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दक्षिण के पांच राज्यों और तीन केंद्र शासित प्रदेशों में 132 सीटों का ऐसा है इतिहास

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साल शुरू होते ही लोकसभा चुनाव की सरगर्मियां बढ़ने लगी हैं। विपक्षी गठबंधन में जहां सीट बंटवारे को लेकर बातचीत जारी है। वहीं, भाजपा की ओर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा तक अलग-अलग राज्यों में रैलियां और रोड शो कर रहे हैं। दक्षिण भारत के पांच राज्यों और तीन केंद्र शासित प्रदेशों में कुल 132 लोकसभा सीटें हैं। 2019 में दक्षिण की 132 सीटों में से 29-29 सीटें भाजपा और कांग्रेस दोनों के खाते में गईं थीं। वहीं, अन्य दलों के हिस्से में 74 सीटें आईं थीं।

प्रधानमंत्री मोदी साल की शुरुआत होते ही दक्षिण के राज्य केरल और केंद्र शासित लक्ष्यद्वीप पहुंचे। यहां उन्होंने कई कार्यक्रमों में हिस्सा लिया। रोड शो भी किया साथ ही रैली भी की। कई राजनीतिक विश्लेषक इसे भाजपा का मिशन दक्षिण कह रहे हैं। 

आखिर दक्षिण का सियासी गणित क्या है? देश के दक्षिणी हिस्से में भाजपा का अब तक का प्रदर्शन कैसा रहा है? कांग्रेस यहां कैसा प्रदर्शन करती रही है? लोकसभा की कितनी सीटें दक्षिण से आती हैं? किस राज्य में किस पार्टी की पकड़ है? आइये समझते हैं… 

लोकसभा में दक्षिण 
543 सदस्यीय लोकसभा में देश के दक्षिण से 132 सीटें आती हैं। इनमें सीटों के लिहाज से तमिलनाडु सबसे बड़ा राज्य है। यहां से कुल 39 सांसद चुनकर आते हैं। कर्नाटक से 28, आंध्र प्रदेश से 25 और केरल से 20 सांसद लोकसभा पहुंचते हैं। इसी तरह तेलंगाना से 17, पुडुचेरी, लक्ष्यद्वीप और अंडमान निकोबार से एक-एक सांसद चुनकर आते हैं। इस तरह दक्षिण भारत के पांच राज्यों और तीन केंद्र शासित प्रदेशों में कुल 132 लोकसभा सीटें हैं। 

2019 में भाजपा के लिए दक्षिण के नातीजे कैसे थे? 
पिछले लोकसभा चुनाव में दक्षिण की 132 सीटों में से 29-29 सीटें भाजपा और कांग्रेस दोनों के खाते में गईं थीं। वहीं, अन्य दलों के हिस्से में 74 सीटें आईं थीं। इनमें तमिलनाडु की 24 सीटें डीएमके और आंध्र प्रदेश की 22 सीटें वाईएसआर कांग्रेस ने जीतीं थीं। भाजपा को सिर्फ दो राज्यों में जीत मिली थी। पार्टी कर्नाटक की 28 में से 25 सीटें जीतने में सफल रही थी। वहीं, तेलंगाना की 17 में से चार सीटों पर पार्टी को सफलता मिली थी। अन्य किसी राज्य में भाजपा का खाता भी नहीं खुला था। 

कांग्रेस के लिए कैसा रहा था 2019 में दक्षिण का रण?
वहीं, कांग्रेस को सबसे ज्यादा सफलता केरल में मिली थी। यहां की 20 में से 15 सीटों पर पार्टी जीतने में सफल रही। 39 सीटों वाले तमिलनाडु में पार्टी को आठ सीटों पर जीत मिली। 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने डीएमके के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ा था। राज्य की नौ सीटों पर चुनाव लड़ी कांग्रेस को आठ में जीत मिली। इसी तरह 24 सीटों पर चुनाव लड़ी डीएमके सभी सीटें जीतने में सफल रही थी।

विपक्षी एआईएडीएमको महज एक सीट से संतोष करना पड़ा था। तेलंगाना में कांग्रेस को तीन सीटों पर जीत मिली थी। तेलंगाना में हाल ही में कांग्रेस सत्ता में आई है। इससे पहले पार्टी को कर्नाटक विधानसभा चुनाव में भी जीत मिली थी। यहां, 2019 में उसे महज एक सीट से संतोष करना पड़ा था। इसके अलावा पार्टी पुडुचेरी और अंडमान-निकोबार में भी एक-एक सीट पर जीतने में सफल रही थी। 

दक्षिण में अब तक कैसा रहा है भाजपा का प्रदर्शन?
2019 के लोकसभा चुनाव में 300 से ज्यादा सीटें जीतने वाली भाजपा के लिए दक्षिण बड़ी चुनौती साबित हुआ था। इसके बाद भी दक्षिण में 2019 का प्रदर्शन भाजपा का सर्वश्रेठ था। 2019 से से पहले भाजपा दक्षिण में कभी भी 25 से ज्यादा सीटें नहीं जीत सकी थी। 

इससे पहले दक्षिण में भाजपा को अधिकतम 22 सीटें जीतने में सफल रही थी। यह प्रदर्शन उसने 2014 में किया था। बीते कई चुनाव से चुनाव दर चुनाव पार्टी की सीटें इस इलाके में बढ़ रही हैं। 2009 में पार्टी को दक्षिण में 20 सीटें, 2004 में 18 सीटें, 1999 में 19 सीटें, 1998 में 16 सीटें मिलीं थीं। इससे पहले के चुनावों में पार्टी कभी भी दक्षिण में 10 सीटें भी नहीं जीत सकी थी। 

पार्टी बनने के बाद 1984 में हुए पहले लोकसभा चुनाव में भाजपा दक्षिण में खाता खोलने में सफल रही थी। उसे आंध्र प्रदेश में एक सीट मिली थी। इसके बाद 1989 में उसे कोई सीट नहीं मिली। 1991 में पार्टी को कर्नाटक में चार तो आंध्र प्रदेश में एक सीट पर जीत मिली थी। वहीं, 1996 में पार्टी दक्षिण की छह सीटें जीतने में सफल रही थी। ये सभी सीटें कर्नाटक की थीं।  

कांग्रेस के लिए कैसे रहे दक्षिण के नतीजे
बीते दस चुनावों की बात करें तो कांग्रेस का दक्षिण में सबसे बेहतर प्रदर्शन 1989 में था। जब पार्टी ने 110 सीटें इस इलाके में जीती थीं। जबकि सबसे कम 19 सीटें 2014 में मिली थीं। 2019 में पार्टी के प्रदर्शन में सुधार हुआ और उसे 29 सीटों पर कामयाबी मिली। हालांकि, 2014 से पहले के नतीजों के मुकाबले यह काफी कम था। 2004 में कांग्रेस को दक्षिण में 48 तो 2009 में 62 सीटों पर जीत मिली थी। इसी तरह कांग्रेस की 1999 में 35, 1998 में 45, 1996 में 37, 1991 में 92 और 1984 में 71 सीटें दक्षिण से आईं थीं। 

दक्षिण की राजनीति में पैठ बढ़ाने की क्या है भाजपा की तैयारी?
साल की शुरुआत में ही प्रधानमंत्री मोदी केरल के दो दिन के दौरे पर पहुंचे। उन्होंने लक्ष्यद्वीप में भी कई कार्यक्रम किए। पीएम मोदी केरल में महिलाओं से भी संवाद किया। भाजपा ने आयोजन से पहले ही दावा किया कि इस संवाद में दो लाख महिलाएं जुटेंगी। वैसे भी भाजपा अपनी सफलता में महिलाओं की हिस्सेदारी को बड़ा कारण बताती रही है। इस पूरे दौरे को भाजपा के 2024 के चुनावी प्लान से जोड़कर देखा जा रहा है। ये पहला मौका नहीं है जब यह दिखा हो कि भाजपा ने दक्षिण की ओर फोकस बढ़ाया है। बीते 12 महीने में ही कई ऐसे संकेत मिल चुके हैं। 

मई में जब देश की नई संसद बनी। उस वक्त जितनी चर्चा इसकी भव्यता और विशेषताओं की हुई, उससे ज्यादा चर्चा उस सेंगोल (राजदंड) की भी हुई जो तकरीबन ढाई हजार साल पहले चोल वंश के राजाओं के सत्ता हस्तांतरण के दौर में दिया जाता था। 

राजनीतिक विश्लेषकों कहा कि जिस तरह से इस राजदंड को लोकसभा में तमिल मठों के धर्माचार्यों का आशीर्वाद लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसको स्थापित किया है, उसका तमिलनाडु में बड़ा प्रभाव पड़ना है। राजनीतिक विश्लेषक उमेश नारायण पंत ने उस वक्त अमर उजाला से कहा था कि बीते कुछ समय में अगर सियासत के नजरिए से देखा जाए तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तमिलनाडु पर बहुत फोकस किया है। 2022 से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने लोकसभा क्षेत्र बनारस में काशी तमिल समागम का आयोजन करा रहे हैं। एक महीने तक चलने वाली इस समागम में तमिल के 17 मठों से 300 से ज्यादा साधु संत और प्रमुख मठों के धर्माचार्य शामिल हुए। पिछले महीने इसका दूसरा चरण भी आयोजित किया गया। 

भाजपा के नए नारे के लिए दक्षिण अहम क्यों?
नए साल पर ही भाजपा ने नया चुनावी नारा जारी किया। इसमें कहा गया कि देश में तीसरी बार मोदी सरकार बनेगी। इसके लिए भाजपा 400 से ज्यादा सीटें जीतने का लक्ष्य रखा है। ऐसे में दक्षिण भारत में सीटें जीतना बेहद जरूरी हो जाता है। दक्षिण की 132 सीटें हटाने के बाद देश में 411 सीटें रह जाती हैं। इनमें से 25 से ज्यादा सीटें भाजपा को अपने सहयोगियों को देनी पड़ेगी। जिनमें हरियाणा की जजपा, यूपी में अपना दल, बिहार में लोजपा जैसे उसके पुराने साथी हैं। इसके साथ ही महाराष्ट्र में शिवसेना और एनसीपी का अजित पवार गुट भी शामिल है। इस तरह अगर भाजपा को 400 पार का नारा सच करना है तो उसके लिए दक्षिण में बड़ी सफलता बहुत जरूरी होगी।

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