,मुनेश त्यागी
वर्तमान समय में भारत की न्यायपालिका पर गंभीर खतरे मंडरा रहे हैं। आज संविधान, कानून का शासन, गणतंत्र, जनतंत्र, समाजवादी मूल्यों, धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत और न्यायपालिका की आजादी पर गंभीर खतरे पर मौजूद हैं। उसके सामने सांप्रदायिकता, जातिवाद और क्षेत्रवाद के खतरे मंडरा रहे हैं। भ्रष्टाचार की समस्या ने जैसे पूरी न्यायपालिका को डस लिया है। सरकार संसदीय संसदीय प्रणाली और रीति-रिवाजों का दुरुपयोग कर रही है, सरकार अपनी मनमानी पर उतर आई है।
आज सरकार समाज विरोधी, श्रमिक विरोधी, किसान विरोधी और जनविरोधी कानून पास कर रही है और जनता के ऊपर मुसीबतों के पहाड़ खड़ी कर रही है। भारत की न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर आज सबसे बड़े खतरे मौजूद हैं। उस पर एक नया खतरा, सांप्रदायिकता का खतरा और मंडरा रहा है। न्यायपालिका के रखवालों पर और न्यायपालिका को आगे बढ़ाने वालों पर, उसका विस्तार करने वालों पर भय खौफ और डर बादल मंडरा रहे हैं। वकीलों की एकता को जातिवाद और धर्म के नाम पर तोड़ा जा रहा है।
यहां पर सवाल उठता है कि बीजेपी द्वारा शासित सरकार में जन समर्थक नीतियां क्यों लागू नहीं की जा रही है और ये नीतियां क्यों नहीं बनाई जा रही हैं। वर्तमान समय में देखा जा रहा है की सरकार किसानों मजदूरों और जनता के हितों में नहीं बल्कि पूंजीपतियों के हितों को और उनके मुनाफा को बढ़ाने के लिए काम कर रही है आज न्यायपालिका में सांप्रदायिक तत्वों का प्रवेश किया कराया जा रहा है जो न्यायपालिका को बढ़ती संप्रदायिकता की ओर ले जा रहा है। आज न्यायपालिका में आंतरिक खतरे की मौजूद है और उसकी स्वतंत्रता सबसे ज्यादा खतरे में हैं
सरकार जनता को सस्ता और सुलभ न्याय नहीं दे रही है। वर्तमान परिस्थितियों को देखकर यह पूर्ण विश्वास के साथ कहा जा सकता है कि सस्ता और सुलभ न्याय सरकार के एजेंडे में नहीं है। सरकार जनता को सस्ता और सुलभ न्याय देना ही नहीं चाहती। वर्तमान में भारत में 4 करोड़ 58 लाख 70000 मुकदमों का अंबार लगा हुआ है। एक अनुमान के अनुसार भारत में इस समय लगभग 5.50 करोड़ मुकदमे पेंडिंग हैं जिनके शीघ्र निस्तारण की कोई उम्मीद नहीं है। हमारी ज्यूडिशरी जजों के पर्याप्त संख्या में न होने की समस्या से भी जूझ रही है। 25 उच्च न्यायालयों में लगभग 40 परसेंट पद खाली पड़े हुए हैं, निचली अदालतों में 30 से 25 परसेंट पद खाली पड़े हुए हैं, क्लर्क और स्टाफ के 80 परसेंट से ज्यादा पद खाली पड़े हुए हैं, मुकदमों के अनुपात में बिल्डिंग और भवन उपलब्ध नहीं है।
वकीलों द्वारा लगातार प्रयासों के बाद भी, लगातार शिकायतों के बावजूद भी, इन पदों को नहीं भरा जा रहा है जिससे जनता को सस्ता और सुलभ न्याय नहीं मिल रहा है और मुकदमे 30-30, 40-40 साल से पेंडिंग पड़े हैं और इंसाफ की बाट जोह रहे हैं। ऐसा लगता है जैसे जनता का जुडिशरी से विश्वास उठता जा रहा है।
ऐसे में सवाल उठता है कि क्या किया जाए? इसके लिए सबसे पहले वकीलों को एकजुट होना पड़ेगा और ऐसा संगठन बनाना पड़ेगा जो जातिवाद, सांप्रदायिकता और क्षेत्रवाद का मुकाबला करें, सब को सस्ता और सुलभ न्याय दिलाने की बात करें। समाजवाद, न्याय और धर्मनिरपेक्षता की रक्षा आज की सबसे बड़ी जरूरत है। इन परिस्थितियों में जनता को सस्ते और सुलभ न्याय के लिए एकजुट होकर लड़ना पड़ेगा, अभावग्रस्तों और पीड़ितों की मदद करनी होगी, जन कानूनी शिक्षा के शिविर आयोजित आयोजित करने होंगे और जनविरोधी तमाम कानूनों के खिलाफ एकजुट होकर लड़ना पड़ेगा।
ऐसा इसलिए है कि वकील समाज का सबसे शिक्षित और जानकार तबका है, वह कानून की खामियां जानता है।
वकीलों की यह जिम्मेदारी है कि वे सरकार की न्याय विरोधी नीतियों के बारे में जनता को जागरूक करें, उसे उनके बारे में सारी जानकारी दें और उसे बताएं कि सस्ता और सुलभ न्याय सरकार के एजेंडे में नहीं है और इसी कारण उसे उसे सस्ता और सुलभ न्याय नहीं मिल रहा है और इसके लिए पूर्ण रूप से सरकार जिम्मेदार है। अतः यह उनकी जिम्मेदारी है कि वे पूरे देश में वकीलों के संघर्ष को नेतृत्व प्रदान करें और जनता को भी संघर्ष की दिशा में ले जाए, उसे जागृत करें, संगठित करें और उसे लड़ना सिखाएं क्योंकि दुनिया का यह सबसे बड़ा अनुभव है कि इस दुनिया और देश में, किसानों मजदूरों और मेहनतकशों ने जो अधिकार प्राप्त किए हैं, वे सब लड़कर प्राप्त किए हैं, संघर्ष करके प्राप्त किए हैं। क्योंकि बिना लड़े यहां कुछ भी नहीं मिलता, बिना लड़े यहां कोई, कुछ भी देने को तैयार नहीं है। संगठन संघर्ष और लड़ाई ही हमारे अंतिम और सबसे जरूरी अस्त्र हैं।
जनता को सस्ता और सुलभ न्याय दिलाने के लिए कडा संघर्ष करना पड़ेगा। इन हालात से जनता को अवगत कराना पड़ेगा और जागरूक करना पड़ेगा। ऐसे में वकीलों को सस्ते और सुलभ न्याय की मांग को लेकर जनता के बीच में जाना पड़ेगा, सरकार के पास जाना पड़ेगा सरकार पर दबाव बनाना होगा और इसके लिए बुद्धिजीवियों, स्कूल टीचर लॉयर और छात्रों की मदद लेनी पड़ेगी और जनता को सस्ता और सुलभ कराने के लिए उपलब्ध कराने के लिए न्यायपालिका का विकेंद्रीकरण करना पड़ेगा इसके लिए विभिन्न राज्यों में हाईकोर्ट बेंच की स्थापना करनी पड़ेगी और सुप्रीम कोर्ट का विकेंद्रीकरण करके देश के चारों कोनों में सुप्रीम कोर्ट की बेंच स्थापना करनी पड़ेगी।
जनता को सस्ता और सुलभ न्याय न मिल पाने का सबसे बड़ा कारण यह भी है कि न्यायपालिका पर जीडीपी बजट का सिर्फ .02% ही खर्च किया जाता है जिस कारण उपरोक्त सारी समस्याएं बनी हुई हैं जब तक विदेशी देशों की तर्ज पर न्यायपालिका पर जीडीपी का लगभग 3 परसेंट बजट खर्च नहीं किया जाता, तब तक न्यायपालिका अपने खर्चों को बहन नहीं कर सकती, नए जज नियुक्त नहीं कर सकती, न्यायालय नहीं बना सकती और नया स्टाफ और कर्मचारी भर्ती नहीं कर सकती।
जनता को सस्ता और सुलभ न्याय दिलाने के लिए न्यायालयों की संख्या बनानी पड़ेगी, जजों की संख्या बढ़ानी पड़ेगी, पर्याप्त संख्या में कर्मचारियों की भर्ती करनी पड़ेगी, पुराने भवनों की जगह नयी अदालतें बनानी पड़ेगी और इसके लिए वकीलों को अनावश्यक हड़तालों से भी बचना पड़ेगा और यहीं पर मुकदमों के अनुपात में न्यायाधीशों की नियुक्ति करनी पड़ेगी, जब तक ऐसा नहीं किया जाता तब तक जनता को सस्ता और सुलभ न्याय नहीं मिल सकता। जनता को सस्ता और सुलभ न्याय उपलब्ध कराने के लिए वकीलों को जनता के दूसरे संगठनों,,,, किसानों मजदूरों, कर्मचारीयों, प्रगतिशील और जनवादी ताकतों के साथ मिलकर संविधान, कानून के शासन, न्यायपालिका की स्वतंत्रता, धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों और समाजवादी मूल्यों की हिफाजत करनी पड़ेगी, तभी जाकर जनता को सस्ता और सुलभ न्याय मिल पाएगा।
वकीलों की एकता और उनकी सक्रियता का परिणाम और प्रमाण इससे मिलता है कि पूरे देश में वकीलों को सबसे ज्यादा सुविधाएं केरल राज्य में प्राप्त हैं। ऑल इंडिया लॉयर्स यूनियन के अखिल भारतीय महासचिव पीवी सुरेंद्रनाथ के अनुसार केरल के वकीलों को जूनियर वकीलों को ₹5000 प्रति महीना और रिटायर हुए वकीलों को 20 लाख रुपए मिलते हैं। यह वहां के वकीलों के एकजुट अभियान और संघर्ष का फल है। अगर पूरे देश के वकील एकजुट हो जाएं तो वे भी ऐसी ही सुविधाएं प्राप्त कर सकते हैं। बस शर्त यह है कि वकीलों को एकजुट होकर संघर्ष करना पड़ेगा।
यहीं पर यह महत्वपूर्ण तथ्य भी उल्लेखनीय है कि हमारे राज्य और देश का शासन संविधान, कानून के शासन और रीति-रिवाजों से चलेगा। यह देश जातिवादी और सांप्रदायिक नीतियों से यह देश नहीं चलेगा। हमें, इस देश की जनता को संविधान और कानून के शासन द्वारा न्याय दिये जाने की जरूरत है, बुलडोजर द्वारा दिए गए न्याय रुपी अन्याय और जुल्म ज्यादतियों की इस देश में कतई जरूरत नहीं है और बुलडोजर द्वारा दिए गए न्याय रुपी अन्याय को किसी भी दशा में खत्म होना चाहिए और खत्म करना होगा।
वर्तमान समय में वकीलों का यह सबसे बड़ा काम है, की न्यायपालिका के सामने मौजूद चुनौतियों का सामना करने के लिए वे आगे आएं, जनता को जागृत करें, संगठित करें और उन्हें उनके साथ हो रहे अन्याय का कारण बताएं। उन्हें जनता के बीच जाना ही पड़ेगा, आज की यह उनकी सबसे बड़ी जिम्मेदारी है।