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देश की अस्मिता का ख़्याल रखें

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सुसंस्कृति परिहार
आज हमारे देश में जिस तरह अफ़वाहों का बाज़ार गर्म है कि किसी भी ग़लत बात को फौरन सच मान लिया जाता है उसका प्रस्तुतिकरण और सपोर्टर अंध भक्त इस तरह प्रचार करते हैं कि उसका प्रतिरोध करना भी ख़तरनाक लगने लगता है जिससे उस अफवाह को और बल मिलता है।फिर यदि बल देने में प्रधानसेवक और उनके नुमाइंदे हों तो कहना ही क्या?आजकल इतना काल्पनिक साहित्य भी सामने आ रहा है कि लगता है अब यथार्थ का तो दम निकल ही जायेगा। लेकिन किसी ने ठीक ही कहा है कि सच कभी पराजित नहीं होता वह उनके झूठ में से ही रास्ता बना लेता है।हाल ही में कश्मीर फाईल्स ने ही ख़ुद पंडितों की रूह को थर थरा दिया।फौजी की पत्नी ने भी झूठ की कलई उतार दी।

आईए चलते हैं इस झूठ-मूठ झूठ के गर्म माहौल से कुछ चटपटी खबरें देखें और आनंद लें एक ख़बर आई
औरंगजेब हर रोज सवा मन जनेऊ जलाने के बाद ही भोजन करता था। कहीं-कहीं सवा मन के बजाय, ढाई मन तक बताया गया है।जनेऊ मतलब, ब्राह्मण! और एक जनेऊ का वजन कितना होता होगा,बमुश्किल 5-10 ग्राम।इस हिसाब से हर दिन कितने ब्राह्मण मारे जाते होंगे, और फिर भी इतने बचे रह गए? ध्यान रहे, औरंगजेब ने 1658 से 1707 यानी करीब 49 साल राज किया।अब एक सवाल:
एक जनेऊ का वजन 10 ग्राम माना जाए, तो सवा मन जनेऊ के लिए कितने जनेऊ चाहिए होंगे, या कितने ब्राह्मणों को प्रतिदिन औरंगजेब मारता होगा?
फेंकने वालों ने मुसलमानों के प्रति घृणा पैदा करने के लिए कितनी ज्यादा फेंक दी!
अब तीन बातों पर ध्यान दीजिए।पहला- अगर हर दिन इसी हिसाब से ब्राह्मण मारे जाते थे, तो दो-चार महीने में ही ब्राह्मण खत्म हो गए होंगे। 80 प्रतिशत तो डरके मारे मुसलमान ही बन गए होंगे। यानि छह माह तो में तो ये पूरी जाति ही समाप्त हो जानी चाहिए थी।
दूसरा-मान लिया जाए कि वह इस असंभव संख्या में तो नहीं, लेकिन हां, कुछ हद तक ब्राह्मणों को मारता भी था, तब भी 49 साल इतनी लंबी अवधि होती है कि 10-12 साल में तो ब्राह्मणों का पूरा सफाया हो ही जाता।इसके बाद भी उसका सिलसिला जारी रहा, तो कहीं ये तो नहीं, कि ब्राह्मणों ने औरंगजेब के कारिंदों को सेट कर लिया था, और अपने बदले, दो-चार गैर-ब्राह्मणों को ही ब्राह्मण बताकर मरवा देते रहे हों
तीसरा- औरंगजेब की तो ब्राह्मणों से बहुत निकटता रही। पूरा राज्याश्रय ब्राह्मणों को मिला। इस राज्याश्रय का सहारा लेकर ब्राह्मणों ने गैर ब्राह्मणों पर जुल्म किए और अपने लिए छूट हासिल की। जजिया कर से ब्राह्मणों को छूट रही। ब्राह्मणों को न जजिया देना पड़ता था, न जकात!
अब निष्कर्षत: औरंगजेब भी इस झांसे में आ गया था कि ब्राह्मणों का हित करो, तो वो उसका साथ देंगे! ऐसा अब भी कुछ नेताओं को लगता है!औरंगजेब के साथ ये हुआ कि जब तक उसकी सत्ता रही, पंडित मजे लेते रहे, बाद में उसे ही ब्राह्मण भक्षी बता दिया!

इसी तरह सवर्ण और दलित की बात रामराज्य में बराबर मिलती है लेकिन वे मल्लाह और शबरी ही बल्कि गैर मानवों जटायु,वानर,जामवंत कह बराबरी का दर्जा देते रहे।धोबी तक की बात पर भरोसा करते थे लेकिन आज राम मंदिर ट्रस्ट में दलित पिछड़ा का कोई सदस्य नहीं जबकि मंदिर वहीं बनायेंगे की बजरंग सेना में उमाभारती के साथ कई सौ पिछड़े दलित शामिल थे।क्या ये रामभक्त हो सकते हैं जो सिर्फ हिन्दू स्वर्ण के पक्षधर हैं।इसी भांति रामलीलाओं में अमूनन अधिकांश कलाकार अल्पसंख्यक समुदाय से होते थे वे मंच पर सबके पूजनीय होते थे।आज हकीकत क्या है ?पहले रामचंद्र खान,भोले खान रहीमराम सेना मिल जाते थे अब तो चेहरे और कपड़े से विधर्मी पहचाने जा रहे हैं।जबकि आज भगवा रंग व्यभिचारियों, पापियों के कारण धूमिल हुआ था रहा है। राम छुआछूत के अंत की स्वीकृति है देश के संविधान में समानता का अधिकार ।इसकी अभिव्यक्ति है पवित्रता के प्रकाश पुंज का नाम है श्री राम भक्ति के बल पर श्री राम के तिलक का नाम है शबरी ।

मस्जिदों पर भगवा रंग पोतकर,पत्थर फेंककर, छात्राओं का हिजाब उतराकर या कि पांच वक्त की नमाज की तरह हनुमान चालीसा का पाठ माईक से कर कैसी राम भक्ति होने जा रही है।आजकल तो घर बैठकर सब कुछ देखा सुना जा सकता है। प्रदूषण के दौर में ध्वनि प्रदूषण अच्छी बात नहीं सब शोर शराबे बंद होने चाहिए। बेरोजगार,परेशानों की भीड़ से उतर आती है ।नेता मज़ा लेते हैं।एक बात हम सब जानते हैं भक्ति शांति के बीच मन विचलित ना हो के बीच ही की जाती है।ये शोर ,ये हंगामे दिखावा है।प्रतिद्वंदिता है इससे हासिल आपको कुछ नहीं होने वाला। उल्टे इससे मर्यादा पुरुषोत्तम की छवि को आघात पहुंच रहा है।

औरंगजेब की तरह हम सब बलि का बकरा बन रहे हैं। सोचिए बार बार देश में धर्म को वोट के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है। धर्म के नशे से मुक्त होकर इस समय शांत चित्त बैठकर विमर्श की ज़रूरत है।फर्जी कश्मीर फाईल्स फिल्म इस जहर को फैला रही है । सावधान –सावधान। यह देश की अस्मिता का सवाल है।याद रखें ब्रजनारायण चकबस्त ने उर्दू भाषा में जो रामायण का तर्जुमां किया वह आज भी हमारी समन्वयवादी संस्कृति की अभूतपूर्व मिसाल है जिसे विदेशों में भी काफ़ी पढ़ा और सराहा गया कुछ अंश आपकी खिदमत में—

रुखसत हुआ वह बाप से लेकर खुदा का नाम
राहे -वफ़ा की मंजिलें -अव्वल हुई तमाम
मंजूर था जो मां की ज़ियारत का इंतजाम
दामन से अश्क पोछ के दिल से किया कलाम

इज़हारे -बेकसी से सितम होगा और भी
देखा हमें उदास तो ग़म होगा और भी

दिल को संभालता हुआ आखिर वह नौनिहाल खामोश मां के पास गया सूरते ख्याल
देखा तो एक दर में है बैठी वह ख़स्ता हाल
सकता सा हो गया है, यह शिद्दते मलाल

तन में लहू का नाम नहीं ज़र्द रंग है
गोया वशर नहीं, कोई तस्वीरे- संग है…….

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