Site icon अग्नि आलोक

समस्याओं की पराकाष्टा ही पर्याय है क्रांति का

Share
FacebookTwitterWhatsappLinkedin

शशिकांत गुप्ते

आज का वर्तमान भविष्य का इतिहास होता है। परिवर्तन संसार का नियम है। यह नियम, नियत है।
परिवर्तन हरएक क्षेत्र में होता रहता है। देश-काल-स्थिति के नियमानुसार सामाजिक, सांस्कृतिक,आर्थिक,राजनैतिक, साहित्यिक पारिवारिक, और खेल के क्षेत्र में भी परिवर्तन अवश्यंभावी है।
मध्ययुगीन सामंती काल में जो शासक होतें थे वे तानाशाह प्रवृत्ति के ही होतें थे। तात्कालिक शासक जनता को अपनी प्रजा को अपनी दासी ही समझते थे।
अपने देश की फिल्मों में दशकों तक सामंती मानसिकता को दर्शाया गया।
देशी फिल्मों में दशकों तक दर्शकों के मनोरंजन के लिए हास्य अभिनेताओं से भी अभिनय करवाया जाता रहा है।
कालांतर में फिल्मों में अभिनेता स्वयं ही कॉमेडी करने लग गए।
इस कारण तकरीबन फिल्मी हास्य कलाकार हाशिए पर चले गए।
देश-काल-स्थिति के नियमानुसार सभी क्षेत्रों परिवर्तन हुआ है। साहित्यिक और सांकृतिक क्षेत्र में कुछ प्रतिशत लोगों ही अपने दायित्व का निर्वाह प्रामाणिकता से कर रहें हैं। इनदिनों हास्य विनोद के नाम पर फूहड़ता परोसने की मानो होड़ लगी है।
Standup कॉमेडी के नाम पर कुछ एक कलाकारों को छोड़ दो, अधिकांश कलाकारों की भाषा स्तरहीन होती है। मंच पर द्विअर्थी संवादों सुनाकर अपने देश की आदर्श सुसंस्कृति को धूमिल कर रहें हैं?
राजनीति क्षेत्र में विचारहीनता स्पष्ट परिलक्षित हो रही है।
लोकलुभावन दावें और कभी न पूर्ण होने वाले वादें करने का प्रचलन ही हो गया है।
अपनी असफलताओं को छिपाने के लिए स्वतंत्रता संग्राम में संघर्ष करने वालों को नजरअंदाज करना एक फैशन हो गया है।
बहुत से व्यंग्यकारों का मत है कि राजनेताओं के वक्तव्यों के संबोधनों को सिर्फ और सिर्फ चुटुकुले समझना चाहिए?
यदि राजनेताओं के वक्तव्यों में गम्भीरता होती तो देश के प्रत्येक व्यक्ति के खातें पन्द्रहलाख आ गए होतें? महंगाई आसमान छूने के लिए अपनी गति अनियंत्रित नहीं करती। बेरोजगरों को उनकी योग्यता के अनुकूल रोजगार मिलने की संभावना बढ़ती। उन्हें पकौड़े तलने का मशवरा सुनना नहीं पड़ता।
इसे संयोग ही कहा जाएगा लेखक का लेख पूर्ण होने के पूर्व लेखक के व्यंग्यकार मित्र सीतातामजी का आगमन हो जाता है।
सीतारामजी ने लेख पढ़कर सलाह दी कि, इस लेख को यहीँ पूर्ण विराम देना चाहिए। कारण जब समस्याओं की पराकाष्टा हो जाएगी तब सभी क्षेत्रों में परिवर्तन निश्चित ही होगा।
परिवर्तन संसार का नियम है। जो नियत है।
परिवर्तन की लहर साधारण नहीं होती है,परिवर्तन की लहर क्रांतिकारी विचारों से तैयार होती है। यह लहर तूफान का रूप लेती है। इतिहास गवाह है।
इस संदर्भ में प्रसिद्ध शायर स्व.राहत इंदौरीजी का ये शेर प्रासंगिक है।
जो दुनिया को सुनाई दे उसे कहते हैं ख़ामोशी
जो आँखों में दिखाई दे उसे तूफ़ान कहते हैं

शशिकांत गुप्ते इंदौर

Exit mobile version