पुष्पा गुप्ता
*सबसे पहले भगेलू काका की सुनें :*
भगेलू काका जवानी के दिनों में सिंगापुर में चौकीदारी की नौकरी करते थे I बोलचाल में अपनी अंग्रेज़ी की जानकारी का अक्सर प्रयोग करते रहते हैं !
एक दिन कहने लगे :
“ई ससुर सब चौकीदारन क इज्जत माटी में मिलाय दिहिस ! देस क बात छोड़,एके त तबेला क चौकीदार भी बनावे कोई, त सब गदहा दुलत्ती मार के भाग परइहें ! हमरे सिंगापुर में एगो छैला-रंगीला चौकीदार रहे, पूरी कलोनी के गाड़ी क टायर आ पालतू कूकुर खुदई चोरा क बेंच देवे ! ओही हाल बा !
बात-बात में लगाता है मास्टर स्ट्रोक, आ ऊ ससुरा हो जाता है मास्टर जोक ! अरे ई बड़का जोकर हौ भइया, सब जोकरन क सरदार हौ ! आफत जोत देले हौ !
देखिह, कपार पर भारी बिपत्ती घहरावे वाला हौ ! तब लोग चेतिहें, देर ही से सही ! बाक़ी, जब लोग चेतिहें त ई जोक मास्टर बहुते लतियावल जइहें !”
*कविता कृष्णपल्ल्वी 9 अप्रैल 2021 की अपनी फेसबुक वाल पर लिखती हैं :*
यह बर्बर हत्यारा इक्कीसवीं सदी का नमूना फासिस्ट है । हर मामले में खखाया-हउहाया हुआ है — क्या खा लें, क्या पहन लें, कितनी दुनिया देख लें, चमत्कृत करने वाले कितने जुमले बोल दें, कितना भोग लें, कितने दिनों तक नौजवान बने रहें . वगैरह-वगैरह !
लेकिन भूलिए मत ! है यह अम्बानी-अडानी और सभी सरमायेदारों का कुत्ता ही। राजनीतिक दुनिया में अब अच्छी नस्ल के कुत्ते मिलते ही नहीं। सो कुत्ते पालने वाले शौक़ीनों ने गली के खउरहे-कटखने कुत्ते को ही बहुत सजाकर-सिखाकर, खिला-खिला कर, पाँच सितारा सुविधाएँ देकर पाल लिया है।
अब इन दिनों तो एक नागपुर का ‘डॉग ब्रीडिंग सेंटर’ ही ढंग से काम कर रहा है। उनका ज़ोर हमेशा ज्यादा देसी दिखने वाली क्रॉस ब्रीड यानी दोगली नस्ल तैयार करने पर रहा है। इटालियन, जर्मन, ब्रिटिश और अमेरिकी नस्लों और देसी नस्लों को मिलाकर वे बहुत पहले से कई किस्म की दोगली ब्रीड्स काफ़ी पहले से तैयार करते रहे हैं।
अब जब बढ़िया देसी कुत्ते मिल ही नहीं रहे हैं, तो वे सड़क के मरियल, बीमार, बाल झड़े खउरहे-कटखने कुत्तों से ही क्रॉस ब्रीडिंग करा रहे हैं, उन्हें कुत्ता सैलून एण्ड स्पा सेंटर में सजा-धजा के डॉग रेस, डॉग फाइट और डॉग शो में दिल्ली भेज रहे हैं । लेकिन कुत्ता तो आखिर कुत्ता ठहरा, वह भी ऐसा दोगली नस्ल का कुत्ता जिसमें देसी गली के कुत्ते के जीन्स अधिक प्रभावी हैं.
तो फिर यह मनोरंजक, हास्यास्पद और साथ ही खूँख़्वार किस्म के कारनामे तो करेगा ही। हाँ, मालिक लोगों की सेवा में कोई कसर नहीं छोड़ता और फ़िलहाल उन्हें यही सबसे सही विकल्प लगता है।
*अब अंकल जी की भी सुनते चलो :*
एक दिन सामने वाले अंकलजी कह रहे थे, “कहो बिटिया, ई कुण्ठित गदहवा तो इतिहास, भूगोल, दर्शन, साहित्य, एंटायर पोलिटिकल साइंस, गणित, केमिस्ट्री, फ़ीज़िक्स, बायोलॉजी, एस्ट्रो-फ़ीज़िक्स, साइकोलॉजी, मेडिकल साइंस — ई सब क्षेत्र में तो अपने ज्ञान का कमाल दिखा दिया । हमरी समझ से अब एक्के क्षेत्र बचा है । कहीं यह नया कामसूत्र न लिखने लग जाये!”
फिर कुछ सोचकर बोले,”नहीं, कामसूत्र तो नहीं लिख सकता है ! हाँ, नया कोकशास्त्र ज़रूर लिख सकता है !”