प्रखर अरोड़ा
मैं अक्सर सोचता हूँ कि
अन्याय आखिर शुरू कबसे हुआ होगा?
क्या ये तब शुरू हुआ होगा
जब मारा होगा किसी सिंग वाले जानवर ने बगैर सिंग वाले जानवर को
या फिर ये शुरू हुआ होगा
जानवरों का शिकार और शिकारी में बंट जाने के बाद
क्या ये तब शुरू हुआ होगा
जब मनुष्यों ने खाए होंगे पशु पक्षियों के हिस्से के फल
या फिर ये शुरू हुआ होगा तब
जब खाना शुरू किया होगा उसने पशु-पक्षियों को ही
क्या ये तब शुरू हुआ होगा
जब मनुष्यों ने अपना घर बनाने के लिए किया होगा गुफाओं पर अतिक्रमण
या फिर शुरू हुआ होगा तब
जब उसने घर बनाने के लिए काटे होंगे पेड़
क्या ये तब शुरू हुआ होगा
जब मनुष्यों ने बांटे होंगे स्त्री पुरुष के काम
या फिर शुरू हुआ होगा तब
जब उसने खुद को शासक और शासित में बांटा
क्या ये तब शुरू हुआ होगा
जब जनता को अपना शासक चुनने का मौका मिला
या फिर शुरू हुआ होगा तब
जब शासक अपनी जनता चुनने लगा
क्या ये तब शुरू हुआ होगा
जब मनुष्यों ने न्याय का अधिकार शासक को दिया
या फिर शुरू हुआ होगा तब
जब शासक ने नियुक्त किया अपना एक न्यायाधीश
क्या ये तब शुरू हुआ होगा
जब बच्चे का भाग्य उसके जन्म लेने से ही तय कर दिया गया
या फिर शुरू हुआ होगा तब
जब उसने खुद को ऊंच नीच में बांटा
क्या ये तब शुरू हुआ होगा
जब न्याय की देवी जस्टीशिया ने बांधी होगी अपनी आंखों पर पट्टी
या फिर शुरू हुआ होगा तब
जब उसने ली होगी अपने हाथ में तलवार
क्या ये तब शुरू हुआ होगा
जब न्याय व्यवस्था विरोधियों के साथ अन्याय के लिए बनाई गई होगी
या फिर शुरू हुआ होगा तब
जब न्यायाधीश बिकने शुरू हुए होंगे
क्या ये तब शुरू हुआ होगा
जब मुजरिम की पैरवी करने वाले वकील आए होंगे
या फिर शुरू हुआ होगा तब
जब मुजरिम और मुलजिम के वकील आपस में मिल गए होंगे
मैं अक्सर सोचता हूँ कि
अन्याय आखिर शुरू कबसे हुआ होगा
शायद यह शुरू हुआ होगा दुनिया के बनने के ठीक बाद से ही
लेकिन वर्तमान काल है अन्याय का स्वर्णकाल।