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शहीद-ए-आजम भगतसिंह के विचारों से डरने लगी है सांप्रदायिक सरकार

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,मुनेश त्यागी   

      आज पता चला है कि कर्नाटक सरकार ने शहीदे आजम भगत सिंह के चैप्टर को दसवीं कक्षा के पाठ्यक्रम से बाहर कर दिया है। पहले हमारी सरकारें विदेशी क्रांतिकारियों मार्क्स, एंगेल्स, लेनिन, माओ, स्टालिन,  फिदेल कास्त्रो और चे ग्वेरा के विचारों से डरती थीं। उसके बाद में कबीर, तुलसी, निराला,रहीम, प्रेमचंद और फैज अहमद फैज से भी डरने लगीं। उनको भी छात्रों को पढ़ने से वंचित कर दिया गया।


      अब खबर मिली है कि कर्नाटक सरकार ने शहीदे आजम भगत सिंह को भी दसवीं कक्षा के पाठ्यक्रम से निकाल दिया है और उनके स्थान पर r.s.s. की स्थापना करने वाले हेडगेवार के साम्प्रदायिक विचारों के चैप्टर को स्थान दिया गया है। आखिर क्या कारण है कि हमारी सरकार हमारे देश के, दुनिया के प्रगतिशील, धर्मनिरपेक्ष और क्रांतिकारी विचारों से डरती थी डरती हैं?  पहले वे क्रांतिकारी लेखकों के विचारों से डरती थीं, फिर कवियों से डरने लगी और अब हमारे शहीदों से और उनके विचारों से डरने लगी हैं।
     आखिर शहीदेआजम भगत सिंह से डरने का क्या कारण है? आइए देखें कि कर्नाटक की सरकार भगत सिंह से क्यों डर रही है? हमारी आजादी के इतिहास में भगत सिंह और उनके साथी, सबसे पहले स्वतंत्रता सेनानी थे जिन्होंने आजादी के आंदोलन में सबसे पहले “इंकलाब जिंदाबाद” और “साम्राज्यवाद मुर्दाबाद” का नारा बुलंद किया, जिन्होंने लेनिन जिंदाबाद का नारा अदालत में लगाया, जिन्होंने रूसी क्रांति का अभिवादन किया, जिन्होंने बोल्शेविक क्रांति की प्रशंसा की।
      आखिर भगत सिंह से और  उनके विचारों से ही क्यों खौफ ज्यादा है और डर रही है, कर्नाटक सरकार? आईये इस बारे में  महान क्रांतिकारी भगतसिंह के विचार को जानने की कोशिश करते हैं। भगत सिंह का कहना था कि हमारा उद्देश्य एक ऐसी क्रांति से है जो मनुष्य द्वारा मनुष्य का शोषण का अंत कर देगी। वे कहते हैं क्रांति के लिए खूनी लड़ाइयां अनिवार्य नहीं है, वह बम और पिस्तौल का संप्रदाय नहीं है, क्रांति से हमारा अभिप्राय है अन्याय पर टिक्की मौजूदा व्यवस्था में आमूलचूल परिवर्तन।
      वे कहते हैं कि देश में आमूलचूल परिवर्तन चाहने वाले क्रांतिकारियों का कर्तव्य है कि वे साम्यवादी सिद्धांतों पर आधारित समाज का और समाजवादी व्यवस्था का पुनर्निर्माण करें, क्रांति से हमारा मतलब है एक ऐसी समाज व्यवस्था की स्थापना से है जिसमें सर्वहारा वर्ग का आधिपत्य सर्वमान्य होगा। वे आगे कहते हैं क्रांति केवल सतत कार्य करने से, लगातार कोशिशों से, कष्ट सहन करने से और बलिदानों से ही उत्पन्न की जाएगी। क्रांति की तलवार विचारों की धार से ही तेज होती है।
    क्रांति का साम्राज्य फैलाने के लिए नौजवानों को क्रांति का संदेश देश के कोने कोने में, कारखानों में, गंदी बस्तियों और गांव-गांव में फैलाना है और करोड़ों लोगों में क्रांति की अलख जगानी है। क्रांति प्रकृति से स्नेह करती है, जिसके बिना कोई प्रगति नहीं हो सकती। क्रांति ईश्वर विरोधी तो हो सकती है लेकिन मनुष्य विरोधी नहीं। क्रांति एक नियम है, एक आदेश है, एक सत्य है, इसके बिना व्यवस्था कानूनपरस्ती और प्यार और शांति स्थापित नहीं की जा सकती।
    वे आगे कहते हैं कि क्रांति कुछ लोगों के विशेषाधिकार खत्म कर देगी, क्रांति से ही देश को सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक आजादी मिलेगी। वे कहते हैं कि क्रांति का अर्थ है मौजूदा सामाजिक ढांचे में परिवर्तन करके समाजवाद स्थापित करना। हम सरकारी मशीनरी को अपने हाथ में लेना चाहते हैं और नए ढंग की सामाजिक रचना यानी मार्क्सवादी ढंग से समाज की रचना चाहते हैं। क्रांति एक आदमी के बस की बात नहीं है, यह सामाजिक और आर्थिक परिस्थितियों से ही पैदा होती है और जनता को उसके लिए तैयार करना होता है।
     पार्टी कार्यकर्ताओं को तैयार करने के लिए अध्ययन केंद्र खोलने होंगे और पुस्तकें छापनी होंगी, क्रांति को समझाने के लिए सीधा-साधा लेखन करने की जरूरत है और क्रांति के लिए किसानों और मजदूरों का समर्थन हासिल करने के लिए प्रचार प्रसार जरूरी है। वे एक बहुत ही अहम बात कहते हैं और जिस पर लोग जल्दी से विश्वास भी नहीं करेंगे। वे कहते हैं कि “अगर मैं जिंदा रहा तो मैं एक पार्टी बनाऊंगा उसका नाम कम्युनिस्ट पार्टी रखूंगा।”
     अपने विचारों को स्पष्ट करते हुए वे कहते हैं की समाजवादी सिद्धांतों के बारे में जनता को सचेत बनाने के लिए सादा और स्पष्ट लेखन बेहद जरूरी है। क्रांति यानी इंकलाब यानी पूर्ण आजादी का नाम है, जिसमें लोग आपस में मिलजुल कर रहेंगे और दिमागी गुलामी से भी आजाद हो जाएंगे। हमारे शहीद चाहते थे कि हम एक ऐसा समाज बनाना चाहते हैं जहां न भूख हो,न गरीबी हो, न नग्नता हो, जहां न गरीबी हो, जहां न अमीरी हो, जहां न जुल्म हों, जहां ने अन्याय हो, जहां बस प्रेम बस्ता हो, एकता हो, इंसाफ हो, आजादी हो और सुंदरता हो, व्यक्ति का व्यक्ति द्वारा, राष्ट्र का राष्ट्र के द्वारा, किसी भी प्रकार का शोषण पूर्ण रूप से खत्म हो।
     हमारे शहीदों का उद्देश्य था संसार में पूर्ण स्वतंत्रता हो, कोई किसी पर शासन ने करे,  सभी जगह ने लोगों के पंचायती राज हो और प्राकृतिक संसाधनों पर सबका एक सा अधिकार हो और सबके विकास के लिए उनका प्रयोग हो। भगत सिंह एक बहुत बड़े लेखक थे, एक बहुत बड़े विचारक थे, भगत सिंह ने देश में क्रांति का आह्वान किया था और अंग्रेजों द्वारा लुटेरी साम्राज्यवादी व्यवस्था को खत्म करके समाजवादी व्यवस्था कायम करने का आह्वान किया था।
    वे और उनके साथी उसी के लिए लड़े, मरे और फांसी के फंदे पर चढ़ गए। भगत सिंह ने अपने जीवन काल में किसी भी क्रांतिकारी से ज्यादा बल्कि सबसे ज्यादा 97 लेख लिखे हैं। भगत सिंह के इन्हीं लेखों और विचारों के कारण हमारे देश में सांप्रदायिक सरकारें भगत सिंह के विचारों से डर गई हैं। उनकी क्रांति की स्थापना से डर गई हैं, उनकी क्रांतिकारी कम्युनिस्ट पार्टी बनाने की स्थापना से डर गए हैं, भगत सिंह ने अपने लेखों में सभी प्रकार की सांप्रदायिकता, धर्मांधता और कट्टरता का विरोध किया था और इसके लिए उपाय बताया था कि मजदूरों की ट्रेड यूनियनें ही और वर्ग आधारित किसान और मजदूरों के संगठन ही इस सांप्रदायिकता का खात्मा कर सकते हैं। भगत सिंह और उनके साथियों ने ही सबसे पहले अपने व्यवहार में, अपने बर्ताव में और अपनी पार्टी में और अपने विचारों में धर्मनिरपेक्ष मूल्यों की नीव डाली थी। वे धर्मनिरपेक्षता के प्रबल समर्थक थे। भगत सिंह के इन्हीं विचारों से वर्तमान कर्नाटक की सरकार डर गई है, भयभीत हो गई है, और खौफजदा हो गई है।
     इसलिए भगत सिंह के हौंसले, जज्बे और विचारों से डरकर, सरकार भगत सिंह को पाठ्यक्रम से निकाल रही हैं ताकि छात्र छात्राएं भगत सिंह और हमारे शहीदों के बारे में, उनके विचारों के बारे में न जान सकें, उनके विचारों को पढ़कर क्रांतिकारी समाज क्रांति की स्थापना और समाजवादी समाज की स्थापना के अभियान में न जुट जाएं, इसलिए भगत सिंह को और उनके विचारों को छात्र-छात्राओं की नजरों से ओझल करने का, छिपाने और दूर रखने का, जनविरोधी, समाजविरोधी, क्रांति विरोधी और समाजवाद विरोधी, कार्य किया जा रहा है, जो किसी भी दशा में मान्य नहीं हो सकता।
      हम इसका तहे दिल से विरोध करते हैं और कर्नाटक सरकार से अपील करते हैं कि वह भगत सिंह को पाठ्यक्रम में पुनः स्थापित करे, शामिल करे। वर्तमान समाज में शांति न्याय समता समानता और बराबरी का समाज स्थापित करने के लिए भगत सिंह के विचारों का पढना और इनको छात्र छात्र छात्राओं द्वारा जानना बहुत जरूरी है।

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