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बढ रहा मंहगाई का दौर घट रहा आमदनी का दौर 

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भरत गहलोत

मंहगाई एक ऐसा शब्द है जो आजकल हर किसी के जुबान पर छाया रहता है,
हमने किसी मित्र से पूछा भाईसाहब कामकाज कैसा चल रहा है वे बोले कामकाज आजकल ठप हो गया है मंहगाई बढ़ गई है ,
आगे जाकर एक नौकरी करने वाले मित्र को पूछा भाई क्या हालचाल है कैसी चल रही है नौकरी बोला महगाई बहुत बढ़ गई है,
देश में चारो तरफ़ महगाई का बोलबाला है ,
महगाई अपने चरम पर है,
महगाई रुके नही रुक रही है और आमदनी दिनों दिन घटती जा रही है ,
प्रतिव्यक्ति आय में कटौती हो रही है ,
या यू कहें कि आमदनी अठनी खर्चा रुपया तो भी कोई अतिशयोक्ति नही होगी,
महगाई से पूरा देश त्रस्त है,
हर बार चुनाव घोषणा पत्रों में महगाई कम करने के वादे किए जाते है परन्तु चुनाव जीतने के बाद महगाई और बढ़ जाती है ,
मंहगाई कुत्ते की पूछ जैसी है जिस प्रकार कुत्ते की पूछ को सीधा नही किया जा सकता उसी प्रकार महगाई पर नियंत्रण एक मुश्किल व दुर्लभ कार्य है,
मंहगाई से कोई एक देश नही विश्व की अर्थव्यवस्था प्रभावित है,
वर्तमान समय मे रूस यूक्रेन के मध्य युध्द भी महगाई का एक प्रमुख कारण है व सम्भावित आने वाले समय मे बढ़ने वाली महगाई का कारण हो सकता है ,
जनता को चाहिए कि आत्म निर्भरता दिखाते हुए महगाई पर सरकार को कोसने की बजाय स्वरोजगार की और कुछ कठोर कदम उठाए,
सरकार को चाहिए कि जनता को स्वरोजगार व आत्म निर्भरता की और उत्प्रेरित करे स्वरोजगार के अवसर प्रदान करे ,
देश के प्राकृतिक संसाधनों का उचित उपयोग करते हुए देशहित व जनहित में प्रयोग में लाए ,

भरत गहलोत
जालोर राजस्थान

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