अग्नि आलोक

नफरत की आग पहुंची स्कूल में

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,मुनेश त्यागी

       हमारे समाज में हिंदू मुस्लिम साम्प्रदायिक नफरत पिछले सौ साल से ज्यादा समय से, सबसे बड़ी बीमारी बनकर, अब स्कूलों में पहुंच गई है। पिछले सौ साल से ज्यादा समय से चली आ रही यह नफरत की आग, पहले हमारे समाज के लगभग सारे हिस्सों में फैल गई थी, बस हमारा शिक्षा विभाग इससे बचा हुआ था। हमारे अधिकांश स्कूल और कॉलेज इस महामारी की चपेट से लगभग बाहर थे। मगर अभी दिल को दहला देने वाला, एक मामला संज्ञान में आया है, जिसमें एक स्कूल शिक्षिका के जी कक्षा के सात बरस के बच्चे को उसके सहपाठियों से पिटवा रही है जिसमें छात्र और छात्राऐं दोनों शामिल हैं। शिक्षिका का कहना है कि उसने पांच का पहाड़ा याद नहीं किया था।

      यह मामला मुजफ्फरनगर के, मंसूरपुर क्षेत्र के खुब्बापुर गांव का है, जिसमें नेहा पब्लिक स्कूल की अध्यापिका, एक अल्पसंख्यक बच्चे द्वारा पांच का पहाड़ा न सुनाये जाने पर, उसके सहपाठियों से उसकी पिटाई करवा रही है। वीडियो में वह बच्चों से कह रही है कि “इसे जोर से मारो और जोर से मारो।” यह अल्पसंख्यक बच्चा लगातार रोता रहा, मगर इस हिंदू मुसलमान की नफरत की बीमारी से ग्रसित महिला शिक्षिका को जरा भी दया नहीं आई और वह बच्चे को पिटवाती रही।

      यह मामला हिट स्पीच का भी बनता है क्योंकि यह शिक्षिका अल्पसंख्यक समुदाय के लिए अमर्यादित और विवादित भाषा का प्रयोग कर रही है, बच्चों में हिंदू मुसलमान के नाम पर नफरत भर रही है। इस वीडियो को देखकर अधिकांश लोग, शासन और प्रशासन तक सकते में आ गए हैं। बहुत सारे लोगों को तो यह विश्वास ही नहीं हो रहा है कि कोई शिक्षिका जो अपने को विकलांग बता रही है, वह ऐसी घिनौनी और नफरत भरी हरकत कर सकती है।सच में उसकी तो सोच भी विकलांग ही हो गई लगती है।

     पीड़ित बच्चे का परिवार लगता है, इस घटना को लेकर डर गया है। उसके बाप का कहना है कि हमारा समझौता हो गया है, स्कूल में फीस लौटा दी है, अब हम कार्यवाही नहीं चाहते। मगर यह मामला समझौते का नहीं है। यह मामला बेगुनाह और निर्दोष बच्चों के साथ की जा रही सांप्रदायिक नफरत का है, सांप्रदायिक जहर का है। इसमें समझौते से काम नहीं चलेगा। इसमें दोषी शिक्षिका को तुरंत और प्रभावी दंड मिलना चाहिए।

     यह घटना बता रही है कि कैसे गहरी जड़े जमा चुके धार्मिक विभाजन, हासिये पर पड़े अल्पसंख्यक समुदाय के खिलाफ हिंसा को भड़का सकते हैं? कैसे सांप्रदायिक नफरत की आग, एक बच्चे को बुरी तरह से उसके सहपाठियों से पिटवा सकती है? यह आसानी से अनुमान लगाया जा सकता है कि कल को जब ये बच्चे बड़े हो जाएंगे तो वे और ज्यादा हिंसक हो जाएंगे और एक दूसरे से नफरत करने लगेंगे।

     यह प्रकरण बता रहा है कि सौ साल पहले लगाई गई सांप्रदायिक नफरत की यह आग, अब स्कूलों में फैलने की शुरुआत कर रही है। शिक्षक और अबोध बच्चे भी, इस सांप्रदायिक आग की विभीषिका से नहीं बच पा रहे हैं। यह नफरत की आग बता रही है कि एक विकलांग शिक्षिका, किस तरह से नफरत का शिकार होकर, एक अल्पसंख्यक बच्चे को उसके सहपाठियों से पिटवा सकती है।

       यह साम्प्रदायिक नफ़रत से भरी हुई घटना बता रहा है कि यह सरकार और समाज की मिली जुली पराजय है। इन दोनों ने इस नफरत की अभियान को समय रहते मात नहीं दी, इसका विनाश नहीं किया, इसका खात्मा नहीं किया। पहले यह नफरत शहरों गांवों में फूलती-फलती और अबाध गति से फैलती रही। पहले बड़े बुजुर्ग ही इसकी चपेट में आते रहे थे, अब अमन और सांप्रदायिक सौहार्द्र के दुश्मनों ने अपनी नफ़रत भरी हुई मुहिम में स्कूल को भी अपनी चपेट में ले लिया है।

        दिल को दहला देने वाली इस नफरत से भरी घटना को देखकर यह जरूरी हो गया है की सरकार ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति होने से रोकने के लिए सुनिश्चित करें कि इस दोषी अध्यापिका के खिलाफ तुरंत कार्य कानूनी कार्यवाही हो और इस दिन प्रतिदिन कानूनी कार्यवाही करके समुचित सजा दिलवाया जाए। इस अध्यापिका ने अक्षम अपराध किया है। उस पर हेट स्पीच का मुकदमा भी चलना चाहिए और पूरे समाज और शिक्षकों को कड़ा सबक दिया जाना चाहिए।

       इस प्रकरण की पुनरावृत्ति रोकने के लिए पूरे समाज के समस्त प्रबुद्ध लोगों को एक साथ आकर, अपने सारे सांप्रदायिक मतभेद भुलाकर, सारे समाज में सामाजिक अमन-चैन और सांप्रदायिक सौहार्द की पहल को बहुत तेज कर देना चाहिए, ताकि इस नफरत की मुहिम को तत्काल ही, अन्य स्कूलों और कॉलेजों में फैलने से रोका जा सके। जिस प्रकार हरियाणा के नूंह में फैली सांप्रदायिक हिंसा को किसानों और मजदूरों ने एक साथ मिलकर रोक दिया था, उसी प्रकार मुजफ्फरनगर और उत्तर प्रदेश के लोगों को एक साथ मिलजुल कर, किसानों मजदूरों को एक साथ आकर, इस नफरत भरी मुहिम को तत्काल प्रभाव से रोक देना होगा। इसके अलावा सांप्रदायिक सौहार्द को बनाए रखने का और कोई तरीका नहीं है।

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