शशिकांत गुप्ते
आज सीतारामजी ने एक बहुत ही आश्चर्यजनक किस्सा सुनाया।
कहने लगे कि, आज मुझे मेरे बचपन का मित्र राधेश्याम मिला था।
राधेश्याम मध्यम वर्गीय है। धार्मिक भी है। आज राधेश्याम बहुत ही प्रसन्नचित दिखाई दे रहा था।
मैने प्रसन्नता का कारण पूछा तो कहने लगा, वह अच्छेदीनों को एंजॉय कर रहा है। राधेश्याम आलीशान बंगले में रहता है। महंगी मोटरकार है। जिस शहर में रहता हैं,वहाँ की सड़कें चौड़ी ही गई है। मंदिर परिसर को भव्य Corridor मतलब वृहद गलियारे में तब्दील किया गया है।
शहर में कचरा कहीं दिखाई नहीं देता है।
महंगाई इसलिए महसूस नहीं होती है कि, आय में वृद्धि हो गई है। दिनभर में चार बार कपडे बदलता है।
चारो ओर खुशहाली का वातावरण है।
राधेश्याम अच्छेदीनो बखान कर रहा था। उसी समय उसकी मोबाइल पर किसी का कॉल आया। कॉल सुनकर राधेश्याम के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगी।
राध्यशाम पसीना पसीना होगा।
राधेश्याम के हाथ पांव फूलने लगे।
मैने उसे बैठने को कहा भाभीजी(राधेश्याम की पत्नी) को आवाज दी पानी मंगवाया,
राधेश्याम को पानी पिलाया।
थोड़ा सामान्य होने पर मैंने पूछा एकदम क्या हो गया?
राधेश्याम जी तो बहुत शर्मिंदगी महासुर कर रहा था।
भाभीजी ने जवाब दिया इनको कुछ समझता ही नहीं छद्म दिखावा करने के चक्कर में,समाज में झूठी शान दिखाने में
कर्ज पर कर्ज लेते गए। आमदनी अठन्नी और खर्चा रुपया भी नही खर्चा चार रुपया करने लगे।
कितना ही समझाया लेकिन मिथ्या,कृतिम,मायावी और काल्पनिक अच्छेदीनों के झांसे में आ गया।
मुझे डर लगता है,खयाली, छलपूर्ण,बेबुनियाद,और तथ्यहीन बातों में आकर इनको कहीं हृदयाघात ना हो जाए।
मुझे प्रख्यात शायर वसीम बरेलवी का यह शेर याद आया।
आसमाँ इतनी बुलंदी पे जो इतराता है
भूल जाता है ज़मीं से ही नज़र आता है
सवाल राधेश्याम को किसका कॉल आया। राधेश्याम मध्यम वर्गीय है? राधेश्याम के पास पास पोर्ट भी नहीं हैं?
खोजो तो जाने
शशिकांत गुप्ते इंदौर