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विधायकों की नाराजगी ने बढ़ाई भाजपा की चिंता…नेताओं को लगातार विंध्य में हाजिरी लगानी पड़ रही है

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भोपाल। कभी कांग्रेस का गढ़ रहे विंध्य क्षेत्र में इस समय भाजपा का दबदबा है। लेकिन सत्ता और संगठन में भागीदारी नहीं मिलने की वजह से इस क्षेत्र के विधायक और पार्टी पदाधिकारी  भी नाराज हैं। विधानसभा चुनाव में यह नाराजगी भारी न पड़ जाए इसका डर सत्ता और संगठन दोनों को सता रहा है। इसकी वजह से पार्टी लगातार इस कोशिश में है कि विंध्य उसकी मु_ी से फिसले नहीं। इसके लिए पार्टी के केंद्रीय नेता और संघ पदाधिकारी भी लगातार विंध्य का दौरा कर समीकरण साधने में लगे हुए हैं।
दरअसल, चुनावी साल में  विंध्य व महाकौशल में भाजपा को जैसी राजनीतिक चुनौतियां मिल रही है, उससे भाजपा के शीर्ष नेताओं के लगातार दौरों के सियासी मायने तलाशे जा रहे हैं। जानकारों को कहना है कि भाजपा आश्वस्त थी कि विंध्य को मऊगंज के तौर पर जिले की सौगात देकर इस क्षेत्र को फिर से जीत लिया जाएगा, लेकिन विंध्य की 30 में से 24 सीटें जीतकर इस क्षेत्र की सियासत को मुट्ठी में बंद कर चुकी भाजपा के शीर्ष नेताओं को लगातार विंध्य में हाजिरी लगानी पड़ रही है। वर्ष 2018 के चुनाव परिणाम के आंकड़े भी भाजपा को इस बात के लिए आश्वस्त कर रहे थे कि विंध्य में भाजपा बेहद सशक्त है, लेकिन निकाय चुनाव परिणाम आने के बाद भाजपा ठिठक सी गई है।
आप ने बढ़ाई चिंता
दरअसल, विंध्य के रास्ते आम आदमी पार्टी के प्रवेश ने भाजपा के थिंक टैंक की चिंता बढ़ाई है। वैसे भी विंध्य नई राजनैतिक विचारधाराओं का पोषक रहा है। देश को पहला बसपा सांसद देने वाले विंध्य ने प्रदेश को आप पार्टी का पहला महापौर भी दे दिया। सिंगरौली में आम आदमी पार्टी ने महापौर ही नहीं बनाया बल्कि आसपास के जिलों में कई पार्षदों को भी निगम तक पहुंचाया है। भाजपा आप से निपटने की रणनीति तैयार ही कर रही , कि उधर मैहर से भाजपा विधायक नारायण त्रिपाठी ने विंध्य जनता पार्टी से विंध्य की 30 सीटों से चुनाव लड़ने का ऐलान कर पार्टी के रणनीतिकारों के माथे पर चिंता की लकीरें उकेर दी हैं। मैहर विधायक नारायण त्रिपाठी के मामले में तो भाजपा को दुनिया का सबसे बड़ा संगठन बताने वाले भाजपा के रणनीतिकार भी बैकफुट पर हैं और उनकी स्थिति सांप- छछूंदर वाली हो गई है। भाजपा विधायक त्रिपाठी न तो भाजपा प्रबंधन से उगलते बन रहे हैं और न ही गटकते। सूत्रों के मुताबिक तीसरी चिंता पार्टी व आरएसएस के सर्वे ने भी बढ़ाई है। राजधानी में पार्टी को भले ही सब कुछ फीलगुड लग रहा हो, लेकिन विंध्य व महाकौशल में निचले स्तर पर एक नकारात्मक माहौल बन रहा है। हर सर्वे में भाजपा बैकफुट पर पाई गई है। विंध्य में आयोजित हुई संगठन की बैठक में तो पदाधिकारियों ने कुछ इक्का-दुक्का सीटों को छोड़ दें, तो तकरीबन सभी सीटें डेंजर जोन में बताई हैं। चूंकि विंध्य में भगवा परचम पूरी तरह लहरा रहा है, ऐसे में भाजपा के रणनीतिकार नहीं चाहते कि रेत की तरह विंध्य भाजपा की मु_ी से फिसल जाए। संभवत: यही कारण है कि ं में इन दिनों देश के शीर्ष भाजपा नेताओं के दौरे जारी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दौरे को भी अपने सबसे मजबूत किले विंध्य को सुदृढ़ करने की कवायद माना जा रहा है।
दिग्गज लगातार कर रहे दौरे
विंध्य क्षेत्र भाजपा के लिए कितना अहम है इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि बीते कुछ माह के अंदर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी, गृह मंत्री अमित शाह व संघ प्रमुख मोहन भागवत अलग-अलग कार्यक्रमों में शामिल हो चुके हैं। 10 दिसंबर 2022 को जहां केंद्रीय परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने सीधी में मोहनिया टनल का उद्घाटन किया तो वहीं केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने सतना मेडिकल कॉलेज के लोकार्पण और सतना में आदिवासी सम्मेलन को सम्बोधित किया। सतना जिले में 1 अप्रैल को संघ प्रमुख मोहन भागवत ने रानी दुर्गावती की प्रतिमा अनावरण कार्यक्रम में हिस्सा लिया। इसके अलावा कैलाश विजयवर्गीय ने भी अपनी आमद विंध्य में दर्ज कराई। राजनीतिक दृष्टिकोण व आबादी के लिहाज से प्रदेश की राजनीति का केंद्र बिंदु माना जाने वाला विंध्य राज्य का पांचवां सबसे बड़ा क्षेत्र है। यहां राज्य की 30 विधानसभा सीटें और 4 लोकसभा सीटें आती है। वर्ष 2003 तक कांग्रेस के मजबूत किलों में शुमार विंध्य में अब भगवा परचम लहरा रहा है। विंध्य किस कदर बीजेपी का मजबूत किला बन चुका है, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव में यूं तो कांग्रेस ने प्रदेश की सत्ता से भाजपा को बेदखल कर दिया था, बावजूद इसके विंध्य में भाजपा का ही परचम लहराया था।

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