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गर्मजल से स्नान का अलौकिक आनंद

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      (रवीश कुमार की आपबीती)

     ~ कुमार चैतन्य

    जनवरी महीने में एक दिन ऐसा नहीं गुज़रा होगा कि लगा हो कि इस शरीर ने बीमारी नहीं देखी है। इसमें शक्ति नाम की कोई चीज़ है। ठंड से उत्पन्न होने वाली व्याधियों की माला पहने रोज़ काम भी किया और सड़क मार्ग से ढाई हज़ार किलोमीटर से अधिक की यात्रा कर शादी और रिसेप्शन में शरीक हुआ। समझ नहीं आ रहा था कि जर्जर शरीर को कैसे खींच रहा हूं। शादी में खुले में घूमता रहा, सबसे मिलता रहा। कमज़ोरी ने उत्साह पर कुठाराघात कर दिया। जिस उत्सव का इंतज़ार कई महीनों से था, उसमें किसी तरह खुद को समेट कर और लपेट कर शामिल हुआ।

     रविवार को जब अपना वीडियो देखा तो हैरान रह गया। तीव्र बुख़ार में कर्पूरी ठाकुर पर दो वीडियो बनाए और उस दिन बिहार में सरकार गिरने पर भी एक वीडियो बनाया।मैं ख़ुद को देख कर सोच में पड़ गया कि क्या ये मै ही हूँ , किसे पता चलेगा कि रिकार्डिंग करने के बाद यह ऐंकर पस्त हो गया और बिस्तर पर ऐसे गिरा कि ढाई तीन घंटे सोया ही रह गया। रविवार को एक सेकेंड ऐसा नहीं गुज़रा जब ख़ाँसी ने छाती की हड्डियों को न झकझोरा हो। याद करने की कोशिश करने लगा कि आखिरी बार कब शरीर किसी प्रकार की व्याधि से मुक्त था? मन में उल्लास था? ललाट से लेकर कनपटी तक दर्द की रेखाओं का जाल बुन गया था। कभी देसी कभी विदेशी दवा तो कभी गरम पानी। किसी से कोई फायदा नहीं। मैं भूल गया कि कभी स्वस्थ्य शरीर और स्वस्थ्य मन का वास हुआ करता होगा।

     आज की सुबह थोड़ी अलग थी। आज मैंने काम नहींं किया। लगा कि अब शरीर ने विद्रोह कर दिया है। ख़ूब सोया हूं। पड़ोसी के घर जाकर धूप सेंकी। फिर आकर सोया। गरम पानी से स्नान किया। गरम पानी पड़ते ही शरीर की अनुभूतियां बदलने लगीं। ऐसा लगा कि गरम जल के निरंतर प्रवाह के मुख पर चिरकाल तक बैठा रह जाऊं। गरम जल का हर कण जर्जर शरीर में प्राण की तरह प्रवेश कर रहा था। दो-तीन मिनट बाद लगा कि धीरे-धीरे लाठी उठाने की शक्ति आ रही है। अब लाठी पकड़ कर खड़ा हो सकता हूँ। शरीर के पोर-पोर गरम जल की मांग करने लगे। वहां गरम जल के कणों के पहुंचते ही उत्सव का एलान होने लगा।

     नृत्य की सी अनुभूति होने लगी। मैं दौड़ने की कल्पना करने लगा। ख़ाँसी से छाती की बातियों को छुड़ाते हुए ज़ोर से बोलने का मन करने लगा। गरम जल और शरीर के बीच संवाद होने लगा। कुछ दर्ज कर पा रहा था, कुछ नहीं कर पा रहा था। समझना चाहता था कि गरम जल ने शारीरिक अनुभूतियों को बदला है या ठंड शरीर से उतर कर जा चुका है। गरम जल हमें सुख के मार्ग पर ले जाता है।

      जैसे आकाशवाणी हुई हो और मैंने हां में हां मिला दिया हो। गरम पानी ने ठंड से घिरे मेरे शरीर को सींचना शुरू कर दिया। मैंने जीना शुरू कर दिया।

बाहर आने का मन नहीं कर रहा था। बाहर आने पर फिर से ठंड के घेर लेने की आशंका डराने लगी। सुना करता था कि वीर तो बर्फ से सने ठंडे पानी में स्नान करते हैं। हम बचपन से लेकर किशोर उम्र तक कभी गरम पानी से नहीं नहाए। 1990 में दिल्ली आने के बाद इमर्शन रॉड का जीवन में प्रवेश हुआ, हो सकता है दिल्ली आने से पहले भी हुआ हो मगर स्मृतियां यही बताती हैं कि ठंडे पानी से ही स्नान करता था।

     बचपन में माँ सूरज उगने से पहले सरसों तेल से रगड़ कर ठंडे पानी से ही नहला दिया करती थी। उसके बाद चादर से लपेट कर गाँती बांध देती थी।अब तो गरम जल जीवन का हिस्सा बन चुका है। आज पहली बार लगा कि यह जीवनदायिनी भी है। आप धीरे-धीरे अपने शरीर के लय को पकड़ते हैं। वापस आते महसूस करते हैं। 

      यही कारण था कि साहित्य से रिश्ता रखने वाले मित्रों से पूछा कि हिन्दी साहित्य में क्या किसी ने गरम जल से स्नान के आनंद का विशद वर्णन  किया है?क्या किसी कवि ने इसे अलौकिक सुख की तरह बताया है? यह अनुभूति मेरी तो नहीं है न ही पहली बार दुनिया में उतरी है। करोड़ों लोगों के जीवन में गरम जल के सुखद संस्मरण होंगे।

    किसी ने तो पठनीय वर्णन किया होगा। लौकिक सुखों से इतनी विरक्ति कैसे हो सकती है। अगर आप हिन्दी साहित्य में ऐसे किसी प्रसंग के बारे में जानते हैं तो ज़रूर बताएं। नहीं तो गरम जल से नहानें जाएं और बाहर आकर अपनी अनुभूति को लिखें। (चेतना विकास मिशन).

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