चुनावी चटखारे/कीर्ति राणा
इंदौर के विधानसभा क्षेत्र क्रमांक एक में भाजपा से टिकट मांग रहे दावेदारों में एक का आविर्भाव और हो गया है।इनका आविर्भाव भी ऐसे विशाल धार्मिक समागम से हुआ है कि संत-महात्माओं पर जादू चलाने वाली दो नंबर की जोड़ी के समर्थक भी हैरान हैं कि ये कौन जादूगर है जिसने महंतों को मोह लिया।
कभी कंप्यूटर बाबा के साथी रहे पं योगेंद्र महंत को बाबा के साथ ही शिवराज सरकार ने राज्यमंत्री का दर्जा दे दिया था।बाबा तो दिग्विजय सिंह की शरण में लौट गए लेकिन महंत ने भाजपा में ही आसन जमाए रखा और शिवराज के खास होते गए। अब जब विधानसभा चुनाव आ रहे हैं तो महंत ने अपना जन्मोत्सव दो दिवसीय भव्य आर्विभाव महोत्सव के नाम से मना डाला।
उस वक्त से ही क्षेत्र क्रमांक एक में राजनीति करने वालों के कान खड़े हो गए थे।बिना दादा दयालु का सहयोग लिए इस महोत्सव में जब सैकड़ों संत-महंत-महामंडलेश्वर भी आशीर्वाद देने पहुंच गए तो चुनाव लड़ने का सपना देखने वालों का चौंकना स्वाभाविक था।क्योंकि एक नंबर में ऐसे आयोजन से तो संजय शुक्ला पहचाने जाते हैं।
अब पं योगेंद्र महंत ने मुख्यमंत्री से लेकर भाजपा के संगठन प्रभारियों, प्रदेश अध्यक्ष आदि तक अपनी सक्रियता वाली फाइलों में इस आविर्भाव महोत्सव को खास तौर पर दर्शाया है।धर्म ध्वजा फहराते हुए भाजपा में ऊंचे उठते जाना तो ठीक है लेकिन इस क्षेत्र के पूर्व विधायक सुदर्शन गुप्ता और महू छोड़ कर पुन: एक नंबर से चुनाव लड़ने का मन बना रही उषा ठाकुर के समर्थक अब महंत की टांग खींचने के लिए सक्रिय हो गए हैं।
निमाड़ क्षेत्र और आदिवासियों के बीच पहले डॉ हीरालाल अलावा और डॉ आनंद राय कंधे से कंधा मिलाकर राजनीति करते थे।अब हीरा खुद चमक रहा है। आनंद अपने हिसाब से काम कर रहे हैं। भाजपा लंबे समय से इस क्षेत्र में एक डॉक्टर की कमी महसूस कर रही थी। मुख्यमंत्री ने युवा आयोग का अध्यक्ष नियुक्त करते हुए इस क्षेत्र में डॉ निशांत खरे की एंट्री करा दी है।डॉ खरे के लिए निमाड़ से लेकर झाबुआ तक का क्षेत्र नया नहीं है। इस चुनाव में पता चलेगा तीनों डाक्टर में कौन पॉवरफुल साबित होगा।
याद है ना स्वच्छ इंदौर का गीत पहले शान से और छठा गीत स्थानीय कलाकारों की आवाज में कंपोज करने वाले देवेंद्र मालवीय याद है ना। फिल्मों में तकनीकी स्तर पर सक्रिय मालवीय के प्रोडक्शन में बनी फिल्म ‘टवंटी-20 देहली’ अगले महीने तक रिलीज हो जाएगी।इसकी कहानी, निर्देशन भी उनका है।इस फिल्म का क्रिकेट मैच से कोई ताल्लुक नहीं है, यह फिल्म अपरोक्ष रूप से भाजपा का माहौल बनाने में सहायक हो सकती है, जानते हैं क्यों इसकी कहानी दिल्ली दंगों पर आधारित है। वैसे इस फिल्म के निर्माण और मालवीय को केंद्रीय सेंसर बोर्ड का सदस्य नियुक्त किए जाने में कोई सामंजस्य नहीं है।
सतपुड़ा भवन में लगी आग तो बुझ गई है लेकिन अब बयानों की लपटें उठना शुरु हो गई है।सतपुड़ा भवन में हर पांच साल में ठीक चुनाव के कुछ महीनों पहले आग लगने की तीसरी पंचवर्षीय योजना है।पहली, दूसरी आग के बाद भी सरकार ने कोई फायरप्रूफ अभेद्य व्यवस्था की होती तो सतपुड़ा भवन लपटों में इस बार नहीं घिरता।कांग्रेस के लिए इसीलिए तो ये आग चुनावी मुद्दा बन गई है।