मुनेश त्यागी
अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय मंचों पर भारत का तिरंगा लहराने वाली महिला पहलवानों को अपने मान सम्मान की रक्षा के लिए जंतर मंतर नई दिल्ली पर धरना देना पड़ रहा है और न्याय की भीख मांगनी पड़ रही है। उन्होंने भारत के राष्ट्रीय कुश्ती संघ के अध्यक्ष ब्रिज भूषण शरण सिंह पर शारीरिक शोषण और यौन उत्पीड़न के आरोप लगाए हैं।यह एक गंभीर मामला है।
वे पिछले कई महीनों से अपने खिलाफ हुए शारीरिक शोषण के खिलाफ आंदोलनरत हैं और उनकी मांग है कि दोषी व्यक्तियों के खिलाफ एफ आई आर दर्ज करके निष्पक्ष जांच की जाए और दोषियों को दंड दिया जाए। मगर सरकार उनकी बात नहीं सुन रही है। उसने अपने कान और आंख बंद कर लिए हैं और जैसे वह आरोपी सांसद बृजभूषण शरण सिंह की मदद कर रही है।
यह घटना सरकार के “बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ” के नारे का एकदम खुला उल्लंघन और परिहास है। बहुत सारे लोग सरकार के इस उपेक्षापूर्ण रवैये से एकदम अचंभित हैं और बहुत सारी राष्ट्रीय पार्टियां और जन संगठन इसका विरोध कर रहे हैं और इन महिला पहलवानों के समर्थन में जिला, राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर प्रदर्शन कर रहे हैं और दोषियों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की मांग कर रहे हैं।
यहां पर अहम सवाल यह है कि सरकार इतने लंबे आंदोलन के बाद भी इन महिला पहलवानों की बात को क्यों नहीं सुन रही है? और इन महिला पहलवानों को इतना बड़ा कदम उठाने के लिए क्यों मजबूर होना पड़ रहा है? ये महिला पहलवान बाकायदा नाम लेकर आरोपियों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की मांग कर रही हैं, मगर सरकार इनकी बात क्यों नहीं सुन रही है? आखिर वह किसे बचा रही है, किसकी मदद कर रही है? क्या वह सीधे सीधे आरोपियों को नही बचा रही है?
इस घटना को लेकर देश विदेश में भारत की बेज्जती हो रही है, उसका मखोल और खिल्ली उड़ाई जा रही है। मगर सरकार ने इस सब को दरकिनार कर दिया है और वह इस मामले में कोई सख्त कार्यवाही करने को अभी तक तैयार नहीं है । मामला यहां तक बिगड़ गया है कि दिल्ली पुलिस इन पीड़ित महिलाओं की बात नहीं सुन रही है। उनकी एफ आई आर दर्ज नहीं कर रही है।
मामला अब भारत के सर्वोच्च न्यायालय में पहुंच गया है जहां पर सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को सख्त टिप्पणी करने पर मजबूर होना पड़ रहा है। भारत सरकार “बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ” का नारा दे रही है। इन महिलाओं की दुर्गति और दैहिक शोषण के आरोप, सरकार के इस नारे के एकदम खिलाफ है। सरकार ने आज तक इन पीड़ित महिला पहलवानों की बात नहीं सुनी, उनकी मांग पर कार्यवाही नहीं की। आखिर यह सरकार का कैसा नारा है?
हमें तो लगता है कि सरकार ने अब महिला बचाओ, “बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ”, का नारा छोड़कर “अपराधी बचाओ, अपराधी बचाओ” की मुद्रा धारण कर ली है। यहां पर यह सवाल भी खड़ा होता है कि अगर भारत की सरकार भारत की इन बेटियों की बात नहीं सुनी, इनके आरोपियों के खिलाफ सही और निष्पक्ष जांच नहीं की गई और उन्हें सख्त दंड नहीं दिलवाया गया, तो भारत के अधिकांश माता-पिता अपनी बेटियों को खेलों में हिस्सा लेने की इजाजत नहीं देंगे। क्योंकि उस स्थिति में कोई भी मां-बाप अपनी बेटियों को खेलों में भेजने की जुर्रत नहीं कर सकता।
यह भारत के खेलों के लिए एक बहुत बड़ा धक्का साबित होगा। भारत की इन पहलवानों की मांगों में और उनके आरोपों में कोई खामी नजर नही आती है, उनकी मांगे एकदम जायज हैं, कानूनी हैं। मगर सरकार के इशारों को देखकर लगता है कि भारत सरकार का, दिल्ली पुलिस का, कानून के शासन में, संविधान में और न्यायपालिका में कोई विश्वास नहीं है। वह कानून और संविधान को ताक पर रखना चाहती है और अपनी मनमर्जी चलाना चाहती है।
इस मामले में दूध का दूध और पानी का पानी करने के लिए, सरकार की यह सबसे बड़ी जिम्मेदारी है कि वह हालात को देखते हुए इन बेटियों की बात सुने, आरोपियों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करें और उनके खिलाफ एफ आई आर दर्ज करके उन्हें जेल में भेजें भेजा जाए और उनको सख्त सजा दिलवाने के पूरे इंतजामात किए जाएं।
मामला गंभीर होता जा रहा है कि इन महिला पहलवानों ने आरोप लगाए हैं कि उन्हें जान से मारने की धमकी दी जा रही है, उनकी जान-माल को खतरा पैदा हो गया है और उन्हें पैसे का लालच देकर तोड़ने की कोशिश की जा रही है। यह एकदम से गंभीर अपराध है, गंभीर आरोप है।
हम यहीं पर यह भी मांग करेंगे कि आखिर हमारे देश के खेल प्राधिकरण में गैर खिलाड़ियों का क्या काम? हमारे राष्ट्रीय, राज्य और जिला स्तर के खेल संघों में जाने-माने खिलाड़ियों को चुना जाना चाहिए। इनमें भ्रष्ट और बेईमान राजनीतिज्ञ पदाधिकारी बनने पर एकदम तुरंत रोक लगा देनी चाहिए और तमाम आरोपियों के खिलाफ मामला दर्ज करके तुरंत सख्त कानूनी कार्यवाही की जानी चाहिए। तभी जाकर खेल प्राधिकरणों में हो रहे शोषण के आरोपों से बचा जा सकेगा। यही समय की सबसे बड़ी मांग है