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आदिनाथ के प्रथम आहार की स्मृतिस्वरूप ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने जारी किया था सिक्का

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डाॅ. महेन्द्रकुमार जैन ‘मनुज’, इन्दौर

    जैन परम्परा के चैबीस तीर्थंकरों में से प्रथम तीर्थंकर आदिनाथ को प्रथम आहार दान वैशाख सुदी तीज को हुआ था। जैन मान्यतानुसार उसी दिन से अक्षय तृतीया पर्व प्रसिद्ध हुआ। इसके स्मरण स्वरूप ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने आहार दान कथानक के चित्र के साथ सन् 1616 में एक रुपये का सिक्का जारी किया था। जैन पुराणों के अनुसार आदिनाथ जिन्हें ऋषभनाथ भी कहा जाता है ने ही अपने राज्यकाल में लोगों को 1.असि-शस्त्र विद्या, 2. मसि-पशुपालन, 3. कृषि- खेती, वृक्ष, लता वेली, आयुर्वेद, 4.विद्या- पढ़ना, लिखना, 5. वाणिज्य- व्यापार, वाणिज्य, 6.शिल्प- सभी प्रकार के कलाकारी कार्य शिखाये। बाद में अपने पुत्र भरत को राज्य सौप कर उन्होंने निग्रन्थ दीक्षा धारण कर ली। उस समय उनके साथ अनेक राजाओं ने भी दीक्षा ली थी। आदिनाथ ने प्रारम्भ में छह मास तप किया फिर आहार दान विधि कैसी हो इस के उपदेश हेतु वे स्वयं आहार लेने को नगरों, ग्रामों में गये। किन्तु लोगों को जैन श्रमण को आहार देने की विधि ज्ञात नहीं थी इस कारण भगवान को धन, कन्या, पैसा, सवारी आदि अनेक वस्तुएं भेंट की। आदिनाथ ने ये सब अन्तराय का कारण जानकर पुनः बन में जाकर तपश्चरण धारण कर लिया।
    अवधि पूर्ण होने के बाद पारणा करने के लिए ईर्या पथ शुद्धि करते हुए हस्तिनापुर नगर में पधारे। उन्हें आहार के लिए आते हुए देखकर सोम राजा के भाई श्रेयांस को पूर्व भव में दिये मुनिराज को आहार दान का स्मरण हो आया। अतः आहारदान की समस्त विधि जानकर श्री ऋषभदेव भगवान को तीन प्रदक्षिणा देकर पड़गाहन किया व भोजन गृह में ले गये। ऐसा वह दाता श्रेयांस राजा और उनकी धर्मपत्नी सुमतीदेवी व ज्येष्ठ बधु सोमप्रभ राजा अपनी लक्ष्मीपती आदि ने मिलकर श्री भगवान ऋषभदेव को सुवर्ण कलशों द्वारा इक्षुरस (गन्ना के रस) का आहार दिया। इस प्रकार भगवान ऋषभदेव की आहारचर्या निरन्तराय संपन्न हुई। इस कारण उसी वक्त स्वर्ग के देवों ने अत्यंत हर्षित होकर पंचाश्चर्य-रत्नवृष्टि, गंधोदक वृष्टि, देव दुदभि, बाजों का बजना व जय-जयकार शब्द किए। सभी ने मिलकर अत्यंत प्रसन्नता मनाई।
    आहारचर्या करके वापस जाते हुए ऋषभदेव भगवान ने सब दाताओं को ‘अक्षय दानस्तु’ अर्थात् दान इसी प्रकार कायम रहे, इस आशय का आशीर्वाद दिया। यह आहार वैशाख सुदी तीज को सम्पन्न हुआ था। उसी समय से अक्षय तीज नाम का पुण्य दिवस (जैनधर्म के अनुसार) का शुभारंभ हुआ। इसको आखा तीज भी कहते हैं। यह दिन हिन्दू धर्म में भी बहुत पवित्र माना जाता है। भारत के विभिन्न प्राप्तों में अक्षय तृतीया पर्व अलग अलग तरह से मनाया जाता है।

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