वर्षा भम्भाणी मिर्जा, वरिष्ठ पत्रकार
येजो नृशंस और दहला देने वाली हत्या मंगलवार को राजस्थान के उदयपुर में हुई है इसने हम सबको सोचने पर मजबूर कर दिया है कि ऐसे तो नहीं चलेगा। ना देश और न प्रदेश। कोई यूं किसी की जान नहीं ले सकता। देश इसलिए क्योंकि पहले पूरे देश में चीख-चीख कर माहौल बिगाड़ा गया और जब इसके दुखद नतीजे सामने दिखने लगे तो राजस्थान पुलिस पूरी तरह नाकारा साबित हुई। जब कन्हैया लाल अपनी सुरक्षा की गुहार लगा रहे थे, तब पुलिस ने उन्हें समझा-बुझा कर घर भेज दिया। वह अपनी दुकान भी नहीं खोल पा रहे थे। दोनों दरिंदों को शह मिली और उन्होंने वह कर दिया जिसकी आशंका को देखते हर सच्चा भारतीय पहले ही हाथ जोड़ेप्रार्थना कर रहा था। नूपुर शर्मा के एक टीवी बहस में बोले गए नफरती शब्दों के बाद सबको पता था कि देश ध्रुवीकृत हो चुका है लेकिन शांति के लिए सबके हाथ दुआओं में भी उठे हुए थे। शायद कुछ कमी रह गई तभी उदयपुर में कन्हैया लाल जो पेशे से दर्जी थे को दो नर पिशाचों ने अपना शिकार बना लिया। गुरुवार को जब ये हत्यारे अदालत में पेश हुए तो ठीक से चल भी नहीं पा रहे थे जवानों के सहारे ये भीतर पहुंचे अब दोनों को अजमेर की जेल में भेज दिया गया है। पुलिस की एक और नाकामी रही जिसमें उन्होंने दोनों के संबंध पाकिस्तान और आतंकवादी संगठनों से बताए थे जिसे एनआइए ने खारिज कर दिया। कन्हैया लाल ने दस जून को मोबाइल से फेसबुक पर भाजपा की निलंबित प्रवक्ता से संबंधित विवादित पोस्ट को शेयर किया था।
11जून को पड़ोसी नाजिम ने कन्हैयालाल के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया।12जून को पुलिस ने कन्हैया को गिरफ्तार किया।13 को जिला प्रशासन ने उन्हें पाबंद कर छोड़ दिया। उसके बाद कुछ लोग दुकान की रेकी करते हुए पाए गए। कन्हैया ने दुकान बंद रखी और पुलिस की सूचना दी और कहा कि उसकी जान को खतरा है। पुलिस ने दुकान खोलने के लिए कहा और कहा कि कोई परेशानी आए तो थाने में फोन कर लेना। दो दिन दुकान खोली थी कि 24 जून को एक महिला और पुरुष बाइक सवार ने उन्हें धमकाते हुए कहा कि जो गंदा काम किया है उसकी सजा जरूर मिलेगी। 28 जून को पुलिस के आश्वासन के बाद कन्हैया ने दुकान खोली और दोपहर पौने तीन बजे झब्बा पायजामा सी देने के बहाने उनकी जघन्य हत्या कर दी। इस पूरे घटनाक्रम में चिंता में डालने वाली बात यह है कि यह हत्या तो है ही साथ ही यह खुद ही प्राणदंड निर्धारित कर देने का मामला भी है। क्या यह अपवाद है और जो नहीं तो यह काफी गंभीर है। दूसरे कन्हैया की पोस्ट पर ऐतराज करनेवाले उनके पड़ोसी भी हैं जिन्हें बर्दाश्त ही नहीं हुआ कि कन्हैया इस तरह सोच सकता है। बहरहाल घटना के बाद डीजीपी, एसपी समेत कई अधिकारियों को सरकार ने हटा दिया है। राज्य में इंटरनेट तीन दिन से ठप है। प्रदेश ठहरा हुआ है। जब आप जानते हैं कि देश बारूद के ढेर पर बैठा है तो आपने क्या किया? आपका पुलिस प्रशासन क्यों असफल हो रहा था? तीन माह में करौली, जोधपुर, भीलवाड़ा में क्योंकर तनाव की घटनाएं हुईं? सचिन पायलट से अपने हिसाबों का लेन देन बाद में कर लीजिएगा अभी वीरों की इस धरा का सौहार्ददाव पर है जिसके मुखिया आप हैं। हालात से सरकार को जुटकर निपटना था।
खुफिया तंत्र क्यों फेल हो रहा है? उदयपुर में कन्हैया लाल की जघन्य हत्या में जो दो दरिंदे सामने आए हैं उनमें से एक वेल्डर था और दूसरे की छोटी सी किराने की दुकान थी। अब ये बंद हो चुकी है, परिवार ताला लगा कर जा चुका है। दोनों तीस की उम्र के भी नहीं हैं। दोनों के दो दो बच्चे हैं। घटना के एक दिन बाद गौस के पिता रफीक जो एक फैक्ट्री में काम किया करते थे यह कहते हुए फफक पड़ेकि “ये इसने क्या किया, मेरी बुजुर्गी का भी खयाल नहीं किया।” अंग्रेजी अखबार के रिपोर्टर को दरिंदों के पड़ोसी ने यह भी कहा कि कौन मां बाप अपने बच्चों को अपराधी बनाना चाहते हैं, ये तो बाहरी असर होता है। क्या वाकई जहालत और अज्ञानता की इस इंतहा पर विचारने का भी यह सही समय है? आखिर क्यों कोई इतना सहिष्णु भी नहीं है कि कार्टून, टीका-टिप्पणी किताब या आलोचना को बर्दाश्त कर सकें? क्यों सलमान रुश्दी की लिखी किताब सैटनिक वर्सेज प्रतबंधित करनी पड़ती है? क्यों तसलीमा नसरीन की लिखी लज्जा भी बैन हो जाती है? क्यों फ्रांस में कार्टून बनने पर पत्रिका शार्ली हैपदो के स्टाफ की हत्या कर दी जाती है। हम आज के दौर के इंसान हैं और क्यों नहीं चीजों को आज की कसौटी पर परखते हैं? गुणिजनों ने परिवर्तन को ही तो स्थाई बताया है फिर क्यों इंसान से एक लीक पर चलने की अपेक्षा? भारतेंदु हरिशचंद्र ने लिखा भी है। लीक-लीक गाड़ी चले लीकहि चले कपूत। लीक छोड़ तीनों चले शायर सिंह और सपूत। यह सब भूलकर जनसमाज आज एक ही लीक पर धकेल दिया गया है। एक लीक पर चलने वाले तेरा मेरा की बहस दिन पर चलाए रखते हैं। इस तू-तू, मैं-मैं पर एक शायर ने क्या खूब कहा है-तुम ही तुम हो तो क्या तुम हो हम ही हम हैं तो क्या हम हैं। नूपुर शर्मा ने टीवी बहस में हजरत पैगंबर के लिए नफरती भाषा के इस्तेमाल के बाद अधिकांश की अपेक्षा थी कि भावनाएं आहत करने के जुर्ममें नूपुर को गिरफ्तार किया जाना चाहिए लेकिन ऐसा नहीं हुआ बल्कि मुहम्मद जुबैर को गिरफ्तार कर लिया।
आखिर क्यों कोई इतना सहिष्णु भी नहीं है कि कार्टून , टीका- टिप्पणी किताब या आलोचना को बर्दाश्त कर सके ? क्यों सलमान रुश्दी की लिखी किताब सैटनिक वर्सेज प्रतबंधित करनी पड़ती है? क्यों तसलीमा नसरीन की लिखी लज्जा भी बैन हो जाती है?
जुबैर जो ऑल्ट न्यूज के माध्यम से लगातार तथ्यों को उजागर कर रहे जो झूठ के आधार पर रचे जाते हैं। वे उस तरह की झूठी खबरों का लगातार भंडा फोड़ रहे थे जो उस नैरेटिव को स्थापित कर रही थी जो सच नहीं था लेकिन लोग वैसा ही चाहते थे। इस तरह की स्थापना से सरकार को आसानी होती है अपनी लोकप्रियता को बनाने और फिर उसे बनाए रखने में। जुबैर के ऐसे ही काम सरकार को नागवार थे और उन्हें 2018 के एक पुराने ट्वीट के लिए गिरफ्तार कर लिया गया। उस ट्वीट में ऋषिकेश मुखर्जी की फिल्म किसी से ना कहना का दृश्य था और होटल हनीमून पैलेस की जगह हनुमान पैलेस लिख दिया गया था। दिल्ली पुलिस को लगा कि चार साल बाद लोगों की भावनाएं आहत हो रही हैं। मोहम्मद जुबैर उस मामले में सोमवार को पूछताछ के लिए थाने बुलाए गए थे जिसमें दिल्ली हाईकोर्ट ने उन्हें पहले ही गिरफ्तारी से सुरक्षा दे रखी थी। अब सवाल यह उठता है कि जब इस मामले में जुबैर को गिरफ्तार किया जा सकता है तो हजरत पैगंबर के मामले में टिप्पणी करने पर नूपुर शर्मा को क्यों नहीं और जो नूपुर को नहीं तो जुबैर को भी नहीं। कार्रवाई के पैमाने अलग-अलग क्यों हैं? तर्क यह भी है कि जुबैर के इस ट्वीट को सैकड़ों लोगों ने रीट्वीट किया तो क्या उनका कोई दोष नहीं? देश हो या राज्य जिम्मेदारों की भूमिका बहुत बड़ी है। कानून सब के लिए एक जैसा होना चाहिए। उदयपुर के हत्यारों को बिलकुल बख्शा नहीं जाना चाहिए, लेकिन वोट की राजनीति में सांप्रदायिकता का उबाल खदबदाता रहे ऐसा भी नहीं होना चाहिए। इस आग में लकड़ियां डालनेवालों को पकड़ना होगा तभी उदयपुर जैसे दरिंदगी को भी काबू किया जा सकेगा
प्रजातंत्र से साभार