इस बार चुनाव परिणाम चाहे जो आएं लेकिन एक बात सच है कि झूठे मुद्दे को देश ने इंकार कर दिया है। यह पहला चुनाव है जिसमे राम मंदिर का मुद्दा देश के लोगों ने स्वीकार नहीं किया। जातीय और धार्मिक ध्रुवीकरण को जनता ने स्वीकार नहीं किया है। ऐसे में परिणाम के तौर पर अब बीजेपी को लगने लगा है कि लोगों को बहुत दिनों तक मूर्ख नहीं बनाया जा सकता।इंडिया गठबंधन ने अग्निवीर योजना को मजबूती से आगे बढ़ाने का काम किया है। जाहिर है कि देश के युवाओं ने इसे सराहा भी और इस बात की उम्मीद की जा सकती है कि इसका लाभ इंडिया गठबंधन को मिलने जा रहा है। इसके साथ ही बेरोजगारी की बात पहली बार चुनावी प्रचार में एक प्रमुख मुद्दा बना। इस मुद्दे को कांग्रेस समेत सभी दलों ने आगे बढ़ाया। किसानों के मुद्दे और गरीबों को आगे बढ़ाने की बात, महिलाओं को सबल करने की बात ने इंडिया गठबंधन को काफी मजबूती प्रदान की।
अखिलेश अखिल
लोकसभा चुनाव का अंतिम चरण एक जून को ख़त्म हो जाएगा। चुनाव के ख़त्म होने के बाद राजनीतिक दलों में मंथन का दौर चलेगा। एक जून से लेकर चार जून के बीच देश के दो बड़े गठबंधन एनडीए और इंडिया के भीतर चुनावी तस्वीर को लेकर आकलन भी होगा। कहां जीत हो रही है और कहां उसकी हार हो रही है इसको लेकर गठबंधन के नेता माथापच्ची करेंगे और फिर आगे की रणनीति का ब्लू प्रिंट भी तैयार करेंगे। इंडिया गठबंधन ने तो एक जून को बैठक की घोषणा भी कर दी है। इस बैठक में क्या बात होगी और आगे की क्या रणनीति बनेगी इसको लेकर राजनीतिक हलकों में चर्चा भी होने लगी है।
हालांकि कांग्रेस की तरफ से अभी कोई नेता कुछ भी कहने को तैयार नहीं है। बस इतनी सी बातें सामने आ रही है कि एक जून को इंडिया गठबंधन के सभी नेता दिल्ली में मुलाकात करेंगे और फिर दिन भर की बैठकी होगी। लेकिन सूत्रों से जो जानकारी मिल रही है उसके मुताबिक़ कांग्रेस समेत इंडिया गठबंधन के सभी बड़े नेता बैठक में अपने-अपने राज्यों की तस्वीर भी पेश करेंगे और कितनी सीटें इंडिया गठबंधन को मिल सकती है इस पर भी चर्चा हो सकती है।
सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक इंडिया गठबंधन की यह बैठक खासकर एक ख़ास रणनीति के तहत बुलाई गई है। जानकारी के मुताबिक़ इस बैठक में इस बात पर गंभीरता से भी चर्चा की जाएगी कि चार जून को जिस दिन मतगणना होनी है उस दिन सभी पार्टियां अलर्ट रहेंगी और अपने मतगणना के एजेंट को सावधान भी रखेंगे ताकि मतगणना में किसी तरह की धांधली न हो पाए। कांग्रेस के एक नेता ने कहा है कि एक जून की बैठक में सबसे ज्यादा चर्चा मतगणना को लेकर की जानी है क्योंकि कांग्रेस को इस बात का डर है कि बीजेपी और सरकारी संस्थाएं वोट गिनती के समय कुछ भी खेल कर सकती हैं और ऐसा हुआ तो आगे का खेल बिगड़ सकता है। ऐसे में मतगणना को लेकर ज्यादा सतर्क रहने की जरूरत है और इसी जरूरत को देखते हुए यह बैठक बुलाई गई है।
उधर जानकारी मिल रही है कि बीजेपी के भीतर भी मंथन शुरू हो गया है। हर राज्यों को लेकर अलग-अलग टीम तैयार की गई है जो चुनाव ख़त्म होने के बाद पार्टी नेताओं के साथ बैठक करेगी और फिर सभी रिपोर्ट को पार्टी आला कमान तक पहुंचाएगी। बीजेपी को अभी भी लग रहा है कि तीसरी बार भी उसकी जीत हो रही है लेकिन कई राज्यों से मिलने वाले फीड बैक से पार्टी के भीतर हलचल भी तेज है।
बीजेपी की सबसे बड़ी परेशानी तो यही है कि इस बार उसका कोई झूठा नैरेटिव काम नहीं आया। पिछले दो चुनाव में बीजेपी ने ही एजेंडा सेट किया था और झूठे नैरेटिव के सहारे चुनाव जीतने में सफलता भी पाई थी। हिन्दू, हिंदुत्व और राम मंदिर के नाम पर अलख जगाकर बीजेपी ने पिछले दो चुनाव को अपने फेवर में कर लिया था और इसके हीरो के रूप में उभरे थे प्रधानमंत्री मोदी। हालांकि इस बार भी पीएम मोदी समेत बीजेपी का पूरा कुनबे ने झूठे नैरेटिव को तैयार करने में कोई कसर नहीं छोड़ा लेकिन सच तो यही है कि इस बार इंडिया गठबंधन की एकता और वादों और मुद्दों की राजनीति के सामने बीजेपी का कोई खेल सफल नहीं हो पाया।
बीजेपी और खुद पीएम मोदी पहले चरण के चुनाव से लेकर छठे चरण के चुनाव तक हिन्दू -मुसलमान और राम मंदिर की राजनीति के साथ ही पाकिस्तान की राजनीति करने से बाज नहीं आये लेकिन इस बार जनता बीजेपी के झांसे में नहीं आई। इस बार जनता ने मुद्दों को तरजीह दिया और इंडिया गठबंधन के वादों और खासकर वाम दलों से लेकर कांग्रेस, सपा और राजद के साथ ही दक्षिण भारत के स्थानीय समस्याओं से जुड़े मुद्दे को स्वीकार किया और बदलाव के लिए मैदान में उतर गए। बीजेपी के लिए यही बड़ा झटका है। बीजेपी के इस झटके को गोदी मीडिया भी संभाल नहीं पाई है।
दरअसल इस बार के चुनाव में मुद्दों की राजनीति काफी सफल रही। कांग्रेस ने पहले ही तय कर लिया था कि चाहे जो कुछ भी हो जाए मुद्दों से न भटकना है और ना ही बीजेपी के जाल में फंसना है। इसके साथ ही कांग्रेस ने सपा, राजद, झामुमो, वाम दलों के साथ ही दक्षिण भारत के अपने पार्टनरों को समझा दिया था कि बीजेपी इस चुनाव में मुद्दों से भटकाने की बहुत कोशिश कर सकती है। झूठे नैरेटिव के जरिए चुनाव को प्रभावित भी कर सकती है, लेकिन हमें मुद्दों की राजनीति से भटकना नहीं है। और छठे चरण के चुनाव तक इंडिया गठबंधन ने मुद्दों की राजनीति की। सवाल इंडिया गठबंधन के नेता उठाते रहे और बेबस होकर बीजेपी के नेताओं को सवालों का जवाब देना पड़ता था। यह इंडिया गठबंधन की बड़ी जीत मानी जा सकती है।
सच तो यही है कि अब तक के चुनाव में बीजेपी एजेंडा सेट करती रही है। नैरेटिव के जरिये देश और लोगों के मानस को बदलती रही है। इस बार भी बीजेपी ने बहुत कोशिश की लेकिन सफलता नहीं मिली। इंडिया गठबंधन अपनी राह पकड़े हुए आगे बढ़ता रहा और अब जो परिणाम आने वाला है वह भी सबके सामने होगा। जानकार भी मान रहे हैं कि बीजेपी अभी तक अपने नैरेटिव पर ही चुनाव में सफल होती रही है। नेशनल नैरेटिव खड़ा करके वह आगे बढ़ती रही है। राम मंदिर से लेकर हिन्दू, मुसलमान और पाकिस्तान के सहारे बीजेपी चुनाव जीतती रही है लेकिन पहली बार इस चुनाव में बीजेपी का झूठा नैरेटिव कामयाब नहीं हो पाया।
दरअसल इस बार हर राज्य की अपनी समस्या के मुताबिक इंडिया गठबंधन के दलों ने मुद्दों को तैयार किया था। यूपी के लिए अखिलेश यादव ने स्थानीय मुद्दों के साथ ही नेशनल इश्यू को आगे बढ़ाने का काम किया तो बिहार में तेजस्वी यादव ने स्थानीय मुद्दों के साथ ही नेशनल मुद्दों को आगे बढ़ाने का काम किया है। यही काम वाम दलों ने भी किया है। दक्षिण की पार्टियां भी स्थानीय मुद्दों के साथ ही इंडिया गठबंधन के बड़े मुद्दों को ही जनता के सामने रखने का काम किया है। यही वजह है कि बीजेपी का खेल सफल नहीं हो पाया।
इंडिया गठबंधन ने अग्निवीर योजना को मजबूती से आगे बढ़ाने का काम किया है। जाहिर है कि देश के युवाओं ने इसे सराहा भी और इस बात की उम्मीद की जा सकती है कि इसका लाभ इंडिया गठबंधन को मिलने जा रहा है। इसके साथ ही बेरोजगारी की बात पहली बार चुनावी प्रचार में एक प्रमुख मुद्दा बना। इस मुद्दे को कांग्रेस समेत सभी दलों ने आगे बढ़ाया। किसानों के मुद्दे और गरीबों को आगे बढ़ाने की बात, महिलाओं को सबल करने की बात ने इंडिया गठबंधन को काफी मजबूती प्रदान की।
ऐसे में इस बार चुनाव परिणाम चाहे जो आएं लेकिन एक बात सच है कि झूठे मुद्दे को देश ने इंकार कर दिया है। यह पहला चुनाव है जिसमे राम मंदिर का मुद्दा देश के लोगों ने स्वीकार नहीं किया। जातीय और धार्मिक ध्रुवीकरण को जनता ने स्वीकार नहीं किया है। ऐसे में परिणाम के तौर पर अब बीजेपी को लगने लगा है कि लोगों को बहुत दिनों तक मूर्ख नहीं बनाया जा सकता।