शशिकांत गुप्ते
आज मै सीतारामजी से मिलने गया,तो देखा वे सन 1975 में प्रदर्शित बहु चर्चित फिल्म शोले के लिए गीतकार आनंद बक्षी रचित गीत की निम्न पंक्तियां गुनगुना रहे थे।
ये दोस्ती हम नहीं तोड़ेंगे
तोड़ेंगे दम अगर तेरा साथ ना छोड़ेंगे
तेरा ग़म मेरा ग़म तेरी जान मेरी जान
ऐसा अपना प्यार
खाना पीना साथ है, मरना जीना साथ है
मैने सीतारामजी से पूछा उक्त पंक्तियां गुनगुनाने का कोई विशेष कारण?
सीतारामजी जवाब दिया,इस गीत में दोस्ती के महत्व को समझाया है।
मैने कहा फिल्म में यह गीत, अपराधी का किरदार निभाने वाले दो अभिनेताओं पर फिल्माया है।
सीतारामजी ने कहा आप हर एक बात मैं व्यंग्य ढूंढ ही लेते हैं।
मैने कहा बहुत से लोग दोस्ती में अपना सब कुछ लुटा देते हैं।
सीतारामजी ने कहा हां ऐसे लोगों के लिए शायर ज़ुबैर अली ताबिश का निम्न शेर प्रेरणा दायक है।
वो जिस ने आँख अता की है देखने के लिए
उसी को छोड़ के सब कुछ दिखाई देता है
अर्थात ईश्वर को ही भूल जातें हैं।
मैने कहा दोस्ती में बहुत से लोग इतने लीन हो जाते हैं कि,अपना स्वयं का नुकसान कर दोस्तों को लाभ पहुंचाते हैं।
सीतारामजी ने कहा इन दिनों तो कुछ अति उदारमना लोग भी हैं, ये उदार माना लोग,ऐसे लोगों से दोस्ती करते हैं,जिन लोगों पर दो दिन पूर्व सौ कम, तीस करोड़ के भ्रष्टाचार का आरोप लगाते हैं।
मैने कहा ये उदारमान लोग ऐसे लोगों से सिर्फ दोस्ती ही नहीं करते हैं,बल्कि उनकी पद प्रतिष्ठा में चार चांद लगा देते हैं।
मेरी बात सुनकर सीतारामजी ने कहा, दुर्भाग्य से यह सब स्वतंत्र देश में हो रहा है।
शशिकांत गुप्ते इंदौर