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मध्य प्रदेश में कर्ज लेकर पढ़ाई, पर नौकरी नहीं

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आत्महत्या के कगार पर पहुंची युवा पीढ़ी,बेरोजगारी की इन स्थितियों की वजह से प्रदेश के युवाओं को स्वाभाविक तौर पर आर्थिक समस्याओं से तो जूझना पड़ ही रहा है, उनकी शादियों में भी रुकावट आ रही है और उनमें सामाजिक अलगाव की भावनाएं बढ़ रही हैं।

मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री हर साल-छह महीने में रोजगार देने-दिलाने की घोषणा करते हैं और यह प्रदेश के बेरोजगार युवाओं के जख्मों पर नमक छिड़कने के माफिक ही है। यह कहने की वजह है। खेल और युवा कल्याण मंत्री ने विधानसभा में कांग्रेस विधायक मेवाराम जाटव के एक प्रश्न के लिखित उत्तर में बताया कि राज्य में बेरोजगारों की संख्या 39 लाख है और पिछले तीन साल के दौरान 21 लोगों को सरकारी नौकरी दी गई है।

पिछले साल मानसून सत्र में बताया गया था कि 1 अप्रैल तक प्रदेश में बेरोजगार युवाओं की संख्या 25.8 लाख थी। मध्य प्रदेश रोजगार पोर्टल के अनुसार, अभी यहां 38,86,455 युवा नौकरी मांगने के लिए कतार में खड़े हैं। इनमें से 12,24,432 युवा ऐसे हैं जिन्होंने एक साल के दौरान नौकरी की आस में रोजगार कार्यालयों में अपने नाम दर्ज करवाए हैं। भोपाल के युवा मिथुन अहिरवार का कहना है कि सरकारी स्तर पर ही जब यह बात स्वीकार की जा रही हो, तो अंदाजा लगाया जा सकता है कि ऐसे प्रदेश में युवाओं का भविष्य कैसा होगा?

वैसे, 1 लाख युवाओं को सरकारी पदों पर नौकरी देने की घोषणा की गई है। लेकिन नियुक्तियों की अब भी जो गति है, उससे समझा जा सकता है कि क्या होने वाला है। कोरोना महामारी के दौरान लोगों के रोजगार जाने और रोजगार न मिलने से ‘व्यथित’ मुख्यमंत्री चौहान ने जनवरी, 2022 में हर जिले में स्वरोजगार के लिए ‘उद्यम क्रांति योजना’ के अंतर्गत रोजगार मेला लगाने की घोषणा की थी। यह योजना 5 अप्रैल, 2022 को लॉन्च की गई। इसके तहत एक साल में एक लाख लोगों को रोजगार देने की बात की गई थी। एक साल बाद मार्च, 2023 तक भी इस योजना के लिए नियमों को अंतिम रूप नहीं दिया जा सका है। 

ऐसी ही स्थितियों की वजह से नेशनल एजुकेटेड यूथ यूनियन न्यू की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की कोर कमेटी के सदस्य रंजीत किसानवंशी का कहना है कि सरकार कोरी घोषणाएं कर रही है। धरातल पर नौकरियां नहीं मिल रही हैं। जिन अभ्यर्थियों ने परीक्षाएं पास कीं, वे भर्ती के लिए आंदोलन कर रहे हैं, तो उन्हें पुलिस की लाठियां मिल रही हैं।

पुणे में भारती विद्यापीठ यूनिर्सिटी से संबंद्ध यशवंतराव चह्वाण इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंस स्टडीज एंड रिसर्च के सुनील सारस्वत और डॉ. जी.आर. राठौड़ ने जर्नल ऑफ इमर्जिंग टेक्नोलॉजीज एंड इन्नोवेटिव रिसर्च के नवंबर, 2022 अंक में ग्वालियर में किए गए अपने अध्ययन की रिपोर्ट पेश की। इन दोनों के अनुसार, यह इलाका इसलिए महत्वपूर्ण है कि 2021 में इस जिले के 51,967 बेरोजगार युवा रजिस्टर्ड थे जो मध्य प्रदेश के सभी जिलों में बेरोजगार युवाओं की तुलना में औसतन तीन गुना थे। हर जिले में औसतन बेरोजगार युवाओं की संख्या 17,233 थी। एक और बात ध्यान में रखने की है। यह इलाका नागरिक उड्डयन मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया का गृह क्षेत्र है।

सुनील सारस्वत और डॉ. राठौड़ के अनुसार, अवसरों की कमी, संचार कौशल, आवश्यक नौकरियों और कौशलों का बेमेल होना, निजी क्षेत्र को कम-से-कम वरीयता देने की वजह से इस इलाके में बेरोजगारी की संख्या ज्यादा है। हाल यह है कि चपरासी, ड्राइवर और वाचमैन के 15 पदों के लिए 11,000 बरोजगार युवाओं ने आवेदन किए। इन्हीं स्थितियों की वजह से यहां के युवाओं को स्वाभाविक तौर पर आर्थिक समस्याओं से तो जूझना पड़ ही रहा है, उनकी शादियों में रुकावट हो रही है और उनमें सामाजिक अलगाव की भावनाएं बढ़ रही हैं।

वैसे, यह पूरे प्रदेश की समस्या है। इंदौर के वैभव खंडेलवाल (बदला हुआ नाम) बताते हैं कि उनके बेटे की मुंबई से एमबीए की पढ़ाई पूरे हुए तीन साल हो गए हैं और वह अब 32 साल का हो गया है। उन्होंने उसकी पढ़ाई के लिए बैंक से लोन लिया था और अब वह खुद ही इसे चुका रहे हैं क्योंकि कोरोना के पहले उसे 17 हजार रुपये की नौकरी मिली थी लेकिन वह भी जल्दी ही छूट गई और तब से वह बेरोजगार ही है। इस वजह से वह अवसाद में नशा भी करने लगा है।

दिक्कत सिर्फ युवकों के साथ ही नहीं है। लड़कियों की शादियां भी इसलिए ही नहीं हो रही हैं कि नौकरीशुदा लड़के जल्दी नहीं मिल रहे। अब हर कोई चाहता है कि उनके बेटे का विवाह ऐसी लड़की से हो जिसे रोजगार मिला हुआ हो। डॉक्टरी, इंजीनियरिंग, एमबीए की हुई पढ़ी-लिखी लड़कियां भी रोजगार के लिए भटक रही हैं। बैतूल के राजू (बदला हुआ नाम) इस तरह के ऐसे उदाहरण हैं जिनसे कई लोगों की आंखें खुल सकती हैं। राजू आईआईटी पासआउट हैं। मुंबई की एक बड़ी कंपनी में अच्छे पैकेज पर उन्हें नौकरी मिल गई थी लेकिन कोरोना के बाद से वह बेरोजगार हैं। अब घरेलू कलह इसलिए बढ़ गई है क्योंकि बहू की नौकरी नहीं है और वह दिन भर घर में रहती है। घरवाले कहते हैं कि यदि बहू को भी नौकरी मिल जाती तो शायद परिवार ठीक से चलता और विवाद की स्थिति ही पैदा नहीं होती।

राज्य के नेता प्रतिपक्ष डॉ. गोविंद सिंह कहते भी हैं कि माता-पिता ने लाखों रुपये खर्च कर अपने बेटों को इस काबिल बनाया कि नौकरी लगने के बाद उनका बेटा बुढ़ापे का सहारा बनेगा लेकिन रोजगार न मिलने की वजह से युवा आत्महत्या तक करने को मजबूर हो रहे हैं। आम तौर पर यह ‘राजनीतिक बयानबाजी’ लग सकती है लेकिन इसके पीछे कुछ घटनाएं तो हैं ही।

राजधानी भोपाल के मिसरोद के सहारा टाउनशिप में 29 अगस्त, 2021 को इंजीनियर रवि ठाकरे और उनकी पत्नी रंजना ठाकरे ने बेटा चिराग ठाकरे और बेटी गुंजन ठाकरे का गला रेत दिया और फिर दोनों ने जहर खा लिया था। रवि ठाकरे की नौकरी चली गई थी और आर्थिक तंगी की वजह से वह दो महीने से तनाव में थे। मौके से पुलिस को चार पन्ने का सुसाइड नोट मिला था जिसमें रवि ने लिखा था कि भूख, भविष्य, बीमारी, फीस का कर्ज, मकान का किराया और बेरोजगारी का सामना नहीं कर पा रहा हूं। बच्चों की स्कूल फीस तक जमा नहीं कर पा रहा हूं। किराये के घर में रह रहा हूं। बैंक से 17 लाख रुपये का लोन लिया, 8 साल से उसकी किस्त भर रहा हूं, पर मकान न मिलने की वजह से किराये के मकान में रह रहा हूं।

इससे पहले राजगढ़ के शेहदखेड़ी के रहने वाले कुंदन नामक युवक ने जुलाई, 2021 में फांसी लगाने से पहले वीडियो बनाया था जिसमें उसने कहा था कि मुख्यमंत्री जी! मेरा आपसे निवेदन है कि छात्रों को रोजगार दीजिए। बेरोजगारी की वजह से ही मैं आज फांसी लगा रहा हूं। इंदौर के कुछ समाचार पत्रों ने भी इस वीडियो का जिक्र खबर में किया था। उसने एक सुसाइड नोट भी छोड़ा था जिसमें उसने कहा था कि वह तीन साल से उज्जैन में तैयारी कर रहा था लेकिन उम्र अधिक हो जाने की वजह से अब सरकारी भर्ती के लिए आवेदन नहीं कर सकता है।

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