसला भी सुको में विचाराधीन है। संभवतः शीध्र ही इसका निराकरण हो जाएगा।

          ऐसा समझा  जा रहा है कि आयोग ने माई लार्ड की आज्ञा पालन को तरजीह देना शुरू कर दिया है लेकिन उनके अधीनस्थ बलों ने सामाजिक संगठनों को दबोचने के लिए  जिस तरह का आचरण रानी चेनम्मा की 200वीं जयंती को रोक कर इलाहाबाद  में किया है  वह अशोभनीय एवं निंदनीय है। आमतौर पर आचार संहिता के नियम राजनैतिक दलों के नेताओं और कार्यकर्ताओं के लिए ही होते हैं ताकि वे चुनाव के दौरान आम जनता को लुभाने में अपनी किसी धन, बल शक्ति का इस्तेमाल ना कर सकें।ये आम जनता के मताधिकार को सुरक्षित रखने के लिए है ताकि वे निष्पक्ष तौर पर अपने मत का उपयोग कर सकें। नागरिकों का भी कर्तव्य है वे आचार-संहिता का उल्लंघन करने वालों की शिकायत चुनाव अधिकारी या आयोग तक पहुंचाएं किंतु नागरिकों के सामाजिक कार्यक्रमों पर रोक लगाना नागरिक और सामाजिक मंच की तौहीन है। पिछले दिनों भारत सरकार में मंत्री और बंगलुरु से भाजपा की उम्मीदवार शोभा करंदलाजे ने एक रैली में तमिल और केरलिस्ट लोगों पर अपने राज्य में आतंकी गतिविधियों की ट्रेनिंग लेकर कर्नाटक में हमले करने, बम लगाने का आरोप लगाया है।इस आरोप की व्यापक प्रतिक्रिया हो रही है, डीएमके सरकार के मंत्री उदयनिधि ने चुनाव आयोग से इस पर एक्शन लेने तथा हेट स्पीच का मामला दर्ज करने का आग्रह किया है। चुनाव आयोग को यहां सख़्ती से आचार संहिता का परिपालन कराना होगा।

चुनाव आयोग को चाहिए कि वे अपने तमाम अधीनस्थ अधिकारियों को आचार संहिता के नियम और कानूनों से अवगत कराएं ताकि वे जुनून में आकर इसका दुरुपयोग ना करें। सख़्ती से काम का ये मतलब कतई नहीं है कि इससे आम नागरिक परेशान  हो जाएं, लेकिन जहां अनुचित हो वहां  चुनाव आयोग बराबर कार्रवाई करे।तभी आयोग की विश्वसनीयता  क़ायम होगी और तभी अधिक मतदान का आयोग का स्वप्न पूरा होगा। मतदाता भी निर्भीक होकर मतदान कर पाए, इसके लिए आयोग को भारी सतर्कता रखना होगी चुनाव आयोग के प्रति अभी जो माहौल है वह अविश्वसनीय है यह विश्वास तभी कायम होगा जब राजनैतिक सत्ता पर विराजमान लोगों पर भी आम दलों के लोगों की तरह तत्काल कार्रवाई होगी। इसके लिए आयोग के अधीनस्थ आए तमाम अधिकारी, कर्मचारी अहम भूमिका का निर्वहन कर सकते हैं। ज़रूरी है वे चुनाव काल में अपने को किसी सरकार के अधिकारी कर्मचारी ना समझें।इन पर ज़रुरी हो तो सख़्ती की जा सकती है क्योंकि लंबे काले से माहौल ख़राब चल रहा है।इनकी निगरानी की भी व्यवस्था हो तथा इस कार्य में सामाजिक कार्यकर्ताओं और गैर  राजनैतिक नागरिक समाज का सहयोग भी लिया जा सकता है।साथ जनता से प्राप्त शिकायतों पर तुरंत ध्यान देना होगा।

यह सच है कि आयोग  यदि ठान ले तो देश में एक अच्छी जनता की पसंदीदा सरकार बन सकती है। ईवीएम के वहम को दूर करना भी ज़रूरी है यह कार्य सौ प्रतिशत वीवीपैट से पर्ची निकाल कर हो सकता है। आइए निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने हम सब हाथ बढ़ाएं।

उम्मीद की जा सकती है कि इस बार केंद्रीय चुनाव आयोग किसी दबाव में ना रहकर केंचुआ की लिजलिजी स्थिति से उबरेगा और देश में लोकतंत्र की रक्षा में अपना अमूल्य योगदान देगा।

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