Site icon अग्नि आलोक

सुब्रत रॉय:बे सहारा….जीवन की कड़वी सच्चाई

Share

प्रज्ञा पाठक शर्मा

इस जीवन की कड़वी सच्चाई हक़ीक़त
अमिताभ से लेकर आडवाणी तक और मुलायम से लेकर ठाकरे तक,
सुब्रत रॉय ने अपने दोनों लड़कों की शादी में पूरे देश का VVIP इकट्ठा किया था

2004 में पाँच सौ करोड़ की ये शादी सबसे महँगी मानी गयी थी ।

और आज क़रीब दो दिन इंतज़ार करने के बाद उनकी चिता में पौत्र ने मुखाग्नि दी ।

विदेश में बैठे दोनों बेटों ने पिता की मृत्यु पर पहुँचने में असमर्थता जता दी ।

यही दुनिया है
बे सहारा
😑😑

‘सहारा श्री की अंतिम क्रिया में नहीं शामिल हुए उनके दोनों पुत्र । पत्नी भी नहीं आईं ।’ यह सिर्फ खबर भर नहीं है । यह आईना है जीवन का जिसमें हमें और आपको अपनी छवि गौर से देखनी चाहिए ।
सुब्रत रॉय अर्थात् सहारा श्री आज पंचतत्व में विलीन हो गए । उनके पोते ने उन्हें मुखाग्नि दी । उनके अंतिम क्रिया के वक्त उनके हजारों शुभचिंतक नजर आये । उनके मित्र, स्टॉफ, राजनेता से लेकर फिल्मी दुनिया की हस्तियां तक…
अगर कोई उनकी अंतिम यात्रा के वक्त नहीं दिखे तो वे थीं उनकी पत्नी और उनके दोनों बेटे । उनकी मौत के वक्त भी उनके परिवार का कोई सदस्य उनके पास नहीं था…। पत्नी और बेटे तक नहीं ।
यह वही सहारा श्री थे जिनके कारोबार की धाक कभी पूरी दुनिया भर में फैली थी । चिट फण्ड, सेविंगस फाइनेंस, मीडिया , मनोरंजन, एयरलाइन, न्यूज़, होटल, खेल,‌ भारतीय क्रिकेट टीम का 11 साल तक स्पान्सर, वगैरह वगैरह…
ये वही सहारा श्री थे जिनकी महफिलों में कभी राजनेता से लेकर अभिनेता और बड़ी बड़ी हस्तियां दुम हिलाते नजर आते थे…
ये वही सहारा श्री थे जिन्होंने अपने बेटे सुशान्तो-सीमांतो की शादी में 500 करोड़ से भी अधिक खर्च किए थे ।
ऐसा भी नहीं था कि सहारा श्री ने अचानक दम तोड़ा ! उन्हें कैंसर था और उनके परिवार के हरेक सदस्य को उनकी मौत का महीना पता होगा लेकिन तब भी अंतिम वक्त में उनके साथ, उनके पास परिवार का कोई सदस्य नहीं था…! बेटों ने उनके शव को कांधा तक नहीं दिया…!
तो, यही सच्चाई है जीवन की । जिनके लिए आप जीवन भर झूठ-सच करके कंकड़-पत्थर जमा करते हैं… जिनके लिए आप जीवन भर हाय-हाय करते रहते हैं… जिनकी खुशी के लिए आप दूसरों की खुशी छीनते रहते हैं… जिनका घर बसाने के लिए आप हजारों घर उजाड़ते हैं… जिनकी बगिया सजाने और चहकाने के लिए आप प्रकृति तक की ऐसी तैसी करने में बाज नहीं आते…
वे पुत्र और वह परिवार आपके लिए, अंतिम दिनों में साथ तक नहीं रह पाते !
कभी ठहरकर सोचिएगा कि आप कुकर्म तक करके जो पूंजी जमा करते हैं, उन्हें भोगने वाले आपके किस हद तक ‘अपने’ हैं…?
अंगुलीमाल से बुद्ध ने यही तो कहा था कि “मैं तो कब का ही रूक गया, तुम कब रूकोगे…”
सब यहीं का यहीं है
पैसे से रिश्ते नहीं ख़रीदे जा सकते
इक सहारा ही क्यों?
कितने उदाहरण है जो ये साबित करते हैं कि अंत समय अपनों ने भी???
कौन साथ आया और कौन साथजाएगा
सब यहीं
दुनियाँ के किसी भी छोर पाए संतति हो पर माता पिता के धर्म और फ़र्ज़ को निभाने का कर्तव्य
ये संस्कारों की कहानी है

Exit mobile version