नवल किशोर कुमार
इन दिनों जबकि देश में एक तरफ लोकसभा के चुनाव चल रहे हैं और दूसरी तरफ इंडियन प्रीमियर लीग क्रिकेट टूर्नामेंट का दौर भी जारी है। इनके बीच इम्तियाज अली द्वारा बनाई गई एक फिल्म धूम मचा रही है। वह भी ऐसी फिल्म, जिसमें मशहूर कलाकारों के नाम पर केवल एक परिणीति चोपड़ा हैं और नायक के रूप में दिलजीत दोसांझ, जो कि पंजाब के लोकगायक भी हैं।
पूरी फिल्म ‘अमर सिंह चमकीला’ की जीवनी पर आधारित बायोपिक है। जिस तरह की सुर्खियां इस फिल्म ने अभी तक बटोरी हैं, वैसी सुर्खियां हाल के वर्षों में बनी किसी बायोपिक फिल्म को नहीं मिली है।
फिल्म को देश के दलित-बहुजन समाज द्वारा देखा और पसंद किया जा रहा है। इसकी एक वजह यह कि अमर सिंह चमकीला पंजाब के एक दलित परिवार में जन्मे थे और अपनी गायकी के बूते सफलता के शीर्ष पर पहुंचे थे।
फिल्म में उनकी भूमिका निभा रहे दिलजीत दोसांझ के मुंह से दो डॉयलाग्स लोगों की जुबान हैं। इनमें से एक है– “चमार हूं, भूखा तो नहीं मरूंगा” और दूसरा डायलॉग यह कि “मैं जिस गंदगी से निकलकर आया हूं, वहां वापस नहीं जाना चाहता।”
फिल्म के प्रारंभ में क्लाइमेक्स दिखाया गया है कि अमर सिंह चमकीला और उनकी पत्नी अमरजोत कौर (सह-गायिका) को गोली मार दी जाती है। फिर पूरी फिल्म अतीत में चलती है। प्रारंभिक दृश्यों में धनीराम ऊर्फ अमर सिंह चमकीला के बचपन की बातें हैं, जिनमें दलितों के कच्चे मकान और दूसरों के पक्के मकानों के बीच का अंतर साफ नजर आता है।
फिल्म में 1970-80 के दशक के पंजाब को बड़ी बारीकी से दिखाया गया है। बीच-बीच में निर्देशक इम्तियाज अली ने अमर सिंह चमकीला के वास्तविक तस्वीरों व वीडियो रिकार्डस को दिखाकर फिल्म को वास्तविकता के करीब ला दिया है।
चूंकि बायोपिक एक गायक की है तो इसका संगीत पक्ष भी उतना ही दमदार है। 1980 के दशक में दक्षिण फिल्मों के मशहूर संगीतकार रहे इलैया राजा के सहयोगी रहे और वर्तमान में प्रसिद्ध संगीतकर ए.आर. रहमान द्वारा पंजाबी गीतों का धुन तैयार करना जितना आश्चर्यचकित करता है, उतना ही भारतीय संगीत की विविधता को समृद्ध करता है।
‘अमर सिंह चमकीला’ फिल्म में सबसे मजबूत पक्ष है उस समय के सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक हालातों का चित्रण। यह फिल्म इन तीनों स्तरों पर समानांतर चलती है। एक तरफ एक दलित परिवार में जन्मे युवा का गायकी की दुनिया में उभरना ऊंची जातियों के गायकों को खलता है तो दूसरी तरफ यह वह दौर है जब खालिस्तानी आंदोलन का उभार होता है। हालांकि पंजाब में दलितों के हुए आंदोलनों के पक्ष को नहीं दिखाया गया है। बस यह दिखाकर फिल्म के निर्देशक इम्तियाज अली अपने कर्तव्य की इतिश्री कर लेते हैं कि चमकीला के सफल होने पर जब उसके पास कच्चे मकान के बजाय बड़ी हवेली होती है तब उसका चाचा रात के समय नशे में सामंत जमींदारों को चुनौतियां देता है।
इस फिल्म में 1984 में हुए सिक्ख दंगे व उसके प्रभावों को दिखाया गया है। और यह भी कि उस समय अमर सिंह चमकीला ने पंजाब के हालातों को देखते हुए आंदोलनपरक गीत गाए, जो कि उसके अन्य गीतों की तरह लोकप्रिय हुए।
पंजाब के दलित चिंतक द्वारका भारती कहते हैं कि “अमर सिंह चमकीला को दलित आंदोलन से चस्पां करने की कोशिश एक हास्यस्पद स्थिति होगी। दलित आंदोलनों में चमकीला को एक गीतकार के रूप में संत राम उदासी या गुरदास राम आलम के रूप में कभी दर्ज की गई हो, ऐसा मेरे ध्यान में नहीं आता। वास्तविकता यह है कि पंजाब के गांवों की सांस्कृतिक परिधि में दलित व शूद्र ही केंद्र में रहे हैं, चाहे वे भांडों की सूरत में हों या गायकी के क्षेत्र में। यहां तक कि दलित औरतें भी इस क्षेत्र में अग्रणी रही हैं। उदाहरण के लिए नरेन्द बीबा का नाम लिया जा सकता है।”
द्वारका भारती बताते हैं कि “इसमें कोई शक नहीं कि एक दलित गायक के रूप में चमकीला का उभरना जाट गायकों को कभी नहीं पचा। रही बात पंजाबी गायकी में अश्लीलता की तो यह भी सच है कि यह बहुत कम ही अश्लीलता से दूर देखी गई है। और आजकल तो हालात यह है कि मदिरा और हथियारों का वर्णन पंजाबी गायकी के आवश्यक मुहावरे बने हुए हैं। फिर इस सत्य से इंकार नहीं किया जा सकता है कि जाट संस्कृति का बोलबाला सदा इस गायकी में भारी रहा है। यानी पंजाबी गायकी में जातिवाद रहा ही है। चमकीला ने इस जातिवादी वर्चस्व को अवश्य तोड़ा।”
यह इस कारण भी कि पंजाब की कुल आबादी में दलित करीब 30 फीसदी की हिस्सेदारी रखते हैं। लेकिन यह पक्ष फिल्म में नहीं दिखाया गया है। वहीं खालिस्तानी आंदोलनकारियों की उपस्थिति व उनकी भूमिका को बढ़ा-चढ़ाकर दिखाना भी सवाल पैदा करता है कि क्या केवल तथाकथित अश्लील गीत गाने के कारण अमर सिंह चमकीला और अमरजोत कौर की हत्या कर दी गई?
फिल्म जीवंत तब तक बनी रहती है जब तक पर्दे पर अमर सिंह चमकीला और अमरजोत कौर जिंदा दिखाई देते हैं। उसके बाद के दृश्य में पंजाब पुलिस और प्रशासन जिस भूमिका में नजर आते हैं, वह कहीं न कहीं किसी रहस्य को ढंकने की कोशिश ही दिखती है।
खैर, यह फिल्म बिहार के लोकप्रिय लोक-कलाकार रहे भिखारी ठाकुर की याद दिलाती है, जिनकी भले ही हत्या नहीं की गई, लेकिन उनके द्वारा इजाद किए गए ‘बिदेसिया नाच’ को ‘लौंडा नाच’ कहकर आज भी उपेक्षित किया जाता है। दोनों के बीच एक समानता यह कि दोनों ने अपने-अपने समय की पारंपरिक कला के स्वरूप को बदला। एक और समानता यह भी कि दोनों ने अपनी प्रस्तुतियों में स्त्री विमर्श को जगह दिया। हालांकि भिखारी ठाकुर के समय महिलाएं मंचन में शामिल नहीं होती थीं, तब उनके बदले पुरुष स्त्री का वेश धारण कर महिला पात्रों की भूमिका का निर्वहन करते थे। जबकि चमकीला के समय में स्त्रियां मंच साझा करने को स्वतंत्र थीं।
पूरी फिल्म में यह बार-बार कहा गया है कि अमर सिंह चमकीला के गीत अश्लील हैं। यहां तक कि स्वयं चमकीला भी यह स्वीकारने लगता है कि उसने जो गीत लिखे और गाये, वे अश्लील थे। लेकिन भिखारी ठाकुर ने अपनी रचनाओं को कभी अश्लील नहीं माना। यह बात किसी से छिपी नहीं कि उनके द्वारा रचित ‘गबरघिचोर’ नाटक को तब भी अश्लील व गंदा कहकर उनकी आलोचना की गई थी, क्योंकि उस नाटक के केंद्र में एक महिला पात्र थी, जिसने दूसरे पुरुष के साथ सहवास कर गर्भधारण किया था। अमर सिंह चमकीला ने स्त्रियों को मंच प्रदान अवश्य किया लेकिन उसने अपने लिए कोई सामाजिक सीमाएं तय नहीं कर रखी थीं और न ही उसने नैतिकता का दंभ रखा। वह अपने श्रोताओं के लिए गीत लिखता और गाता था।
यहां भिखारी ठाकुर और चमकीला में एक अंतर और है कि भिखारी ठाकुर की हर रचना में शू्द्र-अतिशूद्र आंदोलन की झलक मिलती है। फिर चाहे वह बाल विवाह का सवाल हो या फिर विधवा विवाह या बेमेल विवाह का। यह आज भी इतिहास में दर्ज है कि जब भिखारी ठाकुर का नाटक ‘बेटीबेचवा’ का मंचन हुआ तब उनके ऊपर बिहार के भोजपुर जिले के जगदीशपुर (कुंवर सिंह की रियासत) में जानलेवा हमला किया गया था। लेकिन वह काल ब्रिटिश काल था और जब 1988 में अमर सिंह चमकीला और उनकी पत्नी की हत्या हुई तब भारत ब्रिटिश शासकों का गुलाम नहीं था।
कुल मिलाकर इम्तियाज अली की फिल्म ‘अमर सिंह चमकीला’ यह संदेश देती है कि जब-जब दलित-बहुजन वर्ग के लोग कला के क्षेत्र में अपना स्थान हासिल करेंगे, उनके ऊपर अश्लीलता फैलाने के आरोप लगते रहेंगे। इस कड़ी में हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि करीब दो वर्ष पहले ही राजस्थान के जितेंद्र मेघवाल की हत्या केवल इसलिए कर दी गई थी, क्योंकि वह लंबी मुंछें रखता था।