अग्नि आलोक

आक्रामक दलितवाद और मुस्लिमों के साथ गठजोड़ का मूल उद्देश्य राजनीतिक

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अवधेश कुमार
सात अक्टूबर को राजधानी दिल्ली के आंबेडकर भवन का दृश्य निश्चित रूप से इस देश के ज्यादातर लोगों के जेहन में लंबे समय तक कायम रहेगा। आयोजकों का दावा है कि वहां 10 हजार दलितों ने हिंदू धर्म त्याग कर बौद्ध धर्म ग्रहण किया। संविधान व्यक्ति को अपनी मर्जी से किसी भी धर्म को त्यागने या अपनाने की स्वतंत्रता देता है। इस नाते जिन लोगों ने बौद्ध धर्म स्वीकार किया, यह उनकी व्यक्तिगत आस्था का विषय है। किंतु इसके साथ कुछ अन्य पहलू भी जुड़े हैं। दो-चार लोग या परिवार धर्मांतरण करते हैं तो ज्यादा आश्चर्य नहीं होता। एक साथ इतनी संख्या में लोगों को कैसे हिंदू धर्म अस्वीकार्य लगा और बौद्ध धर्म के प्रति उनकी आस्था घनीभूत हो गई?

दिल्ली के आंबेडकर भवन में हुए कार्यक्रम में धर्मांतरण की शपथ लेते लोग

व्यक्तिगत या सामूहिक
आयोजन में दिल्ली प्रदेश के मंत्री राजेंद्र पाल गौतम गौतम की सक्रियता ने मामले को ज्यादा संदिग्ध बना दिया। हालांकि कार्यक्रम के तीसरे दिन उन्हें इस्तीफा देना पड़ा, लेकिन इस प्रसंग में कुछ बातें गौर करने लायक हैं:

आयोजकों का कहना है कि बाबा साहब आंबेडकर ने 14 अक्टूबर, 1956 को स्वयं बौद्ध धर्म स्वीकारने के बाद चंद्रपुर में सामूहिक धर्म परिवर्तन के कार्यक्रम में जो 22 शपथ दिलवाई थी, वही यहां दिलवाई गई है। यहां भी कुछ तथ्य देखें:

ऊंच-नीच, छुआछूत निश्चित रूप से समाज की बीमारी है। किंतु यह नहीं कहा जा सकता कि डॉ. आंबेडकर के समय की तरह ही जाति भेद की खाई बनी हुई है। आंबेडकर द्वारा धर्म बौद्ध धर्म अपनाने के पीछे बड़ा कारण यही था कि हिंदू धर्म को उन्होंने समाज व्यवस्था के साथ जोड़ा और माना कि इसमें रहते हुए दलित समानता का दर्जा नहीं पा सकते। वह प्रयोग सफल नहीं हुआ क्योंकि बौद्ध बनने के बाद भी समाज में वे दलित ही बने रहे। आज ऐसी स्थिति नहीं है कि इतनी संख्या में दलितों को समाज व्यवस्था से तंग आकर समानता के लिए बौद्ध धर्म अपनाने की आवश्यकता पड़े। इस नाते यह आयोजन कई प्रकार के प्रश्न और संदेह पैदा करता है:

यह हैरत का विषय है कि सामान्य विवाद और आरोपों पर पत्रकार वार्ताओं में अपना मत रखने वाली आम आदमी पार्टी इस मामले में खामोशी बरतती रही। क्यों? कोई अपनी इच्छा से किसी धर्म को अपनाए यह उसका अपना मामला है, लेकिन सामूहिक रूप से लोगों को इकट्ठा कर धर्म परिवर्तन को राजनीतिक शैली वाली आक्रामक रैली में परिणत करना भयावह है। इससे समाज और देश का अहित होगा।

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