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समय की सबसे बड़ी जरूरत है ऐसे शिक्षकों से छात्रों को बचाना

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मुनेश त्यागी 

       आजकल शिक्षकों को लेकर बड़ी-बड़ी बातें हो रही हैं, गुरुओं की बड़ी-बड़ी प्रशंसाएं की जा रही है और भारत ने तो विश्व गुरु बनने का दावा पूरी दुनिया में ही ठोक रखा है। आजादी के बाद सांस्कृतिक और शैक्षणिक स्तर पर जहां हमारा देश और समाज आज खड़ा हुआ है, उसमें भारत की शिक्षा व्यवस्था और शिक्षकों का बड़ा हाथ है। भारत के शिक्षकों ने मेहनत मशक्कत करके, तमाम तरह की परेशानियां उठाकर और इन परेशानियों पर विजय प्राप्त करते हुए, भारत के छात्रों में, छात्राओं में आधुनिक ज्ञान विज्ञान का प्रचार प्रसार किया है, उनमें विवेक, तर्कशीलता और बुद्धिशीलता विकसित की है। उन्हें अनुसंधानवादी खोज करने वाला, विश्लेषण करने वाला बनाया है और इसी वजह से आज हमारे देश में शिक्षक, बुद्धिजीवी, लेखक, कवि, वकील, जज, डॉक्टर्स, नर्सिज, इंजीनियर्स और वैज्ञानिक बहुत बड़ी संख्या में मौजूद हैं और अपने कर्तव्यों क्या निर्वाहन कर रहे हैं और इस देश को आगे ले जाने में, विकास के मार्ग पर आगे बढ़ाने में, अपनी महती भूमिका अदा कर रहे हैं। सच में नेहरू सरकार ने हमारे देश में जो मुफ्त शिक्षा व्यवस्था कायम की थी, उसका भारत को आगे बढ़ाने में बहुत बड़ा योगदान है।

    मगर शिक्षकों की महानता के साथ-साथ हमने अपने जीवन में और अपने छात्र जीवन में कुछ ऐसी घटनाएं जो शिक्षकों से जुड़ी हुई हैं, वे भी देखी हैं और जो रहकर बार-बार हमारे जीवन में, हमारी याददाश्त में आती रहती हैं और उनको देखकर, उनको याद करके, हमारा मन भी कुछ हद तक काफी परेशान हो जाता है, मगर फिर भी मन पर कंट्रोल करना पड़ता है और उन सब को भूल जाने को मन करता है। अपने जीवन की इन्हीं कुछ अप्रिय, मगर सच्ची घटनाओं से हम आपको अवगत करा रहे हैं।

     पहली घटना हम दिल्ली विश्वविद्यालय से एलएलबी की परीक्षा पास करके मेरठ कॉलेज से b.ed कर रहे थे। हमारा इरादा b.ed करके, m.ed करके, पीएचडी करके, प्रोफेसर बनने का था, जो हमारी चिर संचित ख्वाहिश थी। दिल्ली विश्वविद्यालय में हमें शिक्षकों से सवाल पूछना सिखाया गया था। सीख की उसी भावना के तहत हमने अपने b.ed के एक शिक्षक से कुछ सवाल पूछ लिए, तो वह शिक्षक हम से इतने नाराज हो गए कि उन्होंने हमें b.ed के प्रैक्टिकल में फेल कर दिया, जबकि b.ed की कक्षाओं में हमारा काम और होमवर्क दो सौ से ज्यादा छात्र छात्राओं में सर्वश्रेष्ठ था। इस घटना को लेकर b.ed के कुछ शिक्षक, जो हमें जानते थे, उन्होंने हस्तक्षेप किया और बड़ी मुश्किल से हमें 200 में से मात्र 80 नंबर दिलवाए गए, जबकि थ्योरी में हमारे 64% नंबर आए थे। इन कम नंबरों की वजह से हमें m.ed में दाखिला नहीं मिल पाया और हमारी इच्छाएं धूमिल हो गयीं।

     दूसरी घटना जो हमें बाद में पता चली, इससे पहले की बीए कक्षा की है। भूगोल हमारा सबसे पसंदीदा विषय आ रहा है और बी ए की डॉ अलका गौतम के सहयोग और प्रोत्साहन से हमारी उस रुचि और जानकारी में और इजाफा हुआ और उनकी मेहनत की बदौलत, हम अपने विभाग के सबसे सर्वोत्तम और चहेते छात्र बन गए। हम भूगोल विषय में इतने चित्र बनाते थे कि हमारी कोपियां हमारे सहपाठियों को दिखाई जाती थीं। भूगोल का प्रैक्टिकल हुआ प्रैक्टिकल के बाद, हमारे 30 में से 17 नंबर आए, जबकि थ्योरी में हमारे 35  में से 31और  32 नंबर आए थे जो आज भी विश्वविद्यालय में रिकॉर्ड है। तो हमारी शिक्षिका ने इतने कम नंबर देखकर आश्चर्य व्यक्त किया। बाद में पता चला कि हमारे 30 में से 29 नंबर थे, मगर इंटरनल परीक्षक की बेईमानी और भ्रष्टाचार की वजह से और एक बोरी अनाज की ऐवज में, हमारी कॉपी का कवर बदल दिया गया और इस प्रकार हमें 29 नंबर ने मिलकर 17 नंबर मिल पाये।

     तीसरी घटना 17 जनवरी 1982 की है। उस दिन भारत बंद का आह्वान भी किया गया था। उस दिन हमारी शादी थी, हमारी मुजफ्फरनगर में सायंकाल सात बजे घुड़चढ़ी हो रही थी। बाद में हमें पता चला कि हमारे विद्यालय के कुछ शिक्षकों ने एक साजिश के तहत हम पर झूठा और मनगढ़ंत आरोप लगा दिया कि मैं 17 जनवरी 1982 को  सायंकाल सात बजे कॉलेज का गेट तोड़ रहा था और इस वजह से हमें ब्लेक लिस्टिड कर दिया गया और कॉलेज में दाखिला लेने से वंचित कर दिया गया। 

     इसका कारण यह था कि हम वामपंथी छात्र राजनीति में सक्रिय थे, एस एफ आई के सक्रिय छात्र नेता थे। कालिज में व्याप्त अनियमितताओं का विरोध करते थे और शिक्षकों द्वारा समय से क्लास लेने की मांग किया करते थे। मेरठ कॉलेज के छात्र हमें बहुत पसंद करते थे। हमारे गाने और भाषण सुनते थे। इस सब को लेकर मेरठ कॉलेज का शिक्षा तंत्र हमसे नाराज था। वह किसी भी तरह हम से छुटकारा पा लेना चाहता था, इसलिए जिस दिन और जिस समय हमारी घुड़चढ़ी हो रही थी, उसी दिन और समय का वाकया दिखाकर, मेरठ कॉलेज का गेट तोडता दिखा दिया गया और ब्लैक लिस्टेड करके हमें मेरठ कॉलेज में दाखिला लेने से मना ही कर दी गई। इसी प्रकार भारत भर में छात्र राजनीति में भाग लेने के कारण, हजारों छात्रों को ब्लैक लिस्टेड करके उन्हें पढ़ने से वंचित किया गया और इस प्रकार उनका जीवन बर्बाद कर दिया गया।

     इसी वजह से हमें मजबूरन वकालत के पेशे में जाना पड़ा। वहां पर बार एसोसिएशन के वार्षिक चुनाव हुए और चुनाव में हमारे गुरु वकील साहब एक पक्ष में थे और हमारे संगठन एआईएलयू की नीतियों और निर्णय के कारण हम दूसरे से पक्ष में थे। बार के चुनावों का नतीजा यह हुआ कि जिस पक्ष को हम सपोर्ट कर रहे थे, वह जीत गया और हमारे वकील गुरु को हार का मुंह देखना पड़ा। अगले दिन इस जीत से,  हमारे वकील शिक्षक इतने नाराज हो गए कि उन्होंने हमें अपने चैम्बर से निकाल दिया। हमारा गुनाह यह था कि हमने अपने संगठन की नीतियों के तहत, बार के चुनाव में अपनी भागीदारी की और हमारा कैंडिडेट जीत गया। इसकी सजा हमें यह मिली कि हमारे वकील शिक्षक हमसे नाराज हो गए और उन्होंने हमें अपने कमरे से निकाल कर चौराहे पर खड़ा कर दिया।

      अगली घटना यह है कि हमारा बच्चा दसवीं कक्षा में पढ़ रहा था। वहां पर उसकी भूगोल पढ़ाने वाली शिक्षिका उसे ट्यूशन पढ़ने के लिए बाध्य कर रही थी, मगर क्योंकि वह पढ़ने में बहुत तेज तर्रार था, उसे हमने ट्यूशन पढ़ने से मना कर दिया। इस वजह से वह शिक्षिका नाराज हो गई और हमारे बच्चे को प्रताड़ित करने लगी। उसके साथ क्रूरता, निर्दयता और बर्बरता से व्यवहार करने लगी। उसे क्लास में खड़ा करके उसको अपमानित करने लगी, जिससे हमारा बच्चा तनावग्रस्त हो गया और बड़ी मुश्किल से जाकर इस स्थिति को संभाला गया।

      अगला वाका है कि आजकल के प्रधान अध्यापक अपने गेस्ट टीचर्स से और टेंपरेरी टीचर्स से गलत काम कराना चाहते हैं, पढ़ाने के अलावा, उनसे दूसरे काम कराते हैं और अगर वे टीचर्स उसका विरोध करते हैं तो प्रधान अध्यापक, अध्यापिका द्वारा इन गेस्ट टीचर्स और टेंपरेरी टीचर्स को बुरी तरह से लताडा और प्रताड़ित किया जाता है, उन्हें परेशान किया जाता है, उन्हें अपमानित किया जाता है, जिससे उन्हें छुट्टी नहीं दी जाती और उनके साथ बहुत बुरी तरह से व्यवहार किया जाता है, भेदभाव किया जाता है। इस तरह की घटनाएं अनेक शिक्षकों के साथ घट रही हैं, जो जीवन की विपरीत परिस्थितियों के कारण और अपना कोई प्रभावी संगठन न होने के कारण, कोई आवाज  नहीं उठा पातीं।

     अभी पिछले दिनों हमने देखा है कि हमारे एक टीचर ने घड़े से पानी लेने पर छुआछूत की मानसिकता के कारण, एक दलित बच्चे की हत्या कर दी। आगरा क्षेत्र में एक तथाकथित उच्च जाति के टीचर ने एक दलित बच्ची से नाराज होकर उसका हाथ तोड़ दिया। बहुत दिनों तक धक्के खाने के बाद उसके खिलाफ एफ आई आर दर्ज हो पाई। अभी पिछले दिनों उत्तर प्रदेश से एक रिपोर्ट आई कि फीस समय से अदा न करने के कारण एक गरीब और दलित बच्चे को मौत के घाट उतार दिया गया। अभी चौथी घटना मेरठ क्षेत्र की है जहां पर एक बच्चा बीमारी की वजह से स्कूल आने में देर से पहुंचा, जिस पर नाराज होकर उसके क्लास टीचर ने उसकी दोनों टांगें तोड़ दी और उसे अस्पताल में भर्ती होना पड़ा।

      अभी-अभी ताजा घटना जिला मुजफ्फरनगर उत्तर प्रदेश की है जहां पर सांप्रदायिक मानसिकता के कारण एक शिक्षिका ने एक अल्पसंख्यक बच्चों को बहुसंख्यक बच्चों से पिटवाया। मामला इतना बढ़ गया कि  अपराधी शिक्षिका के स्कूल का पंजीकरण रद्द कर दिया गया और उसके खिलाफ सांप्रदायिक व्यवहार करने के कारण एफआईआर दर्ज की गई है । साम्प्रदायिक नफ़रत की मानसिकता का यह मामला इतना गंभीर है कि शिक्षिका ने घटना के बाद कहा कि उसने जो कुछ किया, उसे पर कोई अफसोस नहीं है। उसने अपने किये पर किसी भी तरह की माफ़ी मांगने से इंकार कर दिया है।

      आजकल नये ट्रेंड के अनुसार यह भी देखा गया है कि कई सारे शिक्षक शिक्षिकाओं को सांप्रदायिक और मानुवादी सोच और मानसिकता के आधार पर ही नियुक्तियों में प्राथमिकता दी जा रही है और उनका मुख्य काम यह है कि वे अपने विषय को पीछे रखकर, मुख्य रूप से सांप्रदायिक अंधविश्वासों और धर्मांता को बढ़ाने का काम करते हैं।

       इस प्रकार हम देख रहे हैं कि आजादी के 75 साल बाद भी हमारे देश में छुआछूत का माहौल है, कई शिक्षक अपने बच्चों को दलित होने की वजह से पीटते हैं, मार देते हैं, उनके हाथ पैर तोड़ देते हैं। इस प्रकार की घटनाएं हमारे कई बच्चों के साथ आज भी होती रही है और आज भी कई सारे बच्चों को सवाल पूछने के कारण, टीचर के भ्रष्टाचार के कारण, ट्यूशन न पढ़ने के कारण, मटका छू देने के कारण, स्कूल में देरी से पहुंचने के कारण, बच्चों के साथ अन्याय किया जाता है, क्रूरता बरती जाती है, उनके साथ निर्दयता, बर्बरता और साम्प्रदायिक नफ़रत का व्यवहार किया जाता है और इस प्रकार की घटनाएं लगातार बढ़ती जा रही है। बहुत सारी घटनाएं तो अखबारों और प्रकाश में आती ही नहीं हैं।

    हम यहां पर यही कहेंगे कि ऐसे क्रूर, भ्रष्ट, बेईमान, जातिवादी, सांप्रदायिक और छुआछूत की मानसिकता से लैस शिक्षकों के खिलाफ, तुरंत और समय से अनुशासनात्मक कार्यवाही की जाए, उन्हें सस्पेंड किया जाए और छात्र छात्राओं के साथ की गई क्रूरताओं के कारण उन्हें नौकरी से निकाल देना चाहिए, ताकी हमारे निर्दोष छात्र छात्राओं को कई शिक्षकों की निर्दयता का, क्रूरता का, भ्रष्टाचार का, साम्प्रदायिक नफ़रत का और छात्र राजनीति में संवैधानिक अधिकारों का प्रयोग करने के कारण ऐसे शिक्षकों की जुल्म ज्यादतियों का शिकार न होना पड़े और इन निर्दोष छात्र-छात्राओं का जीवन और भविष्य बर्बाद होने से बचा लिया जाए।

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