अग्नि आलोक

‘सर्जिकल स्ट्राइक’…समय से सार्थक संवाद करता उपन्यास

Share

 तेजपाल सिंह ‘तेज’

कथा साहित्य का उदय कहानी-लेखन से संभव हो सका है। यही बात उपन्यासों के विकास के संदर्भ में भी कहा जाता है। लेकिन कहानी और उपन्यास के बीच एक खास अंतर है। दरअसल, कहानी जीवन तथा समाज के किसी विशेष भाग को विश्‍लेषित करती है जबकि उपन्यास गद्यबद्ध कथानक के माध्यम द्वारा जीवन तथा समाज की व्याख्या का सर्वोत्तम साधन है। उपन्यास के संदर्भ में यही बात अर्नेस्ट ए. बेकर ने कही है। 

साहित्य में गद्य का प्रयोग जीवन के यथार्थ चित्रण का जरिया रहा है। उपन्यास के जरिए साधारण बोलचाल की भाषा द्वारा लेखक के लिए अपने पात्रों, उनकी समस्याओं, विचारों तथा उनके जीवन की व्यापक पृष्ठभूमि से प्रत्यक्ष संबंध स्थापित करना आसान होता है। इसका एक उदाहरण ईश कुमार गंगानिया का उपन्यास ‘सर्जिकल स्‍ट्राइक’ है। गंगानिया दलित साहित्य जगत में लब्धप्रतिष्ठित रचनाकार रहे हैं। उनका ‘इंट्यूशन’ शीर्षक से एक कहानी संग्रह, तीन काव्‍य संग्रह तथा आलोचना की दर्जनभर पुस्‍तकें प्रकाशित हैं। ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ के जरिए उन्होंने औपन्यासिक विधा में भी खुद को साबित किया है। 

गंगानिया जी के इस उपन्यास के केंद्र में वर्ष 2019 में पुलवामा में हुए आतंकी हमले का विषय शामिल है। कथानक की बात करें तो लेखके के शब्दों में उपन्यास का संक्षेप में सार यह है कि यदि पुलवामा का आतंकी हमला आतंकवादियों के नापाक इरादों और भारतीय सीआरपीएफ जवानों की शहादत तक सीमित रहता तो इस उपन्‍यास ‘सर्जिकल स्‍ट्राइक’ के अस्तित्‍व में आने की जरूरत ही नहीं थी। लेकिन आतंक की लपटें जब राजनीति से ऑक्सीजन लेकर देश और इसके सामाजिक ताने-बाने को निगल जाने पर आमादा हो जाएं तो उपन्‍यास के नायक आजीवक बाबू का मैदान-ए-जंग में उतरना और इसके पर्दाफाश के लिए ‘सर्जिकल स्‍ट्राइक’ समय की मांग बन जाती है। 

इतना ही नहीं, देश के नागरिकों का भेड़ के माफिक भीड़ का हिस्सा बन जाने, दोहन की सामग्री बन जाने और ‘बाजारू उत्पाद’ की संस्‍कृति में सिमट जाने के विरुद्ध जंग, उपन्यास के नायक के लिए बाध्‍यता हो जाती है। इस उपन्यास को वर्तमान का दस्तावेजीकरण भी मना जा सकता है, जिसमें एक बड़े वर्ग का रोबोट में तब्‍दील हो जाना, कट्टरपंथियों की मिल्कियत और सांप्रदायिकता का बेलगाम हो जाना, संवैधानिक संस्‍थाओं की साख में निरंतर कमी आदि सभी का सजीव वर्णन है। 

जाहिर तौर पर ईश कुमार गंगानिया जी ने इस उपन्यास में अपने लेखकीय साहस का परिचय दिया है। हालांकि यथार्थ के प्रति उनका आग्रह बिल्कुल भी नया नहीं है। उनका यह तेवर उनकी पूर्व की कविताओं, कहानियों और समालोचनात्मक आलेखों में बराबर अभिव्‍यक्‍त होता रहा है। 

उनके इसी उपन्‍यास पर नजर डालें तो भले ही इसके कथानक में ऊपरी तौर पर राजनीति नजर आती है। लेकिन यह केवल एक पक्ष है। इसका दूसरा यह है कि इसमें आम आदमी के जीवन से जुड़ा ऐसा कोई पहलू नहीं है, जो इसकी विषयवस्‍तु से अछूता रह गया हो। कहने की आवश्‍यकता नहीं कि गंगानिया जी ने आंखन-देखी की तर्ज पर अपने आसपास के परिदृश्य को ही अपने उपन्यास का विषय बनाया है। कल्पना की दुनिया से परे, उनका यह उपन्यास हवाबाजी की दुनिया से परे जीवन जीने वाले पाठकों को जरूर आकर्षित करेगा। यह एक बेहद सहज उपन्यास है, जिसमें पात्रों की संख्‍या भले सीमित है, लेकिन वैचारिक धरातल का कैनवास अत्यंत ही व्‍यापक है।

उनके पात्र आपस में समाज के प्रत्येक पहलू पर, फिर चाहे वह राजनीतिक मसले हों, सामाजिक विसंगतियों की कुरूपता हों, धर्म के संबंध में किसी प्रकार भी प्रकार की उठापटक हो, सामाजिक अनेकता की बात हो, मूलधारा के साहित्य अथवा दलित लेखक संघों व साहित्‍यकारों की कारगुजारियां हों, आंबेडकरवादी विचारधारा को लेकर उठने वाले सवालों की बात हो, उपन्‍यास में सभी मुद्दों पर बेबाकी से संवाद किया गया है। खास यह कि उपन्‍यासकार पात्रों के स्वाभाविक विकास और उनके चित्रण में कहीं भी हस्‍तक्षेप करता नजर नहीं आता। इसके चलते औपन्‍यासिक परिस्थितियों के साथ भी न्‍याय नजर आता है और पात्रों के साथ भी। 

सामान्यत: कई परिस्थितियों में उपन्‍यासकार का अलग तरह से सोचने का आग्रह जरूर नजर आता है, लेकिन इसके पीछे पूर्वाग्रह न होना, लेखकीय ईमानदारी को रेखांकित करता है।

कुल मिलाकर गंगानिया ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ के जरिए कोरी कल्पना की दुनिया से दूर यथार्थ का उल्लेख करते हैं। इसलिए भी इसकी ग्राह्यता और बढ़ जाती है। 

बहरसूरत, हर उपन्यासकार का ध्येय पाठकों का मात्र मनोरंजन करना नहीं, बल्कि जमीनी सच्चाईयों के बारे में बतलाना भी होता है। अपने इस कोशिश में ईश कुमार गंगानिया सफल रहे हैं। 

(लेखक तेजपाल सिंह तेज (जन्म 1949) की गजल, कविता, और विचार की कई किताबें प्रकाशित हैं- दृष्टिकोण, ट्रैफिक जाम है आदि ( गजल संग्रह), बेताल दृष्टि, पुश्तैनी पीड़ा आदि ( कविता संग्रह), रुन-झुन, चल मेरे घोड़े आदि ( बालगीत), कहाँ गई वो दिल्ली वाली ( शब्द चित्र) और अन्य। तेजपाल सिंह साप्ताहिक पत्र ग्रीन सत्ता के साहित्य संपादक और चर्चित पत्रिका अपेक्षा के उपसंपादक रहे हैं। स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त होकर इन दिनों अधिकार दर्पण नामक त्रैमासिक का संपादन कर रहे हैं। हिन्दी अकादमी (दिल्ली) द्वारा बाल साहित्य पुरस्कार ( 1995-96) तथा साहित्यकार सम्मान (2006-2007) से सम्मानित।)

Exit mobile version