दिव्यांशी मिश्रा (भोपाल)
हमारे हेड डॉ. मानवश्री संग अपने खूब बडे देश के चक्कर लगाने के बाद मै इस नतीजे पर पहुँची हूँ, कि कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी और अटक से लेकर कटक तक फैले इस महान देश के करोड़ों निवासियों को,खाने पीने को जो भी स्वाद नसीब है ,उसको देखते हुये इंदौरी सब पर भारी है।
सच तो यह है कि इंदौर से इतर हमारे देशवासी जीने के लिये खाते है पर खाने के लिये जीने वाले भारतीय नागरिक सिर्फ़ और सिर्फ़ इंदौर मे ही बसते हैं इसे ऊपर वाले की महिमा ही समझ ले यहाँ वही दिव्य आत्मा जन्म ले पाती है जिसकी जीभ पर दूसरो से ज्यादा स्पेशलिस्ट टेस्ट बर्ड्स होते हैं।
सच्चा इंदौरी दुनिया की हर चीज से समझौता कर सकता है पर खाने पीने की ख़राब क्वॉलिटी से राज़ी नही हो सकता। उसे दूर बसी किसी शांत पॉश कॉलोनी के बजाय किसी नामी गिरामी मिठाई की दुकान के पास वाली भीड़ भाड भरी गली का निवासी होना ज़्यादा बेहतर लगता है।
वह लेह लद्दाख की यात्रा के लिये ओवरकोट साथ रखना भूल सकता है पर नमकीन के पैकेट ले जाना भूल जाये यह नामुमकिन है। वह दुनिया के किसी भी बेहतरीन होटल मे ठहरने के पहले उसके किचन मे पकने वाली डिशेज के बारे मे जानकारी हासिल करता है।
नियाग्रा और एफिल टॉवर के दर्शन से आप जितना खुश हो सकते है ,सच्चा इंदौरी दाल बाफले और लड्डुओं के भरपेट भोजन की गुंजाईश भर से उससे ज़्यादा खुश होकर दिखा सकता है।
पैदाइशी इंदौरी वह है जिसे इमरजैन्सी और नमकीन की बंद दुकानों मे से किसी एक को चुनना हो तो वह आँख बंद करके इमरजैन्सी को ही चुनेगा। यहाँ के लोग हॉस्पीटल मे भर्ती मरीज को देखने जाते वक्त फलो की टोकरी की जगह नमकीन के पैकैट साथ ले जाते हैं।
इंदौरी भले ही मजबूरी मे शिकागो मे जा बसा हो या अब लंदन मे उसे दिन काटना पड़ रहे हो इंदौर के बेहतरीन नमकीन और अनगिनत किस्म की मिठाईयो की लगातार सप्लाई के बिना उसका जिंदा रह पाना मुश्किल है।
इंदौरी किसी मरने वाले से ज्यादा चर्चा उसकी तेरहवी मे बनी खस्ता कचौरियो की करते हैं। ये किसी आदमी का मिलनसार होना इस बात से तय करते है कि उसके यहाँ जाने पर नाश्ते मे क्या क्या परोसा गया था या उसने इन्हे खाने का पूछा या नही। आपने छप्पन भोग परोस दिए तो आप ख़ूब अच्छे और आपने चाय से टरका दिया तो आप सबसे बुरे।ये अपनी जीभ के लिए जीते हैं और उसी की ख़ातिर मर जाते है।
इंदौरी को पहचानना बडा आसान है। उससे पोहे जलेबी का ज़िक्र कीजिए ,जिस की आँखें चमकने लगे वो इंदौरी। वो आपसे जो भी बात करेगा उसमे समोसे और पेटीज को घुसा देगा। आप उससे गरीबी ,भूख पर बात करना चाहेगें वो लाल बाल्टी वाले की कचौरी के गीत गाने लगेगा।
आप बेरोजगारी और भ्रष्टाचार के मुद्दे पर बात करने की कोशिश करेगें वो आपको सराफे की गलियो मे ले जायेगा। आप जीएसटी की तरफ ले जाना चाहेगे उसे वो आपको गुलाबजामुन के शीरे मे गोता लगवा देगा। ये बंदे पोहे की दुकान पर जाकर आँखे खोलते है और रात को छप्पन दुकानो की जलेबी और छावनी पर कुल्हड का दूध पीने के बाद ही सोते हैं।
यूरोप अमेरिका वालो ने कुल मिलाकर जितने अविष्कार किये होगें उससे ज्यादा तो इंदौरी कर चुके। अब ये बात अलग है ये सारी खोजे खाने पीने की फील्ड मे हुई हैं।
आप और किसी शहर की बताईये जहाँ किसी एक दुकान पर ही ढाई सौ किस्म के सैंडविच या सौ तरह की चाय या पचास तरह की खिचड़ी मिलती हो। ऐसा कमाल करना बस इंदौरियो के ही बस की बात है।
यदि कोई इंदौर आये बिना अपने आपको स्वाद के इलाक़े का महारथी समझता है तो उसका यह दावा बिना उसकी अगली बात सुने ख़ारिज कर दिये जाने लायक है। मै जो कहना चाह रहा हूँ उसे इंदौर आये बिना समझना थोडा मुश्किल हो सकता है आपके लिए।
एक ही तरीका है इसका : इंदौर पहुँचे। मिले वहाँ रहने वालों से और अपनी जीभ से तस्दीक करें मेरे कहे का। (चेतना विकास मिशन)