अग्नि आलोक

बात मायके की संपत्ति में महिला के अधिकारों की

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‘मेरी मां की तीन बहनें हैं और एक भाई। नाना की मौत के बाद नानी ने एक वसीयत लिखी लेकिन मेरी मां को नहीं पता कि उसमें क्या है। अब हमारे मामा संपत्ति में हिस्सा नहीं देना चाहते। मेरी मां अब क्या कर सकती हैं?’ यह उलझन एन. सिन्हा की है जिन्होंने ईटी वेल्थ को अपनी ये समस्या लिखकर सलाह मांगी। यह कहानी सिर्फ सिन्हा जी की नहीं है। संपत्ति को लेकर ऐसी उलझनों से जीवन में सबका साबका पड़ ही जाता है। लेकिन एक दूसरी तस्वीर भी है। सोमवार को देश ही नहीं दुनिया के सबसे दौलतमंदों में शुमार मुकेश अंबानी ने अपने विशाल कारोबारी साम्राज्य के अपने बेटे-बेटियों में बंटवारे का एक तरह से खाका खींच दिया। रिलायंस की 45वीं एनुअल जनरल मीटिंग में अंबानी ने ऐलान किया कि आकाश अंबानी टेलिकॉम सेक्टर संभालेंगे, उनकी जुड़वा बहन ईशा अंबानी रिटेल कारोबार संभालेंगी और सबसे छोटा बेटा अनंत अंबानी न्यू एनर्जी यूनिट को देखेंगे। अब आप कहेंगे कि सिन्हा जी और अंबानी के मामले की तुलना क्यों की जा रही है! तो जवाब है कि देश के सबसे अमीर शख्स की इस खुशहाल तस्वीर में एक सीख छिपी है। मुकेश अंबानी का यह उत्तराधिकार प्लान हर भारतीय के लिए सबक है। वह खुद रिटायर नहीं हो रहे, लेकिन अगली पीढ़ी में संपत्ति बांटने का खाका तैयार कर चुके हैं। ईशा अंबानी की शादी हो चुकी है फिर भी पिता के कारोबार में उनकी हिस्सेदारी है। आइए इसी बहाने ‘हक की बात’ (Haq ki Baat) की इस कड़ी में जानते हैं कि कैसे संपत्ति का समय से बंटवारा हो जाए तो कैसे परिवार के रिश्तों की डोर मजबूत हो जाती है। बात की शुरुआत महिलाओं के मायके की संपत्ति में अधिकार से करते हैं।

…तो सबसे पहले सिन्हा जी की मुश्किल का समाधान कर देते हैं। फिर अंबानी की सीख की बात करेंगे। माता-पिता की संपत्ति में एक महिला के क्या अधिकार हैं? क्या कोई महिला मायके की संपत्ति में अपना दावा कर सकती है? इसे लेकर क्या कानून हैं? ऐसे तमाम सवालों का एक-एक करके हम जवाब जानेंगे। एन. सिन्हा के सवाल का जवाब देते हुए ‘दिल से विल’ के फाउंडर राज लाखोटिया ने बताया है कि उनकी मां के पास अपने माता-पिता की संपत्ति में बराबर अधिकार है क्योंकि वह क्लास 1 कानूनी उत्तराधिकारी हैं। वह अपने माता-पिता की संपत्ति के बंटवारे या वसीयत को चुनौती दे सकती हैं। इसके लिए उन्हें किसी अच्छे वकील से संपर्क करना चाहिए।

मुकेश अंबानी से सीखनी चाहिए समझदारी की ये बात
मुकेश अंबानी ने अपने बेटों-बेटी में जिम्मेदारी बांटकर अपने विशाल कारोबारी साम्राज्य के उत्तराधिकार का एक तरह से खाका भी पेश कर दिया है। इससे गैर-जरूरी तनाव, विवाद, कानूनी पचड़ों, मुकदमेबाजी वगैरह का रास्ता बंद हो जाता है जिसमें बहुत समय भी लगता है और खर्च भी। हर शख्स को अपनी संपत्ति का उत्तराधिकारी चुनने का हक है और उसे चुनना चाहिए। वसीयत इसका सबसे ताकतवर साधन है। वसीयत किसी शख्स को मौत के बाद अपनी विरासत सही हाथों में छोड़कर जाने की सहूलियत देता है। वसीयत एक कानूनी दस्तावेज है जो बताता है कि किसी शख्स की मौत के बाद उसकी संपत्ति कैसे और किनमें बांटी जाए और अगर कोई नाबालिग बच्चा है तो उसकी देखभाल कैसे होगा। वैसे जरूरी नहीं कि हर व्यक्ति मौत से पहले अपनी वसीयत लिखी ही हो। अगर किसी ने अपनी वसीयत लिखी है तो उसकी संपत्ति का बंटवारा उसकी इच्छा के हिसाब से ही होगा। लेकिन अगर उसने वसीयत नहीं की हो तो संपत्ति का बंटवारा उत्तराधिकार कानूनों के तहत होगा। अगर शख्स ईसाई, यहूदी या पारसी है तो भारतीय उत्तराधिकार कानून के तहत संपत्ति का बंटवारा होगा। अगर शख्स हिंदू, सिख, जैन या बौद्ध है तो हिंदू उत्तराधिकार कानून 1956 के तहत संपत्ति का बंटवारा होगा। इसी तरह अगर वह मुस्लिम हो तो मुस्लिम पर्सनल लॉ के हिसाब से उसकी संपत्ति का बंटवारा होगा। खैर, अब देखते हैं कि भारत में महिलाओं के संपत्ति अधिकार क्या हैं।

भारत में महिलाओं के संपत्ति अधिकार
भारत में यूनिफॉर्म सिविल कोड नहीं है लिहाजा विरासत और संपत्ति के बंटवारे से जुड़े मामलों में धर्म के आधार पर अलग-अलग नियम-कानून हैं। भारत में हिंदू महिलाओं की संपत्ति के अधिकार हिंदू उत्तराधिकार कानून, 1956 और हिंदू महिला के संपत्ति में अधिकार कानून, 1937 के आधार पर तय हुए हैं। 1956 के कानून में बदलाव करके बाद में हिंदू उत्तराधिकार (संशोधन) कानून, 2005 लाया गया। इसके तहत बेटियों को जन्म से ही पैतृक संपत्ति में बराबर की साझीदार बनाया गया है। शादी के बाद भी बेटी का यह अधिकार बरकरार रहता है। हिंदू उत्तराधिकार कानून 2005 हिंदू, सिख, बौद्ध और जैन पर लागू होता है। यह सिर्फ वैसे मामलों में लागू होता है जिसमें शख्स की बिना वसीयत लिखे ही मौत हो चुकी हो।

पैतृक संपत्ति और पिता की स्वअर्जित संपत्ति में बेटी के अधिकार
हिंदू लॉ के मुताबिक संपत्ति को दो भागों में बांटा गया है- पैतृक और स्व-अर्जित संपत्ति। पैतृक संपत्ति वह है जो 4 पीढ़ियों तक से (पुरुष की) चली आ रही हो और इस पूरी अवधि के दौरान बांटी न गई हो। वहीं, स्वअर्जित संपत्ति वह होती है जब कोई शख्स अपने पैसे से उसे खरीदता हो।

पैतृक संपत्ति में बेटा या बेटी का जन्म से ही एक बराबर हिस्सेदारी होती है। 1956 के हिंदू उत्तराधिकार कानून के तहत पिता की संपत्ति में बेटियों की तभी तक हिस्सेदारी होती थी जब तक वह अविवाहित हैं लेकिन 2005 के संशोधन के बाद बेटी चाहे अविवाहित हो या विवाहित, पैतृक संपत्ति में उसकी बराबर हिस्सेदारी होती है।

पिता की स्वअर्जित संपत्ति के मामले में उसे अधिकार होता है कि वह जिसे चाहे दे दे। ऐसी संपत्ति के मामले में पिता चाहे तो अपने बेटों या बेटियों में से किसी को भी न दे या किसी एक को दे दे। वह चाहे तो अपनी मर्जी से, पूरे होशोहवास में किसी तीसरे, यहां तक कि अजनबी को भी अपनी स्वअर्जित संपत्ति वसीयत के जरिए दे सकता है या गिफ्ट कर सकता है। उसे बेटी चुनौती नहीं दे सकती। बेटे भी नहीं। हालांकि, अगर किसी शख्स की बिना वसीयत लिखे ही मौत हो गई, उसका कोई बेटा नहीं है, सिर्फ बेटी है तो स्वअर्जित संपत्ति पर भी उसी का हक होगा। सुप्रीम कोर्ट ने जुलाई 2022 के अपने एक अहम फैसले में साफ किया कि अगर कोई हिंदू पुरुष का पुत्र नहीं हो और वसीयनामे के बिना उसकी मृत्यु हो जाती है तो उसकी विरासत और स्व-अर्जित संपत्तियों पर उसकी बेटी का अधिकार उसके चचेरे भाई के मुकाबले ज्यादा होगा। कोर्ट ने ऐसा इसलिए कहा क्योंकि मिताक्षरा कानून में सहभागिता (Coparcenary) और उत्तरजीविता (Survivorship) की अवधारणा के तहत हिंदू पुरुष की मृत्यु के बाद उसकी संपत्ति का बंटवारा सिर्फ पुत्रों में होगा और अगर पुत्र नहीं हो तो संयुक्त परिवार के पुरुषों के बीच होगा।

बिना वसीयत लिखे पिता की मौत हो जाए तो संपत्ति पर बेटियों के अधिकार
अगर पिता की वसीयत लिखे बिना ही मौत हो जाए तो उसकी संपत्ति उसके कानूनी उत्तराधिकारियों के बीच बराबर-बराबर बांटी जाएगी। इसका मतलब है कि पिता की संपत्ति चाहे पैतृक हो या स्वअर्जित, वह मां और बच्चों में बराबर-बराबर बंटेगी।

बेटी की शादी हो जाने पर पिता की संपत्ति में अधिकार पर असर
बेटी की शादी होने से पिता की पैतृक संपत्ति में उसके अधिकार पर कोई असर नहीं पड़ता। हिंदू उत्तराधिकार कानून में 2005 के संशोधन के बाद बेटी का जन्म से ही पिता की पैतृक संपत्ति में ठीक उसी तरह अधिकार है, जिस तरह बेटे का। बेटी की शादी के बाद भी उसके इस अधिकार पर कोई असर नहीं पड़ता।

अगर 2005 से पहले बेटी का जन्म हुआ हो या पिता की मौत हो गई हो तब
इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि बेटी का जन्म 9 सितंबर 2005 (जब कानून में संशोधन हुआ) से पहले हुआ है या बाद में। 11 अगस्त 2020 को सुप्रीम कोर्ट ने अपने ऐतहासिक फैसले में स्पष्ट किया कि संशोधित हिंदू उत्तराधिकार कानून लागू होने से पहले यानी 2005 से पहले ही पिता की मौत हो चुकी हो तब भी उसकी पैतृक संपत्ति पर बेटी का बराबर हक होगा। जस्टिस अरुण मिश्रा, जस्टिस एस अब्दुल नजीर और जस्टिस एमआर शाह की बेंच ने कहा, ‘बेटियों को बेटों की तरह ही समान अधिकार मिलने ही चाहिए…बेटी अपने पूरे जीवनकाल में पिता की पैतृक संपत्ति में कोपार्सनर (सहदायिक) बनी रहेगी, चाहे पिता जीवित रहें या उनकी मौत हो चुकी हो।’

मुस्लिम, क्रिश्चियन और पारसी लॉ के मुताबिक संपत्ति में बेटियों अधिकार

हिंदू, सिख, बौद्ध और जैन पर तो हिंदू उत्तराधिकार (संशोधन) कानून, 2005 लागू होता है लेकिन बाकी धर्म के लोगों पर उनके अपने पर्सनल लॉ लागू होते हैं। भारतीय उत्तराधिकार कानून, 1925 ईसाई महिला की संपत्ति के अधिकारों पर लागू होता है। इस कानून में महिला और पुरुष में किसी तरह का भेदभाव नहीं है। पिता की संपत्ति में बेटी के भी ठीक वही अधिकार हैं जो बेटा का है।

मुस्लिम महिला के संपत्ति अधिकारों पर मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरियत) अप्लिकेशन ऐक्ट, 1937 लागू होता है। मुस्लिम लॉ के तहत संपत्ति का अधिकार बहुत ही जटिल है। इसके मुख्यतः 4 स्रोत हैं- कुरान, सुन्ना, इज्मा और कियास। मुस्लिम लॉ में महिला और पुरुष के अधिकारों में कोई भेदभाव नहीं है। किसी शख्स की मौत होने पर उसकी संपत्ति पर उसके कानूनी उत्तराधिकारियों चाहे पुरुष हों या महिला, का अधिकार हो जाता है। हालांकि, बेटी को बेटे की तुलना में सिर्फ आधी संपत्ति ही मिलती है। अगर कोई पिता बेटी को बेटे के बराबर संपत्ति देना भी चाहे तो वह ऐसा नहीं कर सकता क्योंकि मौजूदा कानूनों में इसकी इजाजत नहीं है।

पारसियों पर भारतीय उत्तराधिकार कानून, 925 लागू होता है अगर संबंधित शख्स की मौत बिना वसीयत लिखे हुई हो तो। बेटा हो या बेटी, संपत्ति पर उसका एक समान अधिकार है।

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