-सुसंस्कृति परिहार
सुप्रीम कोर्ट ने बैलेट पेपर यानी मतपत्र के ज़रिए चुनाव की पुरानी व्यवस्था बहाल करने से मना कर दिया है. वीवीपैट की सभी पर्चियों को गिनने की मांग भी सुप्रीम कोर्ट ने ठुकरा दी है।
कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं को नसीहत देते हुए कहा है कि पूरी चुनाव व्यवस्था पर सवाल उठा कर लोगों के मन में संदेह पैदा करना गलत है. हालांकि, कोर्ट ने चुनाव में दूसरे और तीसरे नंबर पर रहे प्रत्याशियों को यह अधिकार दिया है कि वह नतीजों के 7 दिन के भीतर जांच की मांग कर सकते हैं।
विदित हो,मुख्य याचिकाकर्ता एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स की तरफ से वकील प्रशांत भूषण ने 3 मांगें रखी थीं- बैलेट पेपर से मतदान की व्यवस्था वापस लायी जाए।वीवीपेट से निकलने वाली पर्ची मतदाता के हाथ में दी जाए ताकि वह खुद उसे एक बक्से में डाल सके. बाद में सभी पर्चियों को गिना जाए।वीवीपेट बॉक्स को पूरी तरह पारदर्शी बनाया जाए, उसमें लगातार बल्ब जलता रहे।इसके अलावा एक अन्य याचिकाकर्ता के लिए पेश वरिष्ठ वकील संजय हेगड़े ने मांग की थी कि वीवीपेट पर्ची में बार कोड भी छापने की व्यवस्था बने। इस बार कोड के चलते पर्चियों को मशीन के जरिए तेजी से गिना जा सकेगा। इस तरह सभी पर्चियों को गिनने में लंबा समय लगने की आशंका खत्म हो जाएगी।
सुप्रीम कोर्ट में चुनाव आयोग के लिए वरिष्ठ वकील मनिंदर सिंह पेश हुए। डिप्टी इलेक्शन नितेश व्यास ने भी व्यक्तिगत रूप से पेश होकर कोर्ट के सवालों का विस्तार से जवाब दिया. आयोग ने बताया कि मशीनों के बनने, उनमें सिंबल लोड होने, मतदान से पहले प्रत्याशियों की उपस्थिति में होने वाले मॉक पोल में किस तरह पारदर्शिता रखी जाती है। कैसे ईवीएम सिस्टम को प्रभावित कर पाना असंभव है और मतदान के बाद किस तरह ईवीएम की तीनों यूनिट (कंट्रोल यूनिट, बटन यूनिट और वीवीपेट) को सुरक्षित रखा जाता है।
जस्टिस संजीव खन्ना और दीपांकर दत्ता की बेंच ने सुनवाई के दौरान कहा था कि भारत की विशाल जनसंख्या को देखते हुए यहां बैलेट पेपर से चुनाव व्यवहारिक नहीं. जजों ने यह भी याद दिलाया था कि पुराने समय में चुनाव प्रक्रिया में किस तरह की गड़बड़ियां होती थीं, जो ईवीएम सिस्टम से खत्म हो गई हैं।
जजों ने पूरी व्यवस्था पर संदेह जताने को गलत कहा था। अब कोर्ट ने फैसला दिया है कि वह याचिका में रखी गई मांगों को खारिज कर रहा है हालांकि, कोर्ट ने सुझाव दिया है कि चुनाव आयोग इस बात पर विचार करे कि क्या वीवीपेट पर्चियों पर बार कोड छापा जा सकता है। साथ ही कोर्ट ने 2 निर्देश दिए हैं। सिंबल लोडिंग यूनिट को भी रिजल्ट के बाद 45 दिन तक सील रखा जाए परिणाम घोषित होने के 7 दिन के भीतर दूसरे या तीसरे नंबर का उम्मीदवार दोबारा जांच की मांग कर सकता है। ऐसे में इंजीनियरों की टीम किसी 5 माइक्रो कंट्रोलर की मेमोरी की जांच करेगी। इस जांच का खर्च उम्मीदवार को उठाना होगा। गड़़बड़ी साबित हुई तो उम्मीदवार को पैसा वापस मिल जाएगा
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि पहले भी ईवीएम पर संदेह जताया गया। कोर्ट ने उसे विस्तार से सुन कर फैसला दिया। एक बार फिर सुनवाई की गई है। अब यह खत्म होना चाहिए। जब तक ईवीएम के खिलाफ पुख्ता सबूत न हों, यह व्यवस्था बनी रहनी चाहिए। बैलेट पेपर मतदान पर वापस जाने या कोई और व्यवस्था अपनाने का कोई कारण नहीं है न ही ऐसा करना देश के नागरिकों के हित में होगा।
आज जैसे ही सुको ने बैलेट पेपर से चुनाव और शत् प्रतिशत वीवीपेट की याचिकाओं को खारिज किया जनमानस में ,देश की बड़ी अदालत के प्रति अविश्वास की लहर देखी गई।दूसरे चरण का मतदान करने जाते हुए लोगों ने अफ़सोस जताया कि चुनाव में मतदान का कोई मतलब नहीं रहा।लगता है निर्णय देने वाले जजों पर सरकार का दबाव पड़ा है।वरना इतनी बड़ी बहस में आई ईवीएम की त्रुटियों को नज़रंदाज़ नहीं किया जाता।कतिपय लोग इसे जनमत के पराभव के रूप में देख रहे हैं।जनमत पर ईवीएम के ख़तरे को संविधान विरोधी बताया गया है।यही नहीं भविष्य को लेकर लोगों में नाराज़गी देखी जा रही है।
वहीं इस याचिका के खारिज होने पर सर्वाधिक खुशी पीएम मोदी को हुई जिसका इज़हार उन्होंने त्वरित देकर ईवीएम के विरुद्ध भ्रामक प्रचार करने वालों को कोसा।उनकी टिप्पणी के बाद यह स्वत: जाहिर हो गया कि अब चार सौ पार दुष्कर नहीं। उधर खुशी में अंधभक्तों ने पटाखे भी फोड़े।इसे उन्होंने राम जी की कृपा बताया।जबकि अंतर्विरोध झेल रहे लोग इसे राममंदिर जन्मभूमि फैसले से जोड़ कर देखते हुए कह रहे हैं उस समय निर्णय बहुसंख्यक वर्ग की आस्था को देखकर प्रमाणों की उपेक्षा की गई थी।उसी तरह इस बार देश भर में चल रहे चुनाव के मद्देनजर ईवीएम की खामियों को नज़रंदाज़ किया गया है।ये दोनों फैसले कानून की परिधि से बाहर लगते हैं।
बहरहाल अगर ऐसा ही होता रहा तो न्यायप्रणाली से लोगो का विश्वास उठ जाएगा तथा यह असंतोष देश की तमाम व्यवस्थाओं के लिए नुकसानदेह होगा।माना कि मामला चुनाव के दौरान लिस्ट हुआ किन्तु उस पर चुनाव की छाया पड़ना दुखकर है। विदेशों में बैलेट पेपर वापिस क्यों लाए गए इस पर विमर्श की ज़रूरत थी यह कहना कि इतने विशाल देश में बेलेट से चुनाव करना संभव नहीं हमारे देश की व्यवस्था को कमज़ोर सिद्ध करती है जब ईवीएम नहीं थी तब चुनाव कैसे होते रहे।पैगासिस जैसे हस्तक्षेप के बाद ईवीएम हैकिंग होना तकनीकी युग में असम्भव नहीं।इसका प्रदर्शन भी हुआ है लेकिन अदालत और चुनाव आयोग ने इसे देखते की हिम्मत नहीं जुटाई वरना पुख्ता प्रमाण मिल जाते।खैर,फैसला सर आंखों पर।मगर इस पर स्वतंत्र रुप से गंभीरतापूर्वक भविष्य में सोचना ज़रूरी होगा।