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सच तो बोलो सरकार; शव कहीं से भी बहकर आ रहे हों, पर हैं तो इंसानों के ही?

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कोरोना की सबसे बड़ी त्रासदी अगर किसी को कहा जाएगा तो वह है मोक्षदायिनी गंगा के किनारे पर अटे पड़े शवाें की भयावह तस्वीरें। शव बिहार के बक्सर में मिल रहे हैं और बिहार पुलिस यह कहकर पल्ला झाड़ रही है कि हम क्या करें, यह तो उत्तर प्रदेश से बहकर आ रहे हैं।

शव कहीं से भी आ रहे हों, वे हैं तो इंसानों के ही? एक राज्य को दूसरे राज्य से इंसानियत को शर्मसार करने वाले, दिलों को झकझोरने वाले इस मुद्दे पर राजनीति तो नहीं करनी चाहिए। हमारे पास शब्द नहीं हैं कि गंगा के किनारे मिले अब तक 110 शवों की दुर्दशा को क्या नाम दें? कैसे उनकी देह की स्थिति का वर्णन करें।

यह शव बिहार के हों या उत्तर प्रदेश के, क्या फर्क पड़ता है- उनका सम्मान-जनक अंतिम संस्कार तो किया ही जाना चाहिए। लेकिन जिस तरह दैनिक भास्कर में खबर का खुलासा होने के बाद प्रशासन जागा और एक के ऊपर एक शव रखकर क्रिया कर्म किया गया, उससे लगता है जैसे पुलिस कोई सबूत मिटा रही है या कोई जालसाज़ी के दस्तावेज दफन कर रही है। सच यह है कि गंगा किनारे जेसीबी से गड्‌ढे खुदवाकर शव उसमें दफन करने की रस्म अदायगी की जा रही है।

सदियों से गंगा बह रही है, लेकिन आज तक गंगा के किनारे बसे गांव वालों ने इंसानियत को तार-तार करने वाला ऐसा मंजर कभी नहीं देखा। सरकार की एक बात मान भी लें कि इनकी मौत कोरोना से नहीं हुई है, तो फिर सैकड़ों की तादाद में शव कहां से आ रहे हैं? ये 110 शव हैं जो रिकॉर्ड में दर्ज हैं- गंगा का प्रवाह 2525 किमी. में फैला है, पता नहीं मां गंगा ने किस शव को किस किनारे, कहां छोड़ दिया।

सच कहें तो इस कृत्य से न सरकारें शर्मसार हुई हैं और न ही हमारा सिस्टम, हां आज मां गंगा जरूर शर्मसार हुई है, जो इन शवों का वाहक बनी है। यह स्थिति बिहार में मिलने वाले शवों की है। उत्तर प्रदेश में गंगा किनारे मिल रहे शवों की गिनती अभी बाकी है।

हम किसी सरकार को दोष नहीं दे रहे हैं। बस इतना बता रहे हैं कि यह महामारी है जाे न तो योगी आदित्यनाथ के दस्तखतों से प्रकट हुई है और न ही नीतीश कुमार के किसी आदेश से आई है। बस! इंसानियत के लिए सच बोलिए। शवों के ढेर इशारा कर रहे हैं कि आंकड़ों में कहीं हेरफेर है।

जान बहुत कीमती है ‘साब’, जिसके घर में कोरोना से मौत हुई है पूछकर देखिए, रूह कांप जाएगी। जब पहली खबर आई सरकारों को उसी दिन अलर्ट हो जाना चाहिए था लेकिन आंकड़ों के कम और ज्यादा दिखाने के प्रबंध शुरू हो गए। कितने ही शव बहकर पश्चिम बंगाल में बने फरक्का बैराज तक पहुंच गए होंगे, कुछ पता ही नहीं।

राजनीति तो चलती रहेगी, जिंदा और उसके बाद मृत इंसानों की कद्र करना भी समाज सेवा का ही हिस्सा है, जो इस पूरी एक्सरसाइज में अब तक दिखाई नहीं पड़ा रहा। कुछ तो करिए सरकार…।

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