ज्योति देशमुख
सुनील दत्त ने सोचा कि साउथ की फिल्मों से पैसा कमा कर मुम्बई में एक बंगला खरीदा जाए और जब इतना पैसा इकट्ठा हो गया तो पाली हिल पर बंगला देखने पहुँचे सुनील दत्त और नरगिस. बंगला पसंद आया और खरीदने का निर्णय हो गया . उन दिनों पाली हिल पर ज्यादा बसाहट नहीं थी और अधिकतर क्षेत्र जंगल से घिरा हुआ था. जब सुनील दत्त और नरगिस बंगला देख कर बंगले से बाहर निकले तो सुनील दत्त ने वहाँ एक नाग देखा. सुनील दत्त काफी अंधविश्वासी थे और उनका मानना था कि जहाँ पर नाग होते हैं उस ज़मीन में धन गड़ा होता है. अब तो सुनील दत्त ने पक्का मन बना लिया कि बंगला तो यही खरीदना है और पास की खाली जमीन जहाँ नाग दिखा था वो भी खरीदना है.
बंगला और ज़मीन खरीदने के बाद सुनील दत्त ने यह कह कर ज़मीन खुदवाना शुरू किया कि स्विमिंग पूल बनवाना है. लेकिन जब ज़मीन खोदने के बाद भी कोई धन हाथ नहीं लगा तो ज़मीन और खुदवाई यह कह कर कि अंडर ग्राउंड बैडमिंटन हॉल बनवाना है. लेकिन जब इतनी खुदाई के बाद भी धन नहीं मिला तो सुनील दत्त के दोस्त राजेन्द्र कुमार ने उन्हें सलाह दी कि अब यहाँ एक लाइव थिएटर बनाया जाए जिससे कुछ आमदनी भी होती रहे, आमदनी के एक सोर्स के भरोसे नहीं रहना चाहिए. और वहाँ बन गया अजंता प्रीव्यू थिएटर.
यही अजंता प्रीव्यू थिएटर था सुनील दत्त के बुरे वक्त का सहारा. कैसे? आइये जानते हैं
सुनील दत्त ने अपने बैनर अजंता आर्ट्स के तले यादें (1964), मन का मीत (1968) और रेशमा और शेरा (1971) जैसी फिल्में बनाईं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि रेशमा और शेरा ने दत्त साहब को कंगाल कर दिया था. उनकी स्थिति यह हो गई थी कि वो आम लोगों की तरह बसों में धक्के खाते थे और लोग उन्हें ताने तक मारने लगे थे. यह बात अलग है कि फिल्म ने तीन नेशनल अवॉर्ड (बेस्ट एक्ट्रेस, बेस्ट म्यूजिक और बेस्ट सिनेमैटोग्रफी) अपने नाम किए थे.
सुनील दत्त ने जब फिल्म अनाउंस की तो उनकी प्लानिंग थी कि वे इसे 15 दिन के अंदर राजस्थान में शूट करेंगे. एस. सुखदेव इसे डायरेक्ट करने वाले थे और सुनील दत्त-वहीदा रहमान का लीड रोल था. विनोद खन्ना, राखी गुलजार और अमिताभ बच्चन का भी फिल्म में अहम रोल था. लीड एक्टर्स समेत फिल्म की यूनिट के सभी 100 लोग जैसलमेर के करीब पोचिना गांव में टेंट में रहे.
फिल्म का ज्यादातर हिस्सा शूट हो चुका था. लेकिन इसी दौरान सुनील दत्त ने इसके रशेस देखे, जो उन्हें पसंद नहीं आए. इसके बाद उन्होंने एस. सुखदेव को हटाकर खुद डायरेक्शन का जिम्मा हाथ में लिया और पूरी फिल्म दोबारा शूट की. जहाँ इसकी शूटिंग 15 दिन में पूरी होनी थी. वहां इसमें दो महीने का वक्त लग गया.
सुनील दत्त ने एक इंटरव्यू में कहा था, “जब तक फिल्म पूरी हुई, तब तक मुझपर 60 लाख रुपए का कर्ज हो चुका था. इसके अलावा, मैं एक्टर के तौर पर पांच फिल्में भी ठुकरा चुका था. ”
जब फिल्म फ्लॉप हुई तो बकायादार सुनील दत्त के पास अपना पैसा मांगने आने लगे. सुनील ने एक बार बताया था, “मैं 42 साल का हो चुका था और तीन बच्चों का पिता था. पैसे मेरे पास थे नहीं. मेरी 7 में से 6 कार बिक चुकी थीं. सिर्फ एक बचाई थी, जो बेटियों को स्कूल छोड़ने और वापस लाने के काम आती थी. मेरा घर गिरवी रखा हुआ था. मैंने बस से आना-जाना शुरू कर दिया था. तब लोग ताने मारते हुए कहते थे- क्यों सुनील दत्त, सब खत्म हो गया तेरा? अभी बस में जाना शुरू कर दिया?” इस बुरे दौर में घर के अंदर मौजूद नरगिस का अजन्ता प्रीव्यू थिएटर काम आया, जो उन्होंने कुछ वक्त पहले बनाया था. इसमें फिल्ममेकर्स को उनकी फिल्मों के प्रीव्यू और डबिंग के लिए बुलाया जाने लगा.
सुनील दत्त के लिए दो साल बहुत मुश्किल भरे रहे. लेकिन इसके बाद उनकी किस्मत एक बार फिर जागी. उन्होंने ‘हीरा’ (1973), ‘गीता मेरा नाम’ (1974), ‘प्राण जाए पर वचन न जाए’ (1974) और ‘नहले पर दहला’ (1976) जैसी कई फिल्मों में काम किया, जो बॉक्सऑफिस पर खूब चलीं. साभार फ़ेसबुक वाल से