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हर साल दुनिया में सबसे अधिक जानें ले रही है टीबी

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बिबेक देबरॉय, ब्योर्न लोमबोर्ग, आदित्य सिन्हा

टीबी एक ऐसी बीमारी है, जिसने 19वीं सदी में बड़ी संख्या में लोगों की जान ली। अजीब बात है कि आज भी यह संक्रामक बीमारी दुनिया में सबसे अधिक जानें ले रही है। फिर भी इस आपदा की ओर से लोगों ने आंखें बंद कर रखी हैं।

2030 तक के लिए तय किए गए सस्टेनेबल डिवेलपमेंट गोल्स (SDGs) में से ज्यादातर में हम पीछे चल रहे हैं, लेकिन टीबी के मामले में स्थिति कहीं बुरी है। कोरोना महामारी के दौरान जब दुनिया भर में लॉकडाउन लगा तो उससे यह मसला और गंभीर हुआ। इस दौरान कई लोगों में इस बीमारी की पहचान नहीं हो सकी और इसी वजह से उनका इलाज भी नहीं हो पाया। ऐसे में 2030 तक टीबी को लेकर जो लक्ष्य तय किए गए हैं, उसे हासिल करना मुश्किल लग रहा है। वहीं, दूसरे लक्ष्यों को लेकर अभी जो स्थिति है, उसे देखकर लग रहा है कि सभी लक्ष्यों को हासिल करने में 50 साल की देरी होगी।

Image : iStock

इसकी असल वजह यह है कि इसके तहत 169 प्राथमिकताएं तय की गई हैं, जो बहुत बड़ी संख्या है। इससे पोषण, शिक्षा और टीबी जैसी चुनिंदा समस्याओं और उनसे जुड़े लक्ष्यों पर ध्यान केंद्रित करना मुश्किल हो गया है। इन 169 प्राथमिकताओं में रीसाइक्लिंग, शहरी पार्क और पर्यावरणसम्मत जीवनशैली जैसी चीजें भी शामिल हैं, जबकि ये शिक्षा, टीबी और पोषण जितनी महत्वपूर्ण नहीं हैं। फिर भी टीबी को लेकर हाल में हुए एक शोध से उम्मीद जगी है। इस शोध के नतीजों को डॉक्टरों के बड़े वर्ग से भी मान्यता मिली है। अगर इन नतीजों पर अमल किया जाए तो टीबी पर काफी हद तक काबू पाया जा सकता है। इस शोध का एक संदेश यह भी है कि 2030 तक के लिए डिवेलपमेंट गोल्स की अहम प्राथमिकताओं में इसे शुमार किया जाए।

आपको जानकर हैरानी होगी कि दुनिया में जितने भी लोग हैं, उनमें से 25 फीसदी में टीबी का बैक्टीरिया है। यहां तक कि यूरोप और अमेरिका जैसे अमीर देशों में भी हर 10वें शख्स में यह कीटाणु है। लेकिन जिन्हें अच्छा और पौष्टिक भोजन मिलता है, उनमें यह रोग का रूप धारण नहीं कर पाता।

हर साल करीब 1 करोड़ लोगों को टीबी होती है। लेकिन संसाधनों की कमी के कारण 2021 में सिर्फ 60 लाख लोगों में ही इस मर्ज की पहचान हो पाई। यह बात इसलिए गंभीर है क्योंकि टीबी के जिन मरीजों का इलाज नहीं होता, उनमें से 50 फीसदी की मौत हो जाती है। और जिन लोगों की मौत नहीं होगी, वे इसे दूसरों में फैलाना जारी रखेंगे। अगर कोई इस रोग से पीड़ित है तो वह साल भर में औसतन 5 से 15 लोगों को संक्रमित कर सकता है।

2021 में जिन 60 लाख टीबी के मरीजों की पहचान हुई और जिनका इलाज चल रहा है, उसमें भी दिक्कतें आ रही हैं। इस मर्ज के इलाज के लिए 6 महीने तक दवाएं लेनी पड़ती हैं, लेकिन इनके कई साइड-इफेक्ट भी होते हैं। साथ ही, इन दवाओं से बुखार और वजन में कमी जैसे टीबी के मुख्य लक्षण कुछ ही हफ्तों में चले जाते हैं, इसलिए कई लोग बीच में ही इलाज बंद कर देते हैं। इससे न सिर्फ बीमारी के दूसरों में फैलने की आशंका बढ़ जाती है बल्कि यह डर भी रहता है कि टीबी के बैक्टीरिया कहीं दवाओं के प्रति प्रतिरोधी क्षमता न हासिल कर लें। ऐसी स्थिति में इलाज डेढ़ से दो साल तक लंबा खिंच जाता है और खर्च भी पहले से अधिक आता है।

टीबी की रोकथाम के लिए हम इससे कहीं अधिक कर सकते हैं। पहले तो अधिक से अधिक लोगों की जांच होनी चाहिए और यह भी पक्का किया जाए कि मरीज दवा का पूरा कोर्स पूरा करें। कोपेनहेगन कंसेंसस की एक नई शोध से पता चला है कि इस काम के लिए और 5 अरब डॉलर सालाना की जरूरत पड़ेगी। 2018 में संयुक्त राष्ट्र ने 2022 तक इस मद में हर साल 6-7 अरब डॉलर खर्च करने का वादा किया था। अफसोस की बात यह है कि 2018 के बाद से इस खर्च में कमी आई है। टीबी के लिए 5 अरब डॉलर की अतिरिक्त मदद से 95 फीसदी लोगों में इस रोग का पता लगाया जा सकेगा। इसके साथ लोगों को 6 महीने तक दवा का कोर्स पूरा करने के लिए कुछ अतिरिक्त इंसेंटिव दिए जा सकते हैं।

टीबी के इलाज में भारत की प्रगति तारीफ के काबिल है। 2022 की ग्लोबल टीबी रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत में इसके मरीजों की संख्या 18 फीसदी कम हुई। वहीं, वैश्विक स्तर पर यह गिरावट 11 फीसदी ही रही। 2022 में भारत में टीबी के सबसे अधिक मरीज उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, राजस्थान और बिहार में मिले थे।

देश में नैशनल हेल्थ मिशन (NHM) के तहत सरकार रोग की रोकथाम के लिए नैशनल टीबी एलिमिनेशन प्रोग्राम (NTEP) चलाती है। पिछले साल सितंबर में प्रधानमंत्री टीबी मुक्त अभियान नाम की योजना भी शुरू की गई। इसका मकसद टीबी मरीजों को मदद मुहैया कराना है।

टीबी को लेकर सही अप्रोच नहीं अपनाने से यह दुनिया में सबसे अधिक जानें लेने वाला संक्रामक रोग बन गया है। इस रोग को खत्म करने का संकल्प लेना होगा। 2030 तक डिवेलपमेंट गोल्स के तहत हमने बहुत सारे वादे किए हैं, लेकिन अगर इनमें से चुनिंदा लक्ष्यों को हासिल करने की बात होगी तो उसमें टीबी को जरूर शामिल किया जाना चाहिए।

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