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बदलना पड़ेगा सरकार और समाज का औरत विरोधी अमानवीय रवैया 

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मुनेश त्यागी

      आजकल औरतों के खिलाफ बढ़ रहे अपराध और दूसरे मामलों को लेकर तरह-तरह के विश्लेषण और दृष्टिकोण सामने आ रहे हैं। जहां पिछले तीन साल में 13 लाख 13 हजार किशोरियां और महिलाएं लापता हुई हैं, वहीं दूसरी ओर इलाहाबाद उच्च न्यायालय के जज साहब फरमा रहे हैं कि कुछ चालाक और चतुर औरतें, पुरुषों को आसानी से फसाने में कामयाब हो रही हैं। हाईकोर्ट ने कहा है कि कई औरतें लंबे समय तक पुरुषों से शारीरिक संबंध बनाती हैं और उसके बाद महिलाएं झूठे मामले दर्ज कराती हैं, पुरुषों को परेशान करती हैं। इस प्रकार औरतें कानूनी सुरक्षा का लाभ उठाकर अनुचित लाभ उठा रही हैं। ऐसे में उन्होंने अधिकारियों को सजग रहने के लिए कहा है।

       पिछले दिनों संसद में पेश एनसीआरबी की रिपोर्ट में बताया गया है की 2019 से लेकर 2021 के बीच देश में 13,13000 से ज्यादा किशोरियां और महिलाएं लापता हो गई हैं। मध्य प्रदेश इनमें सबसे ऊपर है तो दूसरे स्थान पर बंगाल है। 18 साल से अधिक उम्र की 10,61, 648 महिलाएं और उससे कम उम्र की 2,5, 430 लड़कियां शामिल हैं। यहीं पर बड़ी रोचक बात है केंद्र शासित प्रदेशों में दिल्ली की लड़कियों और महिलाओं के लापता होने की संख्या सबसे अधिक है। राष्ट्रीय राजधानी में 2019 से 2021 के बीच 61,054 महिलाएं और 22,919 लड़कियां गायब हुई हैं।

       अब यहां पर सबसे बड़ा सवाल यह है कि आमतौर से देखने में आ रहा है कि इन आंकड़ों को लेकर ना तो संसद में कोई चर्चा हुई और ना ही समाज के अंदर इन पर कोई चर्चा हो रही है, जैसे लोगों ने इनको सरसरी नजर से पढ़ कर ही छोड़ दिया है। उन्होंने इन आंकड़ों पर गहराई से सोचने की जरा भी जरूरत महसूस नहीं की कि आखिर ये किसकी बेटियां हैं, ये कौन महिलाएं हैं? इनको कौन ले गया? ये कहां चली गई, कहां लापता हो गई?

       इस तरह की कोई जानकारी समाज में नहीं है और समाज और सरकार के लोगों ने यह जानने की भी कोशिश नहीं की कि आखिर यह क्या माजरा है? यह क्या हो रहा है? इतनी बड़ी संख्या में महिलाएं और बच्चियां कहां चली गई? कौन ले गया? यह एक बहुत ही विचारणीय और गंभीर सवाल है। बड़े अफसोस की बात है कि इतना गंभीर मुद्दा होते हुए भी इस पर सरकार और समाज की कोई नजर नहीं है।

         अगर ऐतिहासिक दृष्टि से देखें तो हमारे समाज में हजारों साल से औरत विरोधी मानसिकता और सोच मौजूद है। औरतों को गुलाम बनाकर रखा गया है, दासियां बनाकर रखा गया है, उन्हें दहेज में लिया और दिया गया है, वे दहेज का सामान हैं, मनोरंजन का सामान है। भारतीय समाज में उन्हें बराबरी के मानवाधिकार उपलब्ध नहीं कराए गए और औरतों का दर्जा यहां तक गिरा दिया गया है कि मनुस्मृति में उसे शूद्रातिशूद्र कहा गया है, औरतों को किसी भी प्रकार की आजादी, शिक्षा, धन दौलत, रोजगार और जमीन में हिस्सेदारी देने की सख्त से सख्त मनाही की गई है।

      भारत में आजादी मिलने के बाद भी उनकी मानवीय सोच के हिसाब से कोई बेहतरी की बात नहीं की गई। आज भी हमारे देश में दुनिया में सबसे ज्यादा अनपढ़ और बेरोजगार और मानवाधिकारों से वंचित महिलाएं मौजूद हैं। वर्तमान सरकार की नीतियों और नजर को देखकर नहीं लगता की औरतों की इतनी बुरी दशा में, निकट भविष्य में कोई अच्छाई की बात होने जा रही है।

      कितने अफसोस की बात है की आजादी के 75 साल बाद भी औरतों की इस दर्दनाक स्थिति को ठीक करने की, यथायोग्य सुधारने की कोई बुनियादी और गम्भीर कोशिश नहीं की गई है। आज भी औरतों को ही बेटा बेटी पैदा करने के लिए जिम्मेदार ठहराया जाता है, जिस कारण हजारों लाखों मुकदमें अदालतों में लंबित है और हजारों लाखों घर और मां बाप और बेटे बेटियां, पति पत्नियां इससे पीड़ित हैं। जबकि वैज्ञानिक तथ्य कहते हैं कि बेटा या बेटी पैदा करने के लिए बेटी नहीं बेटा ही जिम्मेदार है।

       यही हाल औरतों को मिलने वाले रोजगार से है। अधिकांश औरतों के पास कोई रोजगार नहीं है। उनको मिलने वाले वेतन में भी असमानता है और भेदभाव मौजूद है। बहुत सारे गरीब घरों की बहुत सारी बच्चियां आज भी शिक्षा से वंचित है, गरीबी और अभाव में अपना जीवन जी रही हैं। इन 13 लाख 13 हजार  बच्चियों और औरतों के लापता होने में गरीबी और अभाव का ही सबसे बड़ा हाथ है। अपनी इसी कमजोरी और नाकामी के मद्देनजर सरकार इन लापता किशोरियों और औरतों का पता लगाने की कोई कोशिश या कोई बात नहीं कर रही है।

        ऐसा ही कुछ हाल इलाहाबाद उच्च न्यायालय की औरतों को लेकर की गई टिप्पणी में मिलता है। यहां पर भी कई बार कुछ शातिर किस्म के लोगों द्वारा कुछ भली औरतों को फंसा लिया जाता है, उनसे शादी करने की बात की जाती है और इसको लेकर शारीरिक संबंध बनाए जाते हैं। मगर कई दुराचारी पुरुष समय आने पर उनसे शादी करने से मना कर देते हैं और मामला पदार्थों में पहुंच जाता है।

      कई मामलों में यह भी देखा गया है कि कई चालाक और चतुर औरतें, कई आदमियों को अपने जाल में फंसा लेती हैं, उनसे प्रेम संबंध स्थापित करती हैं और बाद में शादी करने का दबाव बनाती है। जब आदमी शादी करने से मना करता है तो मामला पुलिस और अदालतों में पहुंच जाता है। और इस चालाकी को लेकर कई बार कई निर्दोष लोगों की जिंदगी बर्बाद हो जाती है।

      इन सभी अवांछित घटनाओं को लेकर हम यहां एक अजीब स्थिति देख रहे हैं कि आज भी बहुत सारी औरतें घरेलू हिंसा, अपराध, बलात्कार, अपहरण, अशिक्षा, बेरोजगारी, गरीबी और आर्थिक विपन्नता की शिकार हैं जिस कारण कई औरतें अपनी जिंदगी बचाने के लिए अपना घर छोड़ने को मजबूर हो जाती हैं, घर से लापता हो जाती हैं। वही कुछ चतुर और चालाक औरतें कुछ मनुष्यों को परेशान करती हैं, उन्हें गलत मुकदमों में फंसाती हैं।

       सबसे गंभीर और अफसोस की बात यह है कि आधुनिक समाज में भी औरतों को वह मुकाम उन्हें नहीं मिल पाया है, जो उन्हें मिलना चाहिए था। वे शिक्षित नहीं हैं, बेरोजगार हैं, गरीब हैं, असुरक्षित हैं, अभाव और पीड़ा कि शिकार हैं और बहुत ही अफसोस की बात यह है कि सरकार और समाज के पास, उन्हें इन अमानवीय हालातों से निकालने का कोई रोडमैप नहीं है जिस कारण बहुत सारी औरतें इन अमानवीय परिस्थितियों में रहने को मजबूर हैं।

      यहीं पर सबसे बड़ा सवाल उठता है कि आखिर औरतों को यह सब आधुनिक मानवीय अधिकार क्यों नहीं दिए जा रहे हैं? उन्हें आज भी क्यों हजारों साल पुरानी अधिकारहीनता की स्थिति में रखा जा रहा है? इसका कारण यह है की आजादी के कुछ वर्षों को छोड़कर, औरतों को उनके बुनियादी अधिकार रोजगार शिक्षा स्वास्थ्य जायदाद और जमीन में हिस्सेदारी नहीं प्रदान की गई। इसका सबसे प्रमुख कारण है कि हमारे समाज में औरतों को लेकर कोई बुनियादी काम नहीं किए गए। 

     हमारे देश और समाज में हजारों साल पुरानी सामंती और पूंजीवादी व्यवस्था का गठजोड़ कायम है जो औरतों को किसी प्रकार की आजादी या मानवाधिकार देना नहीं चाहता। जब तक औरतों को आधुनिक और बुनियादी अधिकार देने के लिए समाजवादी व्यवस्था कायम नहीं की जाती, तब तक औरतों को इस हजारों साल पुरानी गुलामी से और अधिकारहीनता से मुक्ति नहीं मिल सकती।

      अब यहां पर यह सबसे ज्यादा जरूरी हो गया है कि देशभक्त औरतों का समर्थन करने वाली तमाम ताकतें एकजुट हों, औरतों की मुक्ति का प्रोग्राम बनाएं जिसके तहत उन्हें अनिवार्य शिक्षा, अनिवार्य रोजगार और आर्थिक विकास में शत-प्रतिशत भागीदारी से लैस किया जाए, तभी जाकर औरतों के इस नारकीय जीवन में कुछ तब्दीली आ सकती है।

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