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पतंजलि के विज्ञापनों से पूरी मेनस्ट्रीम मीडिया पटी पड़ी?

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हमने कई बार बाबा रामदेव को अपने हाथों को मरोड़ते, शरीर को स्ट्रेच करते और सिर के बल चलते हुए देखा है. उन्हें बच्चों के साथ पुश-अप कॉन्टेस्ट करते हुए देखा है. इसके अलावा एक बार उन्हें बिकनी पहने एक बॉलीवुड अभिनेत्री की तस्वीर दिखाई जाती है तो उन्होंने आंख बंद कर ली थी.

हमने यह सब इंडिया टीवी, जी न्यूज़, एबीपी, आजतक, न्यूज़ 18 इंडिया, रिपब्लिक और टीवी 9 जैसे भारत के प्रमुख समाचार चैनलों पर देखा है. ये चैनल रामदेव के लिए एलोपैथी को खारिज करने और “चिकित्सा पर्यटन” के बारे में शिकायत करने का मंच भी हैं. ऐसा सिर्फ रामदेव के बयानों के सहारे नहीं बल्कि उनकी कंपनी पतंजलि आयुर्वेद के विज्ञापनों के माध्यम से भी किया जाता है.

ऐसा लगता है कि सुप्रीम कोर्ट की नजर भी इस मामले पर गई है. ऐसा इसलिए क्योंकि पिछले सप्ताह शीर्ष अदालत ने पतंजलि को अपने झूठे और भ्रामक विज्ञापनों पर तत्काल रोक लगाने का आदेश दिया था. 

उच्चतम न्यायालय ने पतंजलि के विज्ञापनों में किए गए हर झूठे दावे के एवज में 1 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाने की चेतावनी दी थी.

लेकिन ये इतना भी आसान नहीं है. पतंजलि टीवी चैनलों के सबसे बड़े विज्ञापनदाताओं में से एक है. इस साल अगस्त में टैम मीडिया रिसर्च की एक रिपोर्ट में पाया गया कि समाचार चैनलों को विज्ञापन देने वाली कंपनियों में पतंजलि तीसरी सबसे बड़ी विज्ञापनदाता है. ये विज्ञापन टूथपेस्ट, घी और रामदेव के कुख्यात ‘कोविड इलाज’ के बारे में हैं, इन विज्ञापनों से पूरी मेनस्ट्रीम मीडिया पटी पड़ी है. 

पतंजलि के “भ्रामक” दावों के लिए जिस उत्पाद की सबसे ज्यादा आलोचना की गई, वह है कोरोनिल. इसे कोविड महामारी के बीच में “कोविड -19 के लिए पहली साक्ष्य-आधारित दवा” के तौर पर पेश किया गया था. इसके लिए कहा गया था कि इसकी  “100 प्रतिशत रिकवरी रेट” है. कोरोनिल को साल 2021 में भारत के आयुष मंत्रालय की ओर से “प्रमाणित” भी किया गया था.

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