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विडम्बना है आज सालों साल बाद भी किसान गरीब है

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राजकुमार बरुआ, भोपाल 

किसान शब्द सुनते ही मन श्रद्धा से झुक जाता है। बात हो रही है अन्नदाता की। हां अन्नदाता की बचपन से आज तक हजारों कहानियां सुनी है।एक गरीब किसान था, बचपन की कहानियों वाला किसान गरीब था और आज सालों साल बाद भी किसान गरीबी है?
किसानों के लिए यह कितनी बड़ी बिडम्बना है ,जिसके उगाये अनाज, फल,सब्जी मसाले आदि खाकर लोग तृप्त ही नही होते बल्कि कृषि व्यवसाय करके लाखों-लाख रूपया कमाते है और वही अन्नदाता गरीब ही रह जाता है? पहले भी गरीब थे ,वर्तमान में भी गरीब है ,किसानों के प्रति आमलोग तथा सरकार की नीति के कारण तथा प्रकृति के आए दिन होते प्रहारो के कारण क्या भविष्य में भी गरीब ही रहेगे ?
किसानों के प्रति मन जितना श्रद्धा से झुकता है उतना ही किसानों स्थिति देखकर मन दुखी हो जाता है।
जो गरीब किसान गांव में किसान हैं , वह शहर में आकर मजदूर बन जाते है और कुछ हद तक मजबूर भी हो जाते है। किसान बड़े ही स्वाभिमानी होते है। वह प्राकृतिक के पुजारी होते है। वह जितना प्रकृति से जुड़े होते है, वह अद्भुत है ।
किसान घड़ी नहीं पहनते मौसम वैज्ञानिक नहीं है, उसके बाद भी वह बता देते है ,कब बारिश होगी ,इस साल धूप ज्यादा पड़ेगी ।
सुर्य की स्थिति देखकर समय भी बता देते है ।उनका प्राकृतिक अनुभव उसको जीवन जीने की अद्भुत कला सिखा देती है।
किसानों के देवताओं की बात करें तो किसान बलराम या हलधर भगवान की पूजा और साथ में प्राकृतिक की पूजा करते हैं। किसान अपने आप को प्राकृतिक का ऋणी मानते है ।साल में कई बार
प्राकृतिक की पूजा करते हुए उसके प्रति अपनी श्रद्धा को दर्शाते है। चाहे वह कोई त्यौहार हो या नई फसल का आना, या बुवाई का समय हर मौके पर कोई न कोई त्यौहार जरूर मनाते है।
बारिश तो उसके लिए अमृत है। पुराने समय में किसान बहुत ज्यादा प्राकृतिक खेती पर निर्भर थे। गौ माता को पूजते हुए बहुत ज्यादा उपयोग गौमाता का खेती के लिए करते थे। दिवाली के समय गोवर्धन पूजा के अवसर पर हम देखते भी हैं कि, गौ माता को बढ़िया सजा कर उनको पूजा जाता है।
पशुओं के प्रति प्रेम किसान अपने बच्चों को बचपन से ही सिखाते है, पीढ़ी दर पीढ़ी किसान सिखाई गई है बातों को आज भी करते है।
उस समय खेती परिवार का मुख्य धंधा होती थी। पूरा परिवार विशेष रूप से महिलाओं का सहयोग खेती के लिए मिलता था। प्राकृतिक खेती होती थी ।शुद्ध खेती होती थी ।किसान संपन्न भले ना हो प्रसन्न रहता था। पर आज के समय में खेती करना बहुत ज्यादा कठिन हो गया है या लगभग छोटे किसानों के लिए असंभव हो गया है?
इसके कई कारण हो सकते हैं जिसमें से एक प्रमुख कारण छोटे किसानों के पास खेती की भूमि का ना होना है? वर्तमान में जो छोटा किसान हैं वह भूमिहीन है। दूसरे की भूमि पर या बटाई पर लेकर वह खेती करता है जिससे उसकी आमदनी बहुत ही सीमित हो गई है। अब खेती में बहुत ही ज्यादा केमिकल का प्रयोग होने लगा है जिसके कारण भी भूमि की उर्वरक क्षमता धीरे-धीरे खत्म होने की कगार पर आ गई है। अनाज जहरीला हो रहा है जिसका दुष्परिणाम उसको खाने वालों पर कई प्रकारों से होता है। इसी कारण से किसानों की विश्वसनीयता भी कम हो रही है। छोटा किसान बहुत सीमित संसाधनों के साथ खेती करता है। कम भूमि सीमित साधन पूरे परिवार को साथ लेकर कृषि करना इससे उसकी आमदनी लगभग ना के बराबर हो गई है।
बड़े जागीरदार महाजन और साहूकारों के चक्कर में पड़ा हुआ किसान अब किसान कम मजदूर ज्यादा हो गया है। बड़े साहूकार महाजन और दलालों का अब कृषि पर कब्जा हो गया है? जिसका पूरा लाभ यही लोग उठाते हैं ।चाहे सरकारी योजनाएं हो या केंद्र और राज्य सरकारों से मिलने वाली सुविधाएं ,सब का लाभ बड़े किसान साहूकार लोगों का एक अघोषित संगठन इन सारी सुविधाओं का लाभ लेते हुए गरीब किसानों को अपना गुलाम बना के रखा हुआ है।
भारत में कुल क्षेत्रफल का 51% भाग कृषि है। इतनी भूमि पर खेती होती है इसमें से अधिकतर पर बड़े किसानों का एकाधिकार है। एक मोटे अनुमान के अनुसार खेती पर 10.07 करोड़ परिवार निर्भर करते हैं, यह संख्या देश के कुल परिवारों का 48% है।
किसान बरसों से राजनीति के दुष्परिणामों को भोग रहा है। कई सरकारें आई और गई, किसानों पर जितनी राजनीति होती है उतना ही कभी उनके प्रति गंभीरता से काम किया जाता तो उसके परिणाम बहुत अच्छे होते ।
वर्तमान में यूक्रेन और रूस के युद्ध के कारण खाद्य तेल का मूल्य आसमान को छू रहा है, लगभग प्रति लीटर 35 से ₹40 बढ़ा हुआ है ,क्या हमारे यहां सोयाबीन का उत्पादन कम होता है? मूंगफली का सरसों का या और भी खाद्य पदार्थ जिनका तेल निकाला जाता है, भारत कृषि पर आधारित संरचना का देश है, सारे उद्योग धंधे कृषि पर ही निर्भर हैं, फसल कटने के बाद ही सारे उद्योग धंधों में जान आती है ,पर ऐसा लगता है कि ,कृषि से धंधे नहीं धंधों से कृषि हो रही हैं ?
किसानों की स्थिति और भी दयनीय होती जा रही है। कुछ तथाकथित किसान नेता अपने आप को किसानों का सच्चा हितैषी बताते हुए उन्हें गुमराह कर रहे हैं? जिसके कारण गरीब किसान आतंकित हो रहे है और इन किसान नेताओं के चंगुल में फंसते जा रहे है। सरकारों से मिलने वाली सुविधाएं गरीब किसानों तक सीधे ना आकर इन कथित किसान नेताओं के जरिए उन तक पहुंच रही है, यह इन लोगों का षड्यंत्र है ।
चुकी छोटा किसान गरीब है तो इन लोगों के षड्यंत्र और इन लोगों की दादागिरी के आगे मजबूर है।
देश की आबादी लगभग 139 करोड़ हो रही है। इस हिसाब से वर्तमान में खेती का विस्तार होना और आवश्यक हो गया है। इसके लिए सरकारों ने कई योजनाएं किसानों के लिए रखी हैं, प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना, किसान क्रेडिट कार्ड योजना, चारा विकास योजना डेयरी उद्यमिता विकास योजना पशुधन बीमा योजना कृषि सिंचाई योजना एवं सिंचाई योजनाएं, कृषि उपकरणों पर 50% से ज्यादा सब्सिडी देना किसानों को प्रमाणित बीज उपलब्ध कराना, किसानों को बीज सही दामों पर उपलब्ध कराने के लिए योजना, आधुनिक खेती के प्रति जागरूकता, फसलों के सही दाम सुनिश्चित करने के लिए चल रही योजनाएं, फसल बेचने के लिए किसानों को बाजार उपलब्ध कराने के लिए चल रही योजनाएं, परंपरागत कृषि विकास योजनाएं ,पशु धन बीमा योजना, सिंचाई के लिए किसानों को संसाधन जुटाने के लिए सिंचाई यंत्रों व मशीनों पर सब्सिडी के लिए योजनाएं ,मिट्टी के स्वास्थ्य के लिए योजनाएं।
केंद्र और राज्य सरकारें मिलकर किसानों के लिए कई योजनाएं चला रही है। इन योजनाओं का लाभ किसानों तक सीधा पहुंचे और किसान इन योजना से जुड़ कर अपनी खेती को और उन्नत कर सकें और देश के 139 करोड़ लोगों का अन्नदाता बनकर उनके स्वास्थ्य का ध्यान रखते हुए जैविक खेती की जाय और अधिक से अधिक ध्यान दें कर शुद्ध और प्राकृतिक तरीके से अनाज का उत्पादन की जाय , जिससे देश के हर व्यक्ति का स्वास्थ्य अच्छा रहे। यही मार्ग भारत को फिर से सोने की चिड़िया बना देगा।
अन्नदाता ही भाग्यविधाता है, लोग शुद्ध भोजन करेंगे जिनसे उनका स्वास्थ्य सही रहेगा बीमारियों पर होने वाला खर्चा बचेगा, जो देश की उन्नति में काम आएगा।
अन्नदाता ही भाग्यविधाता है‌।

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