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“विरोधीदल मुक्त राष्ट्र निरंकुश सत्ता की अभिलाषा”

,सुनील शर्मा

* मुल्क को अपने विरोधियों से मुक्त करने के उत्साह में राजनैतिक पार्टियों द्वारा झूठ और प्रॉपगैंडा का सहारा लेने का एक लम्बा इतिहास रहा है, अगर आपको लगता है कि ये इन्ही दिनों चालू हुआ है तो आप मुग़ालते में है। आज आपको 88 साल पुराना झूठ, फ़रेब और प्रॉपगैंडा का एक सच्चा क़िस्सा सुनाता हूँ, जिसके चलते एक महान देश “विरोधीदल मुक्त राष्ट्र” तो बन गया मगर कालान्तर में उस देश ने खुद और दुनियाँ ने इसके भीषण नतीज़े भुगते। 
मेरी इस कहानी की शुरुआत 27 फ़रवरी 1933 की रात 9 बजे से होती है, बर्लिन स्थित राइखस्टैग (जर्मन संसदभवन) में आग लग गयी, आग इतनी प्रबल थी कि जब तक फ़ायरफ़ाइटर राइखस्टैग तक पहुँचते संसदभवन का निचलासदन आग की भेंट चढ़ चुका था, सारे प्रयासों के बावजूद साढ़े ग्यारह बजते-बजते पूरा संसद भवन आग की भेंट चढ़ गया। 
घटना के समय जर्मनी के नवनियुक्त चांसलर अडोल्फ़ हिटलर जो अभी महीने भर पहले ही अपनी अल्पमत सरकार के माध्यम से सत्ता में आए थे अपने कुख्यात प्रॉपगैंडा मंत्री (उस दौर में सूचना प्रसारण मन्त्री का यही पदनाम था) गोयबल्स के अपार्टमेंट पर डिनर कर रहे थे। 
जब गोयबल्स को फ़ोन पर घटना के बारे में बताया गया तो उसके मुँह से निकल पड़ा “टाँल टेल” किंतु उसने हिटलर को तब तक कुछ न बताया जब तक कि दूसरी बार फ़ोन नही आया, दूसरी बार फ़ोन आते ही हिटलर गोयबल्स को साथ ले कर सीधे राइखस्टैग पहुँचे जहां जर्मनी के आंतरिक सुरक्षा मंत्री हरमन गोरिंग पहले से मौजूद थे। हिट्लर को देखते ही गोरिंग बोलें “देखी कम्युनिस्टों की दरिंदगी, हमने इस मामले में एक कम्युनिस्ट को गिरफ़्तार किया है” हिट्लर ने जवाब दिया “ये आग भगवान की तरफ़ से भेजा संकेत है, जिसने हमें कम्युनिस्टों की बग़ावत से आगाह कर दिया है”। 
दूसरे दिन जर्मनी के पूरे मीडिया ने कम्युनिस्टों के ख़िलाफ़ बहुत तेज़ हल्ला बोल दिया, हर अख़बार उन्हें ग़द्दार, राष्ट्रद्रोही, आतंकवादी कह रहा था। एक 24 साल का अर्धविक्षिप्त मरिनस वॉन डेर लुब्बे गिरफ़्तार कर लिया गया, हिट्लर और नाज़ी पार्टी की कहानी चल निकली। दूसरे दिन हिटलर जर्मनी के राष्ट्रपति हिडंनबर्ग़ से मिले और उनसे तुरंत अनुच्छेद 48 के तहत इमरजेंसी लगाने का अनुरोध किया जिस पर हिंडनबर्ग ने “राइखस्टैग फ़ायर डिक्री” इशू कर दी, परिणामस्वरूप देश में आपातकाल लागू कर दिया गया, सभी कम्युनिस्ट सांसदों को गिरफ़्तार कर जेल भेज दिया गया जिसके कारण रातों रात नाज़ी पार्टी संसद में अल्पमत से बहुमत में आ गयी। 
यही तो नाज़ी चाहते थे, “कम्युनिस्ट मुक्त जर्मनी”!  इसी का वादा करके ही तो उन्होंने चुनाव लड़ा था, ऐसे में अगर थोड़ा प्रॉपगैंडा करके वो इसे हासिल कर भी रहे थे, तो इसमें हर्ज भी क्या था?  फिर गोयबल्स प्रॉपगैंडा के चेंपियन तो थे ही, जो मानते थे कि एक ही झूठ को सौ बार बोलो, तो लोगों को सच लगने लगता है। 
नाज़ियों ने जर्मनी की हर असफलता के लिए जिम्मेदार काल्पनिक शत्रु ढूंढ लिए, यहूदी, लिबर्ल्स और कम्युनिस्ट। पूरी जर्मनी में इनके खिलाफ 360 डिग्री “फ़ॉल्स इन्फ़र्मेशन बाम्बार्डमेंट” किया गया, जो झूठ पार्टी के नेता बोल रहे थे, वही बात पार्टी का केडर बोल रहा था, तो वही बात अख़बार और रेडियो कह रहे थे नतीज़े में अगले कुछ महीनों में जर्मनी के लोगों के दिलों दिमाग़ में यह बात अच्छें दे घर कर गयी कि नाज़ी पार्टी और हिटलर ही जर्मनी के ख़ैरख़्वाह है, यही राष्ट्रवादी है,  यही देशप्रेमी है, बाक़ी सब पार्टियां भ्रष्ट और ग़द्दार। यहां तक कि हर राष्ट्रीय आपदा के लिए भी इन्ही काल्पनिक राष्ट्रीय शत्रुओं को जिम्मेदार ठहराया जाने लगा, भले ही प्रथम विश्व युद्ध की हार हो या वैश्विक मंदी के कारण उपजी बेरोजगारी। हर चीज की तोहमत लिबर्ल्स, कम्युनिस्ट और यहूदियों पर डाली जाने लगी, यहां तक कि जब सत्ता नाज़ियों के हाथ आ गयी तब भी हर विफलता का कचरा विपक्षियों पर ही गिराया जाने लगा। 
नाज़ी पार्टी ने दीगर सभी दलों के लिए घृणा के बीज बो दिए गए और अगले 6-7 साल इनमे सोची समझी झूठ का जम कर खाद पानी डाला गया नतीजन 1939 आते आते हर जर्मन के दिमाग़ में यहूदियों और ग़ैर नाज़ी पार्टियों के ख़िलाफ़ घृणा के वट वृक्ष उग आए, राष्ट्र की सामूहिक चेतना में इनके खिलाफ गहरी हेट्रेड भर गयी। दुःख की बात है इस हेट्रेड की क़ीमत अंत में करोड़ों लोगों ने अपनी जान दे कर चुकाई।  
दिलचस्प बात यह है कि जर्मनी की सामूहिक चेतना में ये हेट्रेड इतनी चतुराई और सोचे समझे अंदाज़ मे डाली गई थी कि जिस देश ने गुटेनबर्ग के छापेखाने के आविष्कार के माध्यम से पूरी दुनियां में ज्ञान का प्रकाश फैलायां था उस मुल्क का प्रबुद्धवर्ग भी इस बात को नही समझ पाया कि कब वो खुद भी ब्रेनवाश हो गया।
दोस्तों,  कहते है इतिहास स्वयं खुद को दोहराता है, कही ऐसा तो नही जो गयी सदी में जर्मनी में हो चुका वो अब हमारे यहां दोहराया जा रहा हो और हमे इसका इल्म भी न हो?सादर

,सुनील शर्मा,सुरेश ज्ञानविहार विश्वविद्यालय, जयपुर।

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