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GST आंकड़ों को जारी करने का बदलाव परेशान करने वाला

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जून 2024 में वस्तु एवं सेवा कर (GST) का कुल संग्रह 1.74 लाख करोड़ रुपये रहा जो पिछले वर्ष की समान अवधि की तुलना में 7.7 फीसदी अधिक है। परंतु इस जानकारी को सामान्य तरीके से यानी ब्योरों के साथ प्रेस विज्ञप्ति की मदद से नहीं जारी किया गया। इस बार कर संग्रह के आंकड़ों को संवाददाताओं को अनौपचारिक तौर पर बताया गया। खबर यह भी है कि आगे से इसे ऐसे ही जारी किया जाएगा।

यह बदलाव परेशान करने वाला है और इससे बचा जाना चाहिए। ऐसे समय में जबकि पारदर्शिता और सूचनाओं का समय पर जारी होना अहम हो चुका है, खासकर यह देखते हुए कि भारत अधिक से अधिक विदेशी निवेश जुटाना चाहता है, तो एक नियमित बन चुकी प्रक्रिया को खारिज करना गलत साबित हो सकता है। उल्लेखनीय है कि यह ऐसे समय पर हुआ है जब महज चंद रोज पहले ही भारत सरकार के बॉन्ड को पहली बार एक वैश्विक सूचकांक में शामिल किया गया है।

यह सही है कि जीएसटी व्यवस्था में अभी भी कुछ सुधार की आवश्यकता है ताकि वह वांछित कामयाबी हासिल कर सके लेकिन वह कई अंशधारकों के लिए एक उच्च तीव्रता वाले संकेतक का काम करती है। वित्तीय बाजार विश्लेषकों और निवेशकों समेत कई लोग इन पर नियमित नजर रखते हैं।

चूंकि सकल घरेलू उत्पाद (GDP) जैसे आधिकारिक आंकड़े एक अंतराल के बाद जारी होते हैं, ऐसे में जीएसटी संग्रह इस बात को लेकर व्यापक समझ देने में मदद करता है कि अर्थव्यवस्था का प्रदर्शन कैसा है।

दिलचस्प बात है कि प्रेस विज्ञप्ति बंद करने की एक वजह यह बताई जा रही है कि इससे ऐसा माहौल बनता है कि मानो सरकार बहुत अधिक कर संग्रह कर रही है। जाहिर है मासिक रूप से आंकड़े जारी करना बंद करने की आधिकारिक वजह अब तक सामने नहीं है लेकिन कर संग्रह का स्तर इसकी वजह नहीं हो सकता है। यह कई स्तरों पर गलत है।

पहली बात, सकल जीएसटी संग्रह अकेले केंद्र सरकार का नहीं होता है। इसमें राज्यों की भी हिस्सेदारी होती है। इसमें क्षतिपूर्ति उपकर का संग्रह भी शामिल होता है जिसका इस्तेमाल उस कर्ज को चुकाने में किया जाता है जिसे महामारी के दौरान राज्यों की राजस्व कमी को दूर करने के लिए लिया गया था।

दूसरा, सरकार का सामान्य बजट घाटा भी ऊंचे स्तर पर बना हुआ है और चालू वर्ष में यह जीडीपी के 7.5 से 8 प्रतिशत के बीच रह सकता है। इसका अर्थ यह हुआ कि सरकार अपने व्यय की पूर्ति के लिए पर्याप्त राशि नहीं जुटा पा रही है। ऐसे में या तो कर संग्रह बढ़ाना होगा या व्यय में कमी करनी होगी।

आखिरी और सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि जीएसटी व्यवस्था राजस्व संग्रह के मामले में पिछड़ गई है। गत वित्त वर्ष में रीफंड के बाद जीएसटी संग्रह जीडीपी के 6.1 फीसदी के बराबर था जबकि 2016-17 में जीएसटी में शामिल करों से जीडीपी के करीब 6.3 फीसदी के बराबर कर हासिल हुआ था। यह बात भी ध्यान देने लायक है कि सकल संग्रह में क्षतिपूर्ति उपकर शामिल है जिसे पांच साल के बाद समाप्त हो जाना था।

सरकार जीएसटी के पहले की तुलना में कम कर संग्रह कर रही है। इसके अलावा अर्थशास्त्री अरविंद पानगड़िया तथा अन्य लोगों ने दिखाया है कि केंद्र सरकार को जीएसटी लागू होने के बाद राजस्व के मोर्चे पर काफी कमी का सामना करना पड़ा है। ऐसे में इस समय आवश्यकता है जीएसटी व्यवस्था में अहम सुधारों की। उसकी दरों और स्लैब में सुधार करने से कर संग्रह बेहतर बनाने में मदद मिलेगी।

सरकार का तात्कालिक ध्यान इस बात पर केंद्रित होना चाहिए कि वह राज्यों के साथ मिलकर काम करे और जीएसटी व्यवस्था में सुधार करे। अगर आम जनता में वास्तव में जीएसटी को लेकर कोई असहजता है तो सरकार को संवाद में सुधार करने पर काम करना चाहिए। आधिकारिक प्रेस विज्ञप्ति को बंद करने से तो संवादहीनता ही बढ़ेगी।

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