अखिलेश अखिल
तेजस्वी यादव! बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और राजद प्रमुख लालू यादव के दूसरे बेटे की पूरे देश में खूब चर्चा है। हालांकि तेजस्वी यादव बिहार की धरती को मथ रहे हैं और इसका असर देश के उन राज्यों में भी पड़ता दिख रहा है जहाँ पिछड़ी, दलित और मुस्लिम समाज का ज्यादा दखल है। एक तेजस्वी ने बिहार में बीजेपी को तो भारी चुनौती दे ही रखी है, तेजस्वी ने अपने चाचा नीतीश कुमार की राजनीति को भी गड्ढे में धकेल दिया है। ऊपर से जदयू के लोग चाहे जो भी कहें लेकिन उसका हाल तो बीजेपी से भी ज्यादा खराब हो चला है। बिहार में बस एक ही नाम चल रहा है और वह नाम है तेजस्वी यादव।
तेजस्वी ने बिहार की पूरी राजनीति को ही बदल दिया है। तेजस्वी अभी घायल हैं। पीठ और कमर में दर्द है। डॉक्टर ने उन्हें सभाओं में जाने से मना कर रखा है लेकिन तेजस्वी यादव डॉक्टर की सलाह को नहीं मान रहे हैं। वे कहते फिर रहे हैं कि उन्हें अभी किसी बेड रेस्ट की जरूरत नहीं है।
हम तो दूसरों को बेड रेस्ट में भेजने वाले हैं। चार जून के बाद पीएम मोदी भी बेड रेस्ट में जा सकते हैं। क्योंकि बिहार में बीजेपी कही नहीं जीतने जा रही है। सभी सीटों पर इंडिया गठबंधन की जीत होने जा रही है। और यह सब मैं नहीं कह रहा, बिहार की जनता ही यह सब ऐलान कर रही है। तेजस्वी इसके साथ ही बहुत कुछ और भी कहते नजर आते हैं।
तेजस्वी हर सभाओं में टकाटक, फटाफट, खटाखट जैसे शब्दों का भी उपयोग कर रहे हैं। बीजेपी और मोदी के लिए भी तेजस्वी सफाचट की बात करने से बाज नहीं आ रहे हैं। बीजेपी परेशान तो है। यह बात और है कि अब दो चरणों के चुनाव को अपने पाले में करने के लिए पीएम मोदी, अमित शाह और नीतीश कुमार भी खूब मेहनत करते दिख रहे हैं। उनकी सभाओं में भी भीड़ जुट रही है लेकिन बीजेपी के लोग भी कहते हैं कि इस बार का चुनाव कोई आसान नहीं है। तेजस्वी ने पूरी राजनीति को ही बदल दिया है।
तेजस्वी अपने पिता की राजनीति को भी मात दे रहे हैं और बिहार के विकास पुरुष के रूप में चर्चित भी हो रहे हैं। तेजस्वी जब भी एक करोड़ नौकरी की बात करते हैं और हर महिला के खाते में एक लाख नकदी देने की बात करते हैं तो बीजेपी के पास कोई उत्तर नहीं होता। पीएम मोदी कहने को तो बहुत कुछ कहते हैं लेकिन तेजस्वी जिस तरह से बिहारी समाज के बीच चर्चित हो रहे हैं उससे साफ़ लगता है कि अगर उनकी सभाओं में जुटी लाखों की भीड़ वोट में बदल गई तो बीजेपी और जदयू की पूरी राजनीति ही ख़राब हो सकती है।
बिहार में लोकसभा की 40 सीटें हैं। पिछले लोकसभा चुनाव में बीजेपी को 17 सीटें हाथ लगी थीं। 6 सीटों पर चिराग की पार्टी की जीत हुई थी जबकि 16 सीटों पर जदयू को जीत मिली थी। सिर्फ एक सीट पर कांग्रेस की जीत हुई थी। कह सकते हैं कि कुल चालीस सीटों में से 39 सीटें एनडीए के पाले में चली गई थीं। राजद को कोई सीट नहीं मिली थी।
यह पहली बार हुआ था कि राजद की स्थापना के बाद बिहार से राजद से कोई सीट पर जीत हासिल नहीं हुई थी। लेकिन इस बार ऐसा नहीं है। इस बार का गणित बदला हुआ है। इस बार कांग्रेस, राजद, वीआईपी और वाम दल एक साथ मिलकर चुनावी मैदान में हैं।
हालांकि किस पार्टी को कितनी सीटें मिलेंगी और कौन जीतेगा और कौन हारेगा इसकी सटीक जानकारी तो चार जून को ही पता चलेगी लेकिन अभी बिहार की जो स्थिति है उससे साफ़ है कि पहली बार बिहार की हवा बदली हुई है। तेजस्वी की आंधी में बीजेपी और जदयू के पांव उखड़ते नजर आ रहे हैं। जानकार तो यह भी कहते हैं कि बिहार में इस बार बीजेपी और जदयू को बड़ा नुकसान हो सकता है।
कई जानकार तो यह भी कह रहे हैं कि बिहार में इस बार फिफ्टी-फिफ्टी का खेल है। यानी आधी से ज्यादा सीटें इंडिया गठबंधन के पास जाती दिख रही हैं। और यह सब तेजस्वी की वजह से ही संभव हो सका है। बड़ी बात तो यह है कि तेजस्वी की दहाड़ का असर झारखंड में भी दिख रहा है। समाज के दलित, पिछड़े और मुसलमान वोटर पूरी तरह से इंडिया गठबंधन के साथ जा खड़े हुए हैं।
और सबसे बड़ी बात तो यह है कि अगर तेजस्वी का जादू चल गया तो इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि बिहार में इस बार बीजेपी को बड़ा डेंट लगता दिख रहा है। बिहार में जातीय राजनीति आज भी सबसे ऊपर है और जातीय राजनीति के साथ ही बिहार के युवा इस बार तेजस्वी के साथ जा खड़े हो गए हैं। राहुल गांधी भी तेजस्वी के सहारे ही बिहार में कुछ सीटों को जीतने की बात कर रहे हैं।