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भारत की छवि खराब करेगी  विदेशों को नकली दवा की आपूर्ति

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अशोक मधुप

अफ्रीकी राष्ट्र  गाम्बिया में भारतीय  कफ  सीरप  से हुई 66 बच्चों की मौत की घटना अभी शांत  भी नही हुई थी, कि दिल्ली एनसीआर के ट्रॉनिका सिटी में कैंसर की नकली दवा बनाने वाली फैक्टरी पकड़ी गई।  इस फैक्ट्री की बनी  नकली दवाएं चीन को भेजी जाती हैं।  औषधि विभाग की टीम ने हाल ही में संभल में संयुक्त छापामारी कर बड़ी मात्रा में नकली दवाएं बरामद की थी। इससे करीब डेढ़ महीने पहले बागपत में भी   नकली दवाएं पकड़ी गई थीं।भारत दवाइयों का  बहुत बड़ा निर्यातक देश  है।  विदेशों को  नकली दवाई भेजे  जाने  से  भारत की दवाईयों की शुद्धता पर बड़ी  आंच  आ सकती है।इससे देश की शाख  गिरने के साथ ही विदेशी आए घट सकती है । जरूरत  है कि विदेशों को भेजी जाने  वाली दवाईयां देश की लेब  के प्रमाणिकता के प्रमाणपत्र के साथ ही भेजीं जाएं।नकली दवा का कारोबार करने  वाले  के  विरूद्ध  कठोर  कार्र्वाई  हो।  पहले नकली दवा की  सजा पांच  साल थी। 2005 में  में  इसे बढ़ाकर दस  साल किया गया। किंतु ये भी पर्याप्त नही  है।ऐसा  करने वालों को आजीवन कारावास भी कम है।साथ ही इनकी संपत्ति भी   जब्त होनी  चाहिए।

डब्ल्यूएचओ के प्रमुख डा टेड्रोस ने पिछले ही महीने कहा था कि गाम्बिया में 66  बच्चों की मौत भारत में मेडेन फार्मारूयूटिकल द्वारा  बनाई  कफ  सीरप के पीने के कारण मौत हुई है। डब्ल्यूएचओ ने पिछले महीने  अलर्ट जारी कर सोनीपत की मेडेन फार्मारूयूटिकल  के चार कफ सीरप को बेहद खराब मैडिकल प्रोडक्ट बताया था।  उस समय डब्ल्यूएचओ के प्रमुख डा टेड्रोस की इस घोषणा का यह कहकर विरोध  किया था  कि यह भारत को बदनाम करने का षडयंत्र है किंतु दिल्ली − एनसीआर में कैंसर की नकली दवा बनाने वाली एक ऐसी फैक्ट्री पकड़ी गई,  जो कैंसर की दवा चीन को भेजती थी। इस  चीन को भेजने  वाली नकली दवा  की फैक्ट्री का पकड़ा जाना ये  बताता  है कि  हमारे यहां ही बड़ा  घपला  है।

दिल्ली की क्राइम ब्रांच की टीम ने  हाल में  एमबीबीएस डॉक्टर पवित्र नारायण, बीटेक इंजीनियर शुभम् मुन्ना के अलावा दो अन्य लोगों को हिरासत में लिया है।पुलिस और औषधि विभाग  की टीम ने गिरफ्तार लोगों को साथ   लेकर  ट्रॉनिका सिटी के इन प्लॉट पर बने कमरों को खुलवाया गया तो वहां बड़ी मात्रा में अधबनी दवा की गोलियां, कैप्सूल, ब्लिस्टर पैक स्ट्रिंप, प्लास्टिक बोतलें, पैकिंग का सामान, कार्टन, और कई अन्य तरह की दवाइयां मिलीं। इनमें महंगे दामों पर बिकने वाली कैंसररोधी दवाइयां मिलीं। इन दवाओं पर विदेशी कंपनी का नाम पाया गया। ड्रग विभाग के अधिकारियों का कहना है कि इन चारों लोगों के पास न तो दवाओं को बनाने का और न ही भंडारण का लाइसेंस है। इसके पास दवाओं के खरीद-फरोख्त के दस्तावेज भी नहीं मिले। औषधि विभाग के अधिकारियों ने यहां मिली दवाओं में से 14 नमूने लेकर सील किए हैं। यहां  भारी मात्रा में  मिली दवाओं और अन्य सामान को जब्त कर लिया गया है।औषधि विभाग के अधिकारियों का कहना है कि इस कारोबार को करने वाले पवित्र प्रधान एमबीबीएस डॉक्टर हैं और शुभम मुन्ना बी-टेक इंजीनियर हैं। बाकी दो साझेदार पंकज सिंह और अंकित शर्मा भी इस नकली दवाओं के कारोबार में शामिल हैं। उनका कहना है कि एंटी कैंसर दवाओं की बाजार में भारी डिमांड रहती है और इसमें मोटा मुनाफा होता है। इसी मुनाफे के लिए यह नकली दवाओं के कारोबार को कर रहे थे।बरामद दवाकी कीमत 14 करोड़ रुपये   बताई  गई है।यह भी पता चला है कि चार साल में इन्होंने 145 करोड़ की नकली दवा  बेची।

शासन द्वारा गठित औषधि विभाग के अफसरों की टीम ने ही सहायक आयुक्त औषधि के निर्देशन में इसी चार नंवबर  को उत्तर प्रदेश  के संभल में छापेमारी कर नकली अंग्रेजी दवा बनाने की फैक्ट्री पकड़ी है। छापे में करीब 60 लाख रुपये की तैयार नकली दवाएं बरामद की गई हैं। इनमें नामी कंपनियों की नकली एंटीबायोटिक दवाएं, इंजेक्शन के अलावा नशीली दवाएं भी शामिल हैं। आयुर्वेदिक दवा बनाने का लाइसेंस लेकर नकली अंग्रेजी दवा बनाने के आरोपी कारोबारी को पुलिस ने हिरासत में ले लिया है। दवा बनाने के काम में आने वाली सामग्री और मशीनें भी मिलीं। टीम मुरादाबाद मार्ग पर स्थित राम विहार कालोनी में फैक्ट्री के गोदाम पर पहुंची तो बड़ी मात्रा में तैयार नकली दवाएं बरामद हुईं।  मध्य प्रदेश की रीवा पुलिस ने इसी माह  के प्रारंभ में कार्रवाई करते 129 पेटी नकली कफ सिरप बरामद किया है। जब्त सिरप की कीमत 18 लाख के करीब बताई जा रही है। पुलिस ने तीन आरोपियों को भी गिरफ्तार किया है।आरोपी घर से नकली कफ सिरप के कारोबार को संचालित कर रहे थे।

उत्तर  प्रदेश  और उत्तरांचल  तो  नकली दवा बनाने  का गढ़ बन चुका है।उत्तरांचल हाईकार्ट की सख्ती पर उत्तराखंड सरकार को निर्णय  लेना  पड़ा  कि  नकली दवाएं बेचने वालों के खिलाफ आजीवन कारावास की धाराओं में मुकदमा दर्ज किया जाएगा।

 जम्मू −कश्मीर के उधमपुर   जनपद में नकली कफ सीरप से दस बच्चों की मौत के मामले में 11 नवंबर  को सुप्रीम कोर्ट ने मुआवजे के खिलाफ दायर याचिका खारिज कर दी है। इस मामले में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने मृतकों के परिजनों को तीन-तीन लाख रुपये का मुआवजा देने का फैसला सुनाया था। उधमपुर जिले की इस घटना को लेकर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी )के फैसले के खिलाफ जम्मू कश्मीर प्रशासन ने सर्वोच्च न्यायालय में  याचिका दायर की थी।जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस एम एम सुंदरेश ने कहा कि इस मामले में अधिकारी लापरवाह पाए गए । उन्हें  मामले में दखल देने का कोई कारण नजर नहीं आता। पीठ ने कहा, ‘आपके अधिकारी लापरवाह पाये गए हैं। उन्हें सतर्क रहना चाहिए। हमें खाद्य व उद्योग विभाग के बारे में कहने के लिए मजबूर नहीं करें। उन्होंने यहां तक कि अपनी ड्यूटी तक नहीं निभाई। हम नागरिकों के जीवन से नहीं खेल सकते हैं। यह उनका कर्तव्य है कि वे इसकी जांच करें और चीजों की पुष्टि करें।’

सर्वोच्च न्यायालय  जम्मू कश्मीर प्रशासन की ओर से तीन मार्च, 2021 को हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई कर रही थी। ज्ञातव्य  है कि उधमपुर की रामनगर तहसील में दिसंबर 2019 और जनवरी 2020 में नकली कफ सिरप के सेवन से 10 बच्चों की मौत हो गई थी। एनएचआरसी को इस मामले में औषधि विभाग की ओर से खामियां मिली थीं। आयोग ने विभाग की ओर से हुई चूक के लिए जम्मू कश्मीर प्रशासन को परोक्ष रूप से जिम्मेदार ठहराया था। एनएचआरसी ने  इस लापरवाही को लेकर प्रशासन को कड़ी फटकार लगाई थी। साथ ही आयोग ने मृतक के परिजनों को तीन-तीन लाख रुपये के मुआवजे की सिफारिश की थी। 

ये सब घटनांए बताती हैं कि देश  नकली   दवा का बड़ा  उत्पादक बन गया है। कोरोना  काल में तो  इस कारोबार में और बढ़ोतरी हुई।ऑनलाइन शॉपिंग बढ़ने से इस धंधे को बढ़ोतरी मिली है। एक रिपोर्ट के मुताबिक ऑनलाइन खरीदी जाने वाली दवाओं में 30 प्रतिशत नकली हैं । दरअसल ये फर्जी कंपनियां इतनी सफाई से अपने प्रॉडक्ट्स की ऑनलाइन मार्केटिंग करती हैं कि कोई भी आसानी से धोखा खा सकता है।  साल 2020 की तुलना में 2021 में घटिया क्वालिटी वाले और नकली मेडिकल उत्पादों के मामले 47 फीसदी बढ़ गए।

नकली प्रॉडक्ट्स के खिलाफ कई वर्षों से काम कर रही संस्था फेक फ्री इंडिया के अनुसार देश में नकली सामानों के उत्पादन का काम पिछले पांच दशकों से चल रहा है। उससे सरकार को हर साल कम से कम एक लाख करोड़ रुपए का घाटा हो रहा है। फेक फ्री इंडिया का यह भी कहना है कि इस बुराई को जड़ से समाप्त करना जरूरी है लोगों में जागरूकता लानी होगी ताकि वे नकली प्रॉडक्ट्स को पहचान सकें। । नकली उत्पादों का काम अब बेहद सफाई से हो रहा है। नक्काल  पहले से कहीं ज्यादा बढ़िया पैकिंग कर रहे हैं । बताया जाता है कि नक्काल

उन्हीं कंपनियों से पैकेजिंग का माल खरीदते हैं जहां से असली सामान बनाने वाली कंपनियां बनवाती हैं। उनका पैकिंग मैटेरियल भी वैसा ही होता है और पैकिंग हूबहू वैसी। असली कंपनी को माल आपूर्ति  करने वाली कंपनी का स्टाफ

थोड़े लालच में  आकर इन्हें आरिजनल पैंकिग बेच देता  है। इससे समझदार और पढ़े-लिखे ग्राहकों को भी धोखा हो जाता है। डब्ल्यूएचओ का  अनुमान  है कि दुनिया भर में बिकने वाली करीब 35 फीसदी नकली दवाएं भारत से आती हैं। वहीं वर्ष 2019 में अमेरिका ने अपनी एक रिपोर्ट में दावा किया था कि भारतीय बाजार में बेचे जाने वाले सभी फार्मास्युटिकल सामानों में से लगभग 20 प्रतिशत नकली हैं।

नकली दवाओं के सौदागरों को कड़ी सजा देने के लिए एनडीए सरकार में प्रस्तावित ड्रग एवं कास्मेटिक्स (एमेंडमेंट) बिल 2005 में पारित कर किया गया।  इसमें नकली दवा   कारोबारियों के लिए न्यूनतम सजा 10 रखी गई है। आज के हालात का देखते  हुए  ये  सजा  कम है।इनके

लिए कम से कम  आजीवन कारावास होना  चाहिए। इनकी सारी संपत्ति भी  जब्त होनी चाहिए ताकि आगे नकली दवा के कारोबार में आते  आदमी डरे।आज  दवाओं के सेम्पुल लेने की मात्र खानापूरी होती है।औषधि  नियंत्रण  विभाग  के पास नही स्टाफ  है,  न ही दवाओं की  जांच करने के  लिए लैब। स्टाफ  बढ़ाने  के साथ  सैंपुल की जांच करने  वाली लैब भी बढनी चाहिएं।दरअस्ल हमारा इन्फ्राटक्चर बढ़ रहा  है। दवा का कारोबार जिस तेजी से बढ़ा है,उसके हिसाब से इन पर नियंत्रण करने  वाला  अमला  नहीं।  जबकि  ये काम तेजी से होना  जरूरी है,तभी ये सब रूकेगी।

अशोक मधुप

(लेखक  वरिष्ठ  पत्रकार हैं)

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