- सनत जैन
नगरीय निकायों की आर्थिक स्थिति बहुत खराब है। कुछ इसी तरीके की स्थिति ग्राम पंचायतों की भी बनी हुई है। केंद्र सरकार एवं राज्य सरकारों से जो राशि नगरीय निकायों और ग्राम पंचायत के लिए उपलब्ध कराती है। उस राशि पर राज्य सरकार का नियंत्रण और राज्य सरकार के अधिकारियों द्वारा नियंत्रण और निर्णय लिए जाने के कारण पंचायती निकाय एवं नगरी निकाय संस्था लगातार कमजोर होती चली जा रही हैं।
ग्राम पंचायत को ग्राम पंचायत क्षेत्र, जनपद और जिले के अनुसार निर्णय लेने की स्वतंत्रता संविधान ने दी है। 73 और 74वें संविधान संशोधन में ग्राम पंचायतों और नगर पालिकाओं को सबसे सशक्त बनाया गया है। दसवें वित्त आयोग से ही उन्हें सशक्त बनाने के लिए निर्णय लिए गए, लेकिन धीरे-धीरे इस पर राज्य सरकारों में अपना शिकंजा कस लिया राज्य सरकारों द्वारा नगरीय निकायों और पंचायतों को जो राशि केंद्र एवं राज्य सरकार से प्राप्त होती है। उस राशि का बंटवारा मनमाने तरीके से किया जाने लगा है। जिसके कारण स्थानीय संस्थाओं की आर्थिक स्थिति दिनों दिन खराब होती चली जा रही है। 15वें वित्त आयोग से मिली राशि को राज्य सरकारों द्वारा नियम और प्रक्रियाओं से अवरुद्ध कर दिया जाता है। स्थानीय निकायों के खर्च और नगरीय निकाय के निर्णय लेने पर तरह-तरह के प्रतिबंध लगाए गए हैं। मध्य प्रदेश जैसे राज्य में जब चुंगी खत्म की गई थी, उस समय नगरीय निकायों को आर्थिक क्षतिपूर्ति दिए जाने का एक सिस्टम बनाया गया था। पिछले 10 वर्षों से इसमें कोई वृद्धि नहीं की गई। स्थानीय संस्थाओं में जो विकास कार्य चल रहे हैं।
वह केंद्र एवं राज्य सरकार द्वारा निर्धारित किए जा रहे हैं। स्थानीय संस्थाओं के ऊपर कर्ज का बोझ भी लगातार बढ़ता जा रहा है। संविधान के अनुसार लोक प्रशासन की सबसे छोटी इकाई ग्राम पंचायत और नगरीय निकायों की स्वतंत्रता धीरे-धीरे खत्म होती जा रही है। स्थानीय निकाय राज्य सरकार और केंद्र सरकार के ऊपर आश्रित होकर रह गए हैं। स्थानीय संस्थाओं द्वारा जो निर्णय लिए जाने थे, अब वह सरकार और उनके अधिकारियों द्वारा लिए जा रहे हैं। इसमें निर्वाचित जनप्रतिनिधियों के अधिकारों का भी हनन हो रहा है। साथ ही स्थानीय संस्थाओं की वित्तीय स्थिति भी दिनों दिन गड़बड़ा रही है।
नगरीय निकायों में कर्मचारियों के वेतन का भुगतान नहीं हो पा रहा हैं। विकास के कार्य नहीं हो पा रहे हैं। अब तो साफ सफाई जैसे मामले में भी नगरीय निकायों को आर्थिक बदहाली का शिकार होना पड़ रहा है। आम नागरिकों को मूलभूत सुविधाएं भी नगरीय निकाय उपलब्ध नहीं करा पा रहे हैं। कुछ इसी तरीके की स्थिति अब पंचायतों में भी बनने लगी है। 16 में वित्त आयोग की अनुशंसा के अनुसार स्थानीय निकायों को वे रोक- टोक सीधे फंड उपलब्ध कराने की व्यवस्था सुनिश्चित करने की व्यवस्था की गई है।
लेकिन इसका अभी पालन नहीं हो पा रहा है। केंद्र एवं राज्य सरकारें स्थानीय निकायों के संबंध में नियम और कानून बनाकर उन्हें नियंत्रित करने लगे हैं। जिसके कारण स्थानीय संस्थाओं की स्वायत्तता दिनों दिन कम होती जा रही है। यदि इस स्थिति में तुरंत सुधार नहीं किया गया तो स्थानीय निकाय काफी कमजोर हो जाएंगे। इसका खामियाजा केंद्र एवं राज्य सरकारों को जनता की नाराजी के रूप में भुगतना पड़ सकता है। केन्द्र एवं राज्य सरकारों को स्थानीय संस्थाओं को लोकप्रशासन की दृष्टि से मजबूत बनाने की जरुरत है। केन्द्र एवं राज्य सरकारें स्थानीय संस्थाओं को जितना मतबूत आर्थिक एवं प्रशासनिक दृष्टि से करेंगी, देश का विकास भी उसी गति से होगा। सरकार का हस्तक्षेप कम और स्थानीय सहभागिता बढ़ाने से स्थानीय विकास की गति तेज होगी। यह हमें समझना होगा।