शशिकांत गुप्ते
लोक- तंत्र में लोक अपनी बदनसीबी के लिए अभिशप्त है,और तंत्र का दुरुपयोग कर अपनी किस्मत को चमकाने में निपुण सारी सुविधाएं भोग रहें हैं।
तंत्र शब्द का अर्थ व्यापक है।
तंत्र मतलब तकनीक, Mechanism, क्रियाविधि डोरा, चमड़े की डोरी ताँत आदि।
धर्मो में तंत्र विद्या नामक शास्त्र है।
तंत्र विद्या के ज्ञाता तंत्र के माध्यम से लोगों की समस्याएं दूर करने का दावा करतें हैं।
तांत्रिक लोगों के दावों पर दर्शन शास्त्र के डॉक्टर (पीएचडी) अपनी प्रतिक्रिया, यह कह कर देते हैं कि,विधि का लिखा कोई मिटा नहीं सकता है। यह अंतहीन बहस है।
विषयांतर को रोक कर पुनः तंत्र पर विचार करते हैं।
लोक पर तंत्र का हावी होना लोकतंत्र को कमजोर करने की साजिश ही प्रतीत होती है।
“राज” नीति में पद,प्रतिष्ठा और बगैर श्रम के रातों रात धन कुबेर बनने के लिए तंत्र का दुरुपयोग किया जाता है?
धनबल प्राप्त होने पर बाहुबल स्वयं जुड़ जाता है।
धनबल और बाहुबल का उपयोग चुनाव के दौरान धडल्ले से होता है,ऐसा प्रत्येक चुनाव में आरोप लगता है?
चुनाव जीतने के लिए *लोक* को हाशिए पर रख कर तंत्र को, मतलब तकनीक को स्वार्थ पूर्ति के रसायन में डूबो कर तंत्र का इस्तेमाल करने का आरोप लगता है?
राजनीति में स्वार्थ पूर्ति के रसायन में विभिन्न वस्तुओं का समावेश होता है। इन वस्तुओं में मदिरा और मांस, के साथ,स्त्रियों के लिए रजत और स्वर्ण के आभूषण भी होते हैं? भोजन, प्रसादी के रूप में उपलब्ध होता है? राशन के पैकेट वितरित होते हैं? चुनाव के दौरान उपर्युक्त भेंट नीति को त्याग कर मतदाताओं को गोपनीय तरीके से वितरित की जाती है?
यह बहुत गहरा *राज* है।
उपर्युक्त चर्चा हर बार,और हर एक चुनाव में सुनने को मिलती है? उक्त चर्चा दबी जुबान से की जाती है?
क्या वास्तव में ऐसा होता होगा?
क्या यह सब संभव है?
यह सारे प्रश्न अनुत्तरित ही रहेंगे?
अहम सवाल यह कि,यदि उक्त सभी बातें सत्य है तो लोकतंत्र जैसे पवित्र शब्द का क्या अर्थ रह जाता है?
निर्वाचित जन प्रतिनिधि बनने के लिए,साम-दाम-दंड और भेद इन चारों *अ* नीतियों का इस्तेमाल किया जाएगा तो ऐसे जन प्रतिनिधियों द्वारा आमजन की मूलभूत समस्याएं कैसे हल होगी?
मेरे मित्र सीतारामजी ने मुझे समझाया,इतना चिंतित होने की आवश्यकता नहीं है।
हमें भगवान पर विश्वास रखना चाहिए। राम भगवान,दिव्य भव्य मंदिर में विराजित होंगे। मंत्रोचार कर रामजी की प्राण प्रतिष्ठा होगी। राम जी सब अच्छा ही करेंगे।
आमजन के लिए निम्न भजन की कुछ पंक्तियां एकदम उपयुक्त है।
यह भजन कवि *प्रदिपजी* ने लिखा है।
*सच का है पथ ले धर्म का मार्ग, संभल संभल चलना प्राणी*
*पग पग पर है यहाँ रे कसौटी, कदम कदम पर कुर्बानी*
*मगर तू डावा डोल ना होना,तेरी सब पीर हारेंगे राम*
*दूसरों का दुखड़ा दूर करने वाले,तेरे दुःख दूर करेंगे राम*
मैने कहा व्यवहारिक तौर पर भी सारे उपदेश आमजन के लिए होते हैं।
शशिकांत गुप्ते इंदौर